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Written By अनिरुद्ध जोशी

प्रणाम मुद्रा का महत्व

नमस्कार मुद्रा योग

namaskar mudra yoga | प्रणाम मुद्रा का महत्व
सूर्य नमस्कार की शुरुआत भी इसी मुद्रा से होती है। इसी मुद्रा में कई आसन किए जाते हैं। प्रणाम विनय का सूचक है। इसे नमस्कार या नमस्ते भी कह सकते हैं। समूचे भारतवर्ष में इसका प्रचलन है। इस मुद्रा को करने के अनेकों फायदे हैं। योगासन या अन्य कार्य की शुरुआत के पूर्व इसे करना चाहिए। इसको करने से मन में अच्छा भाव उत्पन्न होता है और कार्य में सफलता मिलती है।
 
विधि : दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनाते हैं, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। सर्व प्रथम आँखें बंद करते हुए दोनों होथों को जोड़कर अर्थात दोनों हथेलियों को मिलाते हुए छाती के मध्य में सटाएँ तथा दोनों हथेलियों को एक-दूसरे से दबाते हुएँ कोहनियाँ को दाएँ-बाएँ सीधी तान दें। जब ये दोनों हाथ जुड़े हुए हम धीरे-धीरे मस्तिष्क तक पहुँचते हैं तो प्रणाम मुद्रा बनती है।
 
लाभ : हमारे हाथ के तंतु मष्तिष्क के तंतुओं से जुड़े हैं। हथेलियों को दबाने से या जोड़े रखने से हृदयचक्र और आज्ञाचक्र में सक्रियता आती है जिससे जागरण बढ़ता है। उक्त जागरण से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है। हृदय में पुष्टता आती है तथा निर्भिकता बढ़ती है।
 
इस मुद्रा का प्रभाव हमारे समूचे भावनात्मक और वैचारिक मनोभावों पर पड़ता है, जिससे सकारात्मकता बढ़ती है। यह सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी लाभदायक है।
 
अतः आइए, गुड मॉर्निंग, हेलो, हाय, टाटा, बाय-बाय को छोड़कर प्रणाम मुद्रा अपनाएँ और चित्त को प्रसन्न रखें।
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