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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : सोमवार, 20 जून 2022 (12:37 IST)

श्वास संबंधी 5 योगासन, जानिए सरल टिप्स

श्वास संबंधी 5 योगासन, जानिए सरल टिप्स | Yoga Day
21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस- International Day of Yoga : योग या योगासन से आप अपनी श्‍वास की गति को सुधारकर जहां फेफड़ों को मजबूत बना सकते हैं वहीं अपनी आयु भी बढ़ा सकते हैं। मात्र श्वास में सुधार करने से ही सभी तरह के रोग और शोक दूर हो जाते हैं। आओ जानते हैं श्वास संबंधी 5 खास योगा टिप्स।
 
 
1. परिवृत्त पार्श्वकोणासन : सबसे पहले एक दरी या योगा मैट पर ताड़ासन या पर्वतासन की मुद्रा में खड़े हो जाएं। फिर श्वास खींचते हुए दाहिना पैर आगे लगभग 4 या 5 फीट दूर रखें। फिर बाएं पैर के घुटने को भूमि पर टिका दें। अब दोनों हाथों की नमुस्कार मुद्रा बनाकर कमर को छुकाते हुए मोड़ें और बाएं हाथ की कोहनी को दाहिने पैर के घुटने के पास बार की ओर लगा दें। गर्दन को भी मोड़कर ऊपर की ओर देखें। इस स्थिति में याथा‍शक्ति कुछ देर तक रुकें और श्वास छोड़ते हुए उल्टे क्रम में पुन: प्रारंभिक स्थिति में लौट आएं।
 
आसन के फायदे : श्वास लेने की क्षमता में होता है सुधार। रीढ़ की हड्डी के त्रिकास्थि को करता है मजबूत। पाचन क्रिया भी होती है मजबूत। पूरे शरीर को डिटॉक्स करता है। हाथ और पैरों की नसों को मजबूत करता है। ऊपरी धड़, कंधों और सीने को मजबूत बनाता है।
 
2. भस्त्रिका प्राणायाम : भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं। सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आंखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है। इस प्राणायाम को अच्छे से सिखकर मात्र 30 सेकंड किया जा सकता है।
 
सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। किसी को कोई रोग हो तो यह प्राणायम योग शिक्षक से पूछकर ही करें।
 
प्राणायाम के लाभ : भस्त्रिका प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर कर फेफड़ों को मजबूत बनाता है। इसके कई लाभ हैं।
3. भुजंगासन करें : पेट के बल लेटकर स्टेप ऐड़ी-पंजे मिले हुए रखें। ठोड़ी फर्श पर रखी हुई। कोहनियां कमर से सटी हुई और हथेलियां ऊपर की ओर। इसे मकरासन की स्‍थिति कहते हैं। धीरे-धीरे हाथ को कोहनियों से मोड़ते हुए आगे लाएं और हथेलियों को बाजूओं के नीचे रख दें। ठोड़ी को गरदन में दबाते हुए माथा भूमि पर रखे। पुन: नाक को हल्का-सा भूमि पर स्पर्श करते हुए सिर को आकाश की ओर उठाएं। फिर हथेलियों के बल पर छाती और सिर को जितना पीछे ले जा सकते हैं ले जाएं किंतु नाभि भूमि से लगी रहे। 30 सेकंड तक यह स्थिति रखें। बाद में श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे सिर को नीचे लाकर माथा भूमि पर रखें। छाती भी भूमि पर रखें। पुन: ठोड़ी को भूमि पर रखें और हाथों को पीछे ले जाकर ढीला छोड़ दें।
 
सावधानी : यदि फेफड़ों में कोई गंभीर रोग नहीं है तो इस आसन को किया जा सकता है। पेट में कोई रोग या पीठ में अत्यधिक दर्द हो तो यह आसन न करें। जिन लोगों का गला खराब रहने की, दमे की, पुरानी खांसी अथवा फेफड़ों संबंधी अन्य कोई गंभीर बीमारी हो, उनको यह आसन किसी योग प्रशिक्षक से पूछकर करना चाहिए।
 
भुजंगासन के लाभ : भुजंगासन से फेफड़ों की मांसपेशियां मजबूत होती है और फेफड़े के सभी अवरोध दूर होते हैं। यह कई रोगों में लाभदायक है।
 
4. वज्रोली मुद्रा : पूर्ण रेचन करके श्वास रोक दें। जितनी देर सहजता से श्वास रुके बार-बार वज्रनाड़ी (जननेंद्रिय) का संकोचन विमोचन करें। ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र (मूलाधार से चार अंगुल ऊपर रीढ़ में, जननेंद्रिय के ठीक पीछे) पर केंद्रित रहे। यह है वज्रोली मुद्रा।
 
वज्रोली मुद्रा के लाभ : वज्रोली क्रिया फेफड़े के साथ ही प्रजनन संस्थान को सबल बनाती है और यौन रोग में भी यह लाभदायक है।
 
5. वायु भक्षण : इसके बाद हवा को जानबूझकर कंठ से अन्न नली में निगलना। यह वायु तत्काल डकार के रूप में वापस आएगी। वायु निगलते वक्त कंठ पर जोर पड़ता है तथा अन्न नलिका से होकर वायु पेट तक जाकर पुन: लौट आती है। इसे वायु भक्षण योग कहते हैं। दोनों ही से फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
 
वायु भक्षण के लाभ : वायु भक्षण क्रिया अन्न नलिका को शुद्ध व मजबूत करती है। इससे फेफड़े भी शुद्ध और मजबूत बनते हैं। शुद्ध वायु में ही इसका अभ्यास करें।
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