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भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले 72 साल के सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे का मूल नाम किसन बापट बाबूराव हजारे हैं। अण्णा हजारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक है जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं।
उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ। पिता का नाम बाबूराव हजारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है। अण्णा के छह भाई हैं। अण्णा का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा।
परिवार की आर्थिक तंगी के चलते अण्णा मुंबई आ गए। यहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। कठिन हालातों में परिवार को देखकर उन्होंने परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचने वाले की दुकान में 40 रुपए महीने की पगार पर काम किया।
सेना में भर्ती : वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अण्णा 1963 में सेना की मराठा रेजिमेंट में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे।
1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अण्णा हजारे खेमकरण सीमा पर तैनात थे। 12 नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए। इस घटना ने अण्णा की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।
घटना के 13 साल बाद अण्णा सेना से रिटायर हुए, लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गए। वे पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगे। 1990 तक हजारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी।
आदर्श गांव : इस गांव में बिजली और पानी की जबरदस्त कमी थी। अण्णा ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और खुद भी इसमें योगदान दिया।
अण्णा के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। इसके बाद उनकी लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ।
1990 में 'पद्मश्री' और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित अण्णा हजारे को अहमदनगर जिले के गांव रालेगांव सिद्धि के विकास और वहां पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है।
कुछ विश्लेषक अण्णा हजारे को निरंकुश बताते हैं और कहते हैं कि उनके संगठन में लोकतंत्र का नामोनिशां नहीं है।