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Written By ND

अब हीरोइनें भी हुईं 'वर्किंग वुमन'

देविका अवस्थी

अब हीरोइनें भी हुईं ''वर्किंग वुमन'' -
यूँ ये कहा तो साहित्य के लिए गया है कि साहित्य समाज का दर्पण है लेकिन समाज से कला की कोई भी विधा अलग नहीं हो सकती है। यही बात सिनेमा पर भी लागू होती है। थोड़ा कम या ज्यादा सामाजिक बदलाव फिल्मों में नजर आ ही जाते हैं। इन दिनों हमारी फिल्मों में नायिकाएँ भी काम करने लगी हैं।

उनके पास सजने-सँवरने, पार्टी-पिकनिक करने और हीरो के साथ प्रेम कर पेड़ों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने के अलावा और काम भी होने लगा है। कभी स्कूल-कॉलेज में पढ़ाने का (जैसा "मैं हूँ ना" में सुष्मिता सेन ने किया, अब इसमें सिर मत खपाइए कि वो पढ़ा रही थीं क्या वाकई...?), सोनम कपूर के प्रोडक्शन डिजाइनर होने का, कैटरीना के स्कूबा डायविंग इंस्ट्रक्टर होने का या फिर कोंकणा सेन का पत्रकार होने का...।

पुरानी फिल्मों में नायिकाओं की दो कैटेगरी थी : यदि पिता संपन्ना है तो या तो वह कॉलेज में पढ़ रही होती है या फिर अपनी सहेलियों-दोस्तों के साथ पिकनिक पार्टी में व्यस्त रहती है। कहानी की डिमांड हो तो फिर डॉक्टर हो जाया करती है। यदि नायिका आर्थिक रूप से संपन्ना नहीं है तो वो माँ का सिलाई-कढ़ाई में हाथ बँटाती थी या फिर किसी स्कूल में टीचर होती थी।

बीच के दौर में हीरोइनें पुलिस में भी नजर आने लगी थीं। वर्दी में नायिका को दिखाने के लिए इंस्पेक्टर बना दिया जाता था लेकिन मूलतः हीरोइन का काम प्रेम करना, पेड़ों के इर्द-गिर्द चक्कर काटते हुए गाना या फिर कहीं चैरिटी के लिए स्टेज शो करने से ज्यादा और कुछ हुआ ही नहीं करता था। यदि हीरोइन कामकाजी होती भी थी तो उसे कभी काम पर जाते या फिर काम करते दिखाया ही नहीं जाता था। एक तयशुदा खाँचा हुआ करता था जिससे अलग हीरोइनें कुछ और हो ही नहीं पाती थीं। 80-90 के दशक में हीरोइनों ने खूब वर्दी पहनी।

हेमा मालिनी, श्रीदेवी, जयाप्रदा, रेखा और बाद में माधुरी ने भी फिल्मों में इंस्पेक्टर के रोल किए, लेकिन हिन्दी फिल्मों में हीरोइनों को करियरिस्ट वूमन के तौर नहीं दिखाया गया। बल्कि यूँ कहें कि करियरिस्ट और महत्वाकांक्षी हीरोइन उस दौर में भारतीय मूल्यों के खिलाफ ही मानी गई। लेकिन जिस तरह से समाज बदल रहा है, उसी तरह से हिन्दी फिल्म की हीरोइनें भी बदल रही हैं।

करीना कपूर यदि "थ्री इडियट्स" में डॉक्टर बनती हैं तो उससे पहले "कुर्बान" में वे यूनिवर्सिटी प्रोफेसर का रोल करती हैं। "फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी" में जूही चावला ने टीवी रिपोर्टर की भूमिका की थी, उसके बाद तो जैसे हीरोइनों के पत्रकार होने की प्रतिस्पर्धा ही चल पड़ी। "लक्ष्य" में प्रीति जिंटा, "नो वन किल्ड जेसिका" में रानी मुखर्जी, "मुम्बई मेरी जान" में सोहा अली और "पेज थ्री" में कोंकणा सेन ने पत्रकार की भूमिका की। "पीपली लाइव" में भी टीवी पत्रकार की एक दमदार भूमिका थी। रानी मुखर्जी ने "वीर-ज़ारा" में वकील की दमदार भूमिका की थी, तो "वेकअप सिड" में कोंकणा ने पहले सेक्रेटरी और फिर लेखक की भूमिका की।

पिछले कुछ सालों से हिन्दी फिल्मों की नायिकाएँ भी घर और कॉलेज से बाहर आकर कुछ कामकाज करने लगी हैं और ये कामकाज वही घिसेपिटे नहीं हैं टीचर, नर्स, डॉक्टर, टाइपिस्ट या फिर बहुत हुआ तो पुलिस इंस्पेक्टर...। आजकल नायिकाएँ साहसी करियर भी अपना रही हैं। एक तरफ जहाँ "कॉर्पोरेट" में बिपाशा बसु एक कंपनी की वाइस प्रेसीडेंट दिखाई गई हैं, वहीं विद्या बालन ने "लगे रहो मुन्ना भाई" में रेडियो जॉकी की भूमिका की है।

रेडियो जॉकी की भूमिका प्रीति जिंटा ने भी "सलाम नमस्ते" में की है। ये सिर्फ नाम को ही कामकाजी नहीं होती हैं, बल्कि बाकायदा कामकाज करती नजर आती हैं। याद कीजिए विद्या किस अदा से "गुड मॉर्निंग मुम्बई" कहती हैं।

फिर ऐसा भी नहीं है कि नायिकाओं के करियर बहुत जाने-पहचाने होते हैं। कई बार नायिकाएँ बहुत हटकर करियर भी अपनाती हैं। जैसे "आय हेट लव स्टोरीज" में सोनम कपूर प्रोडक्शन डिजाइनर होती हैं और हाल ही में प्रशंसित फिल्म "साउंडट्रेक" में सोहा अली स्पीच थैरेपिस्ट के तौर पर नजर आई हैं। "लव आजकल" में दीपिका पादुकोण आर्ट रेस्टोरेशन का काम करती हैं और इसी वजह से वे अपनी लव लाइफ छोड़कर भारत आती हैं। दूसरी तरफ "जिंदगी ना मिलेगी दोबारा" में कैटरीना स्कूबा डायविंग इंस्ट्रक्टर होती हैं। इन सबके उलट "बैंड बाजा बारात" में अनुष्का शर्मा ने श्रुति कक्कड़ नामक एक महत्वाकांक्षी लड़की की भूमिका की जो वेडिंग प्लानर है और दिल्ली में अपने पार्टनर के साथ वेडिंग प्लानर कंपनी सफलतापूर्वक चलाती है।

चूँकि देश में बड़ी संख्या में लड़कियाँ अपने-अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर आकर काम कर रही हैं, अलग-अलग करियर्स में अपनी योग्यता और क्षमता का प्रदर्शन कर रही हैं, उसी का प्रतिबिंब हमें हिन्दी फिल्मों की नायिकाओं में दिखाई दे रहा है। बहुत सारे नए क्षेत्रों में हकीकत में लड़कियाँ काम कर रही हैं। तो हम इंतजार करें कि उन सारे क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व भी हिन्दी फिल्म में जल्द ही नजर आए...।