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Written By WD

क्या होती है प्रश्न कुंडली?

Youth and astrology | क्या होती है प्रश्न कुंडली?
- भारती पंडित
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जब जन्म कुंडली उपलब्ध न हो या प्रश्नकर्ता सम्मुख न हो मगर उसे प्रश्न का समाधान जल्दी चाहिए हो, तो ऐसे में प्रश्न कुंडली की विधि अपनाई जाती है और प्रश्नकर्ता के प्रश्नों का समाधान दिया जाता है। प्रश्न कुंडली बनाने के लिए सबसे पहले आपके पास पंचांग, निरयन अफेमेरीज और प्रश्नकर्ता के प्रश्न पूछने का सही समय उपलब्ध होना चाहिए।

प्रश्नकर्ता ने जिस समय प्रश्न पूछा है, उसके आधार पर उस समय को स्टैंडर्ड समय में (जैसे कुंडली बनते समय किया जाता है) बदला जाता है। उस समय जो लग्न होता है उसके आधार पर लग्न कुंडली बनाई जाती है। उसमें ग्रहों की स्थापना की जाती है। उदाहरण के लिए- यदि प्रश्नकर्ता ने सुबह 8:40 मिनट पर दिल्ली से प्रश्न पूछा है, तो पहले इस स्थानीय समय को स्टैंडर्ड समय में बदलेंगे और उसके आधार पर तात्कालिक कुंडली बनाई जाएगी। इसके लिए कम्प्यूटर की भी मदद ली जा सकती है।

कई बार प्रश्नकर्ता से कोई अंक चुनने के लिए कहा जाता है, उसके आधार पर अफेमेरीज में इस अंक के लिए राशि और अंश देखे जाते है और उस राशि को लग्न मानकर बाकी कुंडली की रचना की जाती है तथा ग्रह स्थापित किए जाते हैं। जैसे प्रश्नकर्ता ने यदि 243 संख्या चुनी, तो यह संख्या अफेमेरिज के अनुसार मीन राशि के 19 अंश 20 कला का प्रतीक है, तो मीन इसे लग्न माना जाता है और भाव फल पर विचार किया जाता है।

कुछ याद रखने योग्य बातें :-
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1. विद्वानों का मत है कि प्रश्न कुंडली उसी समय की बनाए जिस समय प्रश्न किया गया हो। मगर ग्रह स्थापना उस समय की करें जिस समय प्रश्न का उत्तर दिया जा रह हो। जैसे यदि प्रश्नकर्ता ने प्रश्न 10 बजे किया हो और उसका उत्तर 1 बजे तय किया गया हो तो कुंडली तो 10 बजे की बने मगर ग्रह 1 बजे के हिसाब से स्थापित किए जाएँ।

2. कार्य कब सिद्ध होगा उसके अनुसार ग्रह स्थिति का विचार करना चाहिए। यदि कार्य कुछ दिन में फलीभूत हो रहा हो तो चन्द्र का विचार करें। यदि एक माह से अधिक हो तो सूर्य का विचार करें और एक वर्ष का समय हो तो गुरु आदि ग्रहों के गोचर को ध्यान रखें।

3. प्रश्न कुंडली में यदि वक्री ग्रह, वक्री ग्रह के नक्षत्र में हो तो कार्य असफल होता है। यदि वक्री ग्रह मार्गी नक्षत्र में हो तो कार्य सिद्धि में देर होती है।

4. फलादेश करते समय ग्रह, भाव, ग्रहों के नक्षत्र और भाव में बैठे अन्य ग्रहों के प्रभाव की भी विवेचना करनी चाहिए। बलि ग्रहों के बलाबल और स्वभाव का भी विचार अवश्य करना चाहिए।