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Written By समय ताम्रकर

पा : ऑरो की दुनिया

Paa Movie Review | पा : ऑरो की दुनिया
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निर्माता : सुनील मनचंदा, एबी कॉर्प
निर्देशक : आर. बाल्की
गीत : स्वानंद किरकिरे
संगीत : इलैयाराजा
कलाकार : अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, विद्या बालन, परेश रावल, अरुंधती नाग
यू सर्टिफिकेट * 16 रील * 2 घंटे 24 मिनट
रेटिंग : 3.5/5

‘पा’ के प्रति लोगों के मन में कुछ धारणाएँ हैं। ये रोने-धोने वाली फिल्म होगी। बीमारी के ऊपर वृत्तचित्रनुमा फिल्म होगी या लाचार बीमार के प्रति हमदर्दी जताने वाली फिल्म होगी, लेकिन ‘पा’ में ऐसा कुछ नहीं है। बेशक, ‘पा’ का मुख्य किरदार ऑरो (अमिताभ बच्चन) प्रोजेरिया नामक बीमारी से पीडि़त है, जिसमें व्यक्ति अपनी उम्र से कही ज्यादा का दिखाई देता है, लेकिन उसकी कहानी को हँसते-हँसाते पेश किया गया है।

13 वर्षीय ऑरो की हालत 65 वर्षीय वृद्ध जैसी रहती है, लेकिन निर्देशक और लेखक आर बाल्की ने फिल्म में उसके प्रति सभी का व्यवहार एक आम इंसान जैसा दिखाया है। स्कूल में ऑरो के साथ पढ़ने वाले उसके दोस्त उसकी हालत का कभी मजाक नहीं बनाते। न ही ऑरो को लाचार दिखाकर उसके प्रति हमदर्दी जताने की कोशिश की गई है।

इसके विपरीत ऑरो बेहद स्मार्ट बच्चा है। नेट पर चैटिंग करता है। गणित के सवाल चुटकियों में हल करता है। जैकी चेन की फिल्म देखता है और प्ले स्टेशन पर गेम खेलता है। ऑरो के किरदार को जिस तरह से हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया गया है वही इस फिल्म को खास बनाता है।

13 वर्षीय ऑरो अपनी मम्मी और नानी के साथ रहता है। अपने पिता के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है। स्कूल के पुरस्कार समारोह में ऑरो की मुलाकात युवा नेता अमोल आर्ते (अभिषेक बच्चन) से होती है और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं। बाद में ऑरो को पता चलता है कि अमोल ही उसके पा हैं।

शादी के पहले ही उसकी माँ प्रेगनेंट हो गई थी और ऑरो के पिता नहीं चाहते थे कि वह इस दुनिया में जन्म ले, जिससे उसके माता-पिता में अनबन हो गई। ऑरो का सपना है कि उसके माता-पिता फिर एक हो जाए और वह अपने मकसद में कामयाब होता है।

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निर्देशक बाल्की ने छोटे-छोटे दृश्यों के जरिये हास्य, व्यंग्य और इमोशन पैदा किया है। फिल्म में भावनात्मक दृश्यों की काफी गुंजाइश थी, लेकिन बाल्की ने इसके लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए और सीमा में रहकर बखूबी काम किया। कुछ दृश्यों में हँसी और आँसू एक साथ आते हैं।

वैसे तो फिल्म का नाम ‘पा’ है, लेकिन ऑरो और उसकी मम्मी (विद्या बालन) के रिश्ते को भी खूबसूरती के साथ पेश किया गया है। साथ ही ऑरो और उसकी नानी (अरुंधती नाग) की नोकझोंक तथा ऑरो और उसके दोस्त विष्णु (प्रतीक) की बातचीत चेहरे पर मुस्कान लाती है।

अभिषेक-अमिताभ के बीच कई दृश्य मजेदार हैं। मेट्रो ट्रेन में ऑरो युवा नेता अभिषेक का मजाक बनाकर कहता है कि टॉयलेट में तो वे बिना गॉर्ड के जाते हैं और पॉटी सीट में से कोई बम विस्फोट कर उन्हें मार सकता है।

ऑरो को अमोल राष्ट्रपति भवन घुमाने ले जाता है और उसे लेने के लिए वह एम्बेसेडर कार भेजता है तब ऑरो उसे कंजूस कहकर अपनी होंडा सिटी में जाना पसंद करता है।

एक दृश्य में परेश रावल अपने 34 वर्षीय बेटे अभिषेक से पूछते हैं कि वो गे तो नहीं है? क्योंकि शादी की बाद अभिषेक हमेशा टाल जाते हैं।

अभिषेक बच्चन के जरिये राजनीति पर अपनी बात कहने में बाल्की थोड़ा भटक गए। उनका उद्देश्य अच्छा है कि ‘राजनीति’ गंदा शब्द नहीं है, लेकिन अभिषेक और झुग्गी-झोपड़ी वाले मामले को वे ठीक से पेश नहीं कर पाए। इसी तरह विद्या और अभिषेक की प्रेम कहानी भी थोड़ी जल्दी में निपटा दी गई।

अमिताभ बच्चन का अभिनय एक बहुत बड़ा कारण है इस फिल्म को देखने के लिए। ऑरो के किरदार को उन्होंने स्क्रीन पर जीवंत कर दिया है। अभिनय, बॉडी लैंग्वेज और आवाज में कही भी अमिताभ बच्चन नजर नहीं आते। नि:संदेह अमिताभ उत्कृष्ट अभिनय के लिए ढेर सारे पुरस्कार जीतेंगे।

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अभिषेक बच्चन ने युवा नेता के हाव-भाव अच्छी तरह से पेश किया है। एक अभिनेता के रूप में उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है। विद्या बालन का अभिनय भी प्रशंसनीय है। सही ड्रेसेस के चुनाव के कारण वे खूबसूरत भी लगीं। ऑरो की नानी के रूप में अरुंधती नाग का अभिनय बेहतरीन है।

क्रिस्टिन टिंसले और डोमिनी टिल का फिल्म में अहम योगदान है। इन्होंने अमिताभ का बेहतरीन मेकअप किया है। इलैयाराजा का संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप है। ‘मुड़ी-मुडी’ गीत लोकप्रिय हो चुका है। पीसी श्रीराम की फोटोग्राफी उल्लेखनीय है।

ऑरो के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है।