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Written By वार्ता
Last Modified: नई दिल्ली (वार्ता) , रविवार, 5 जुलाई 2009 (19:17 IST)

हस्तशिल्प उद्योग के लिए विशेष पैकेज की माँग

बजट 2009 10
सत्तर लाख लोगों के रोजगार का जुगाड़ करने वाले हस्तशिल्प उद्योग के लिए सरकार को बजट में विशेष प्रावधान करना चाहिए।

हस्तशिल्प से जुडे उद्योग के अग्रणी संगठन एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल फॉर हैन्डीक्राफ्ट्स (ईपीसीएच) के अध्यक्ष राजकुमार मल्होत्रा ने आर्थिक मंदी और गिरते निर्यात की दोहरी मार झेल रहे इस उद्योग के लिए वित्त मंत्रालय को आगामी बजट में विशेष पैकेज देने की माँग की है।

संगठन ने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी को दिए बजट पूर्व प्रस्तावों में कहा कि भारत कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है।

विदेशी बाजारों में चीन ने भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों की हूबहू वस्तुएँ इस कदर उतार दीं है कि भारतीय वस्तुओं का बाजार लगभग चौपट हो गया है। उन्होंने कहा कि भारत के तीस लाख हस्तशिल्प कर्मी इसी के चलते अपना रोजगार खो चुके हैं।

मल्होत्रा ने बताया कि ईपीसीएच ने कई माँगें सरकार के समक्ष रखी हैं, जिनमें हस्तशिलप की सभी वस्तुओं को आयकर मुक्त करना, इन वस्तुओं की व्यापारिक प्रदर्शनी में सेवा कर से मुक्त करना और देश के पाँच शहरों को निर्यात केन्द्रित शहर मानते हुए विशेष दर्जा देना आदि शामिल है।

इनमें लकड़ी की नक्काशी के लिए उत्तरप्रदेश के सहारनपुर, लकड़ी के फर्नीचर और लोहे की हस्तशिल्प वस्तुओं के लिए राजस्थान के जोधपुर और बाड़मेर, केन और बाँस उद्योग के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र और पेपर मैशी तथा शौलों के लिए जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर और अनंतनाग शहरों और हाथ से प्रिंट किए वस्त्रों के लिए जयपुर शहर का नाम भी शामिल है।

मल्होत्रा ने बताया कि प्रत्येक कस्बे में आवश्यक तकनीकी सहायता के लिए सौ करोड़ रुपए के अनुदान की माँग भी की गई है।

उन्होंने ईपीसीएच की सदस्यता पर भी सेवा शुल्क लगाने के प्रस्ताव को समाप्त किए जाने की माँग की। उन्होंने कहा कि यह संगठन हस्तशिल्प को बढ़ावा देने और इससे जुड़ी वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने का एक गैर सरकारी संगठन है।

उन्होंने कहा कि इस पर सेवा शुल्क लगाने का सुझाव अनुचित है, क्योंकि यह कोई क्लब या महासंघ नहीं है।

मल्होत्रा ने बताया कि इस समय सेवा शुल्क सौ से ज्यादा सेवाओं पर लगाया जाता है। निर्यातक इसमें से कई सेवाओं का उपयोग करते हैं। कुछ में वे कर देकर बाद में उनका रिफंड लेते हैं, लेकिन रिफंड की प्रक्रिया जटिल है। इसे देखते हुए उन्होंने सरकार से ऐसी व्यवस्था करने की माँग की है कि निर्यातकों को इस तरह के शुल्क देना ही नहीं पड़े।

ईपीसीएच ने ड्रावैक दरों में भी वृद्धि किए जाने की माँग की है। विदेशों से ऑर्डरों की संख्या में आई कमी को देखते हुए सरकार से कम से कम एक वर्ष के कार्यकाल के लिए ड्रावैक दरों को लगभग पाँच प्रतिशत तक किए जाने की माँग उठाई गई है।