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Written By WD

विवाह संस्कार

विवाह संस्कार
संत पापा रोम का धर्माध्यक्ष है। शताब्दियों से किसी भी संत पापा (पिता) ने सिवाय राजघराने या किसी सामन्तशाही सदस्य के किसी को शादी नहीं दी है।

संत पाप योहन पॉल भिन्न हैं। उन्होंने एक दुकानदार लड़की के लिए परम्परा को तोड़ दिया, जिसने उससे अचानक पूछ लिया था। वह, गली साफ करने वाले की लड़की विट्टोरिया इअन्नी थी। संत पिता हाल ही में बनी नर्सरी को देखने जा रहे थे। विट्टोरिया अपने पिता के साथ थी, वह स्वयं एक स्मारिका दुकान में कार्यरत थी। उसकी मँगनी हो चुकी थी और अगले ही माह में, मारियो मालेटीस से उसकी शादी होने वाली थी।

अचानक विट्टोरिया ने स्वयं संत पिता से बोलने का साहस जुटाया।

17 फरवरी 1979 माह के 'डेली टेलीग्राफ' में उसके स्वयं के शब्दों को लिपिबद्ध किया गया है। 'मैंने कहा, संत पिता, मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आप मुझे शादी दें। मैंने एकाएक यह महसूस किया कि मैं सही भाषा का इस्तामाल नहीं कर रही हूँ... परन्तु संत पिता ने मुझे सहानुभूतिपूर्वक देखा। जब उसने कहा 'हाँ, तो मैंने सोचा कि मैं सपना देख रही हूँ। मैंने उससे पूछा कि क्या उन्होंने सच कहा और उन्होंने फिर से हाँ कहा। वह जाना चाहती थी और तब मुड़कर पूछा कि मैं कितने वर्ष की हूँ। मैं जरा अल्प वयस्क लग रही थी, क्योंकि मेरे पहने वस्त्र मुझे किशोरी बता रहे थे। मैंने कहा कि मैं 22 वर्ष की हूँ और वे आश्वस्त हो गए।

बाद में वेटिकन से सब बंदोबस्त पक्का हो गया, परन्तु संत पिता के दूसरे कार्यक्रमों को देखते हुए विवाह एक सप्ताह पहले फरवरी 25 को रखा गया।

जो पड़ोसी अपनी शुभकामनाओं के साथ आए, उन्हें विट्टोरिया की माँ (6 बच्चों की माँ) ने कहा, 'यह सबसे अच्छा विवाह उपहार है,' परन्तु जब विट्टोरिया ने मुझसे पहले कहा तो मैंने कहा, 'मामा मिया', और मैंने सोचा कि वह मुझसे मजाक कर रही है।

विवाह उत्सव वेटिकन में मिखाएल एंजेलो के भित्ति चित्रों को तुच्छ जानकर हुआ। सिसटाइन गायक मंडली ने गीत गाया। संत पिता जोन पॉल एक पल्ली पुरोहित की तरह साधारण हरे वस्त्र पहनकर आए, विवाह आशीष दिया और उपदेश दिया। उसने कहा- 'विवाह की पवित्रता उनके जीवन के कोने का पत्थर होना चाहिए' और उसने उन्हें बहुत से बच्चों का आशीर्वाद दिया।

विवाह समारोह के बाद मुस्कुराते हुए संत पिता से विट्टोरिया ने पूछा 'क्या मैं आपका चुंबन ले सकती हूँ।' 'क्यों नहीं?' संत पिता ने कहा। और उसने वैसा ही किया।

बाहर दमकते हुए सूर्य के प्रकाश में स्वीज सुरक्षा बल ने नव दंपति को सलामी दी और हजारों रुके हुए यात्रियों ने हर्ष ध्वनि से उनका स्वागत किया।

बाद में दुल्हन के पिता ने कहा, 'मैं अभी तक समझ नहीं पा रहा हूँ कि उसमें इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई जो उसने संत पिता से अपने विवाह के लिए पूछा।'

विवाह एक संस्कार है- जिसके द्वारा स्त्री और पुरुष विवाह सूत्र में संयुक्त हो जाते हैं और एक-दूसरे के प्रति मरने तक विश्वासी बने रहने की प्रतिज्ञा करते हैं और जो बच्चे ईश्वर उन्हें देगा, उनकी आध्यात्मिक और शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की प्रतीज्ञा करते हैं।

