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Written By WD

मुद्रा का महत्व

मुद्रा
- स्वामी ज्योतिर्मयानंद की पुस्तक से अं
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मुद्रा का शाब्दिक अर्थ है मुहर। चूँकि यह मन को आत्मा के साथ जोड़कर मुहरबंद कर देता है, इसलिए इस अभ्यास को मुद्रा कहा जाता है। मुद्रा के अभ्यास क्रम में साँस को रोका जाता है। प्राणों को नियंत्रित कर मन को संयमित करने में मुद्रा का अभ्यास अत्यंत प्रभावशाली है। इससे गुप्त शक्तियों का जागरण होता है।

आत्मशक्ति के उद्‍घाटन के बाद योगी बीमारियों को जीत कर जीवन के परम लक्ष्य ईश्वरसाक्षात्कार की ओर अग्रसर होता है। मुद्रा की प्राथमिकता विभिन्न केंद्रों की क्रियाशील सूक्ष्म शक्तियों पर मन को एकाग्र करना है। प्राणों के नियंत्रण से मन का नियंत्रण होता है और मानसिक नियंत्रण ईश्वरसाक्षात्कार के लिए राजमार्ग है।

प्रत्येक साधक को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्रा और क्रिया से पूर्ण लाभ लेने के लिए उन्हें मानवता की नि:स्वार्थ सेवा तथा अहिंसा, सत्य, शुचिता जैसे सद्‍गुणों के द्वारा चित्तशुद्धि करना आवश्यक है। नैतिक और धार्मिक सदाचार को अपनाए बिना केवल आसन करन मात्र से उनको लाभ नहीं प्राप्त हो सकता।

मुद्रा के अभ्यास से कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है। इसमें सफलता से साधक योग के उच्च सोपानों पर चढ़ता है तता उसे आत्मा की प्रसुप्त शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। उसके मन की चंचलता समाप्त होती है तथा यौनशक्ति का ओजस शक्ति में उदात्तीकरण हो जाता है। इस ओजस शक्ति की सहायता से योगी चित्त की गहराई में गोता लगाने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।

मुद्रा के अभ्यास से योगी का व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक हो जाता है। उसे ब्रह्मचर्य में दृढ़ता प्राप्त होती है। संकल्प बढ़ता है। चेहरे पर अद्भुत कांति प्राप्त होती है, संतुलित मन और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है।

प्रमुख मुद्राएँ : 1.महामुद्रा 2.महाभेद 3.योगमुद्रा 4.विपरीतकरणीमुद्रा 5.योनिमुद्रा 6.उन्मनीमुद्रा 7.शाम्भवीमुद्रा 8.काकीमुद्रा 9.अश्विनिमुद्रा 10.मातंगिनीमुद्रा 11.खेरचीमुद्रा 12.शक्तिचालिनीमुद्रा 13.वज्रोलीमुद्रा

पुस्तक : आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध (Yaga Exercises For Health and Happiness)
लेखक : स्वामी ज्योतिर्मयानंद
हिंदी अनुवाद : योगिरत्न डॉ. शशिभूषण मिश्र
प्रकाशक : इंटरनेशनल योग सोसायटी