'सब विश्वासी के साथ विवाह करना' सफल जीवन के लिए उचित नियम है। क्यों? क्योंकि इस जीवन में स्वयं विवाह की बहुत सी समस्याएँ हैं, अतः यथासंभव इन समस्याओं को कम करने का प्रयत्न करना चाहिए और आज के हमारे युग में समझदार व्यक्ति अनुभव करते हैं कि धार्मिक आचार व्यवहार और उन लोगों को खुशियों के लिए 'विजातीय विवाह' पुराने दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा खतरनाक है।

पहले यह समझा जाता था कि 'विजातीय विवाह' एक काथलिक और 'विश्वासी ख्रीस्तीय' की शादी है। आज वह बात नहीं रही। हो सकता है कि गैर काथलिक सदस्य का धर्म में विश्वास तक न रहे, या नैतिक मामलों में कुछ हद तक काथलिक शिक्षा को स्वीकार न करे, जैसे- कृत्रिम संतति नियंत्रण, गर्भनिरोधक, गर्भपात, नसबंदी, तलाक आदि।

इसलिए कलीसिया 'विजातीय विवाहों' को प्रोत्साहन नहीं देते।

यहाँ पर एक विजातीय विवाह का उदाहरण है, जो एक अपवाद साबित हुआ है।

एक काथलिक लड़की ने धर्म के मामले में बड़े सोच-विचार के बाद अंत में एक गैर काथलिक से मँगनी कर विवाह कर लिया। उसने बारम्बार और दावे के साथ यह प्रतिज्ञा की कि वह कभी भी उसके विश्वास के मामले में बाधक नहीं होगा।

विवाह के तुरंत बाद उसे इस बात का पता चला कि किसी भी धर्म के लिए उसके पति के पास थोड़ा सा आदर है। धर्म को भी वह जानता तक नहीं था। जल्दी ही वह उसके परिवार को मिस्सा में भाग लेने के मामले को लेकर कुड़बुड़ाने लगा और हर तरह की बाधा खड़ी करने लगा।

इस बात से वह दुःखी थी फिर भी अडिग रही। अब उसे डराने-धमकाने भी लगा। यह बात एक दिन अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई। जब एक परिवार को सुबह उस व्यक्ति ने बड़े गुस्से में लकड़ी उठाकर कहा कि यदि उसने घर से एक कदम भी बाहर रखा तो उसकी खूब पिटाई करेगा।

उसने धड़कते हृदय और हिम्मत के लिए प्रार्थना करते हुए, शांति से अपना कोट और स्कार्फ पहना और जल्दी से उसके मायके सामने से चलते हुए द्वार पार कर गई।

वह आश्चर्यचकित हो उसकी ओर देखता ही रह गया और तब अपने हाथ की लकड़ी नीचे फेंककर बड़ी देर तक बैठे सोचते विचारते रहा। जब वह गिरजा से वापस लौटी तो उसने उसे नाश्ते की मेज तैयार करते पाया और अपने छोटे-मोटे कार्यों से उस घटना के लिए क्षमा याचना प्रदर्शित करने लगा। शाम तक वह इस विषय पर बात करता रहा। 'प्रिय, क्या तुमने वास्तव में यह सोच लिया था कि मैं तुम्हें मारूँगा।' उसने उत्तर दिया, 'मैं नहीं जानती मार्क।'... परन्तु इतना जानती हूँ कि तुम मुझे जो कुछ भी कर सकते थे उसके बजाय मैं ईश्वर का निरादर करने से अधिक डरती थी।'

बाद में उसने उसे ख्रीस्तयाग में जाने से नहीं रोका और धीरे-धीरे वह विश्वास की प्रशंसा करने लग गया, जिसने उसे हिम्मत और भक्ति दी। उसने बाद में उसे धर्मशिक्षा के लिए तैयार कर ही लिया और वह खुशी का दिन आ ही गया, जब उसने स्नान संस्कार ग्रहण किया।

उसने स्वयं यह कहानी अपनी शादी की रजत जयंती पर कही।

आनन्दमय विवाह के लिए कुछ उपयोगी सलाह

1. दोनों सदस्य काथलिक धर्म के मानने वाले हों।
2. पुरुष नौकरी वाला हो (इस आश्वासन के भ्रम में मत रहो कि जल्दी ही 'मुझे नौकरी मिलने वाली है।')।
3. विवाह का सही दृष्टिकोण रखो कि यह एक पवित्र एकीकरण है, ईश्वर द्वारा स्थापित है, जो कि पवित्रता और अनन्त मुक्ति का साधन ... और मानव जीवन संचार के उद्देश्य के लिए है।
4. शादी के पहले- अपने साथी के चुनाव के लिए समय लो। माता-पिता और पल्ली पुरोहित की सलाह पर कान दो। किसी ऐसे को चुनो जो तुम्हारे काथलिक आदर्शों का भागीदार बने और वास्तव में, ईमानदार, आश्रित, सच्चा और पवित्र हो।
5. विवाहित व्यक्तियों को एक-दूसरे का आदर करना चाहिए। अपने मन को वश में करने का अभ्यास करना चाहिए और अपनी समस्याओं को बच्चों के समान नहीं, वरन्‌ बड़ों की तरह विचार-विमर्श करना चाहिए।

संत पौलुस कलीसियों को लिखते समय अच्छी शिक्षा देते हैं, 'यदि किसी को किसी से कोई शिकायत भी हो, तो सहनशील बनें और एक-दूसरे को क्षमा कर दें। जैसे प्रभु ने आपको क्षमा कर दिया है, वैसे ही आप लोग भी किया करें, परन्तु इन सब के ऊपर प्रेम बनाए रखें, जो सिद्धि का सूत्र है। ख्रीस्त की शांति आपके हृदयों में राज्य करे, इसी कारण आप एक शरीर में बुलाए गए हैं। आप कृतज्ञ बने रहें।

पत्नियों, आप अपने पतियों के अधीन रहें, जैसे प्रभु में उचित है। ऐ, पतियों, आप अपनी पत्नियों को प्यार करें, उनके साथ कटु बर्ताव न करें।' (1 कलोसियों 3:13-15, 18-19)

6. आलोचना मत करो- अपने साथी की गलतियों की आलोचना करना या अपना ही राग बारम्बार आलापना सुखी विवाह का नाश कर देता है।
'दोष न लगाओ कि तुम पर दोष न लगाया जाए, क्योंकि जिस न्याय से तुम न्याय करते हो, उसी से तुम्हारा न्याय किया जाएगा और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी नाम से, तुम्हारे लिए नापा जाएगा।' (मत्ती 7:1-2)

7. एक-दूसरे पर पूरा भरोसा रखो- जलन रखना या बिना प्रमाण दोष लगाना पाप है।

8. तुम्हारा प्रथम कर्त्तव्य अपने विवाहित साथी के प्रति है, माता-पिता और दूसरे जन, दूसरे स्थान पर आते हैं। 'इसी कारण आदमी, अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ संयुक्त हो जाता है और वे एक तन हो जाते हैं।'

9. मिल-जुलकर रहो- पति-पत्नी को अपने बच्चों के साथ अपने घर में खुश नजर आना चाहिए... और उन्हें दूसरे सुखी परिवार के साथ मेल रखना चाहिए।

10. अपने घर को आनंदमय स्थान बनाओ- पत्नी को चाहिए कि वह अपने घर को आनंदमय स्थान बनाए कि उसका पति जब लंबे समय के काम से घर लौटे तो उसे साफ, सुव्यवस्थित एवं खाना तैयार पाए। 'वह पति सौभाग्यवान है, जिसे पत्नी अच्छी मिली है, उसकी आयु दोगुनी हो जाती है। परिश्रमी स्त्री पति को सुख पहुँचाती है, इस तरह उसका जीवन शांतिपूर्ण और दीर्घ हो जाता है। अच्छी स्त्री शुभ वरदान है, प्रभु से भय खाने वाले को वह मिलता है। फिर चाहे वे धनी हो या गरीब हो, उसका हृदय संतुष्ट रहता है और उनके चेहरे पर सदा मुस्कुराहट बनी रहती है।' (प्रवक्ता ग्रंथ 26:1-4)

11. परिवार के धन का उचित उपयोग करो- पति को अपनी पत्नी और बच्चों को संभालना है, पत्नी को परिवार के पैसों को बुद्धिमानी से खर्च करना है।

'यदि कोई स्वजनों और विशेषतः अपने परिवार की देखरेख नहीं करता, तो वह विश्वास को त्याग चुका है और अविश्वासी से भी बुरा है।' (1 तिमथी 5:8)

12. एक साथ प्रार्थना करो- जिस तरह कहावत है, जो परिवार एक साथ प्रार्थना करता है, वह एक साथ रहता है। 'ख्रीस्तयाग में भाग लेने एवं एक साथ परमप्रसाद ग्रहण करने और घर में खाने के पूर्व और बाद की प्रार्थनाएँ सुबह और शाम की प्रार्थनाएँ एवं पारिवारिक मालाविनती एक साथ करना सभी इसमें शामिल है।

'क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम में एकत्र होते हैं, मैं वहाँ उनके मध्य हूँ।' (मत्ती 18:20)