- रवीन्द्र गुप्ता
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। आपसी संबंधों, प्रेम व सद्भाव का मानव जीवन में काफी महत्व है। आप अन्यों से जैसा व्यवहार करेंगे, वैसी ही छवि सामने वाले के मन में आपके प्रति बनेगी। अत: अन्यों से प्रेम व सद्भावपूर्ण व्यवहार ही किया जाए जिससे कि आपकी छवि सुशील व संस्कारी मनुष्य की बने।
मुस्कुराकर करें स्वागत
हम किसी से जब भी मिलें, तो मुस्कुराकर ही सामने वाले का स्वागत करें। मुस्कुराहट से सामने वाले पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा वह भी हर्षित-आकर्षित होता है।
आपसी हालचाल पूछा जाए
स्वागत पश्चात सामने वाले के हालचाल पूछे जाएं व उनके परिजनों, माता-पिता व पत्नी-बच्चों के बारे में पूछा जाए तो अधिक उचित रहता है।
वाणी में हो मिठास
आपसी वार्तालाप के दौरान व्यक्ति की वाणी में मिठास होनी चाहिए। मधुर व शिष्ट आवाज से सामने वाला भी प्रभावित होता है। कर्कश स्वर से मन खट्टा होता है व व्यक्ति सामने वाले से दूर से दूरतम होता चला जाता है।
वो कबीरदासजी का दोहा है न कि...
'ऐसी बानी बोलिए कि, मन का आपा खोय/
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।'
और ये भी है...
'ढाई आखर जो प्रेम का पढ़े, सो पंडित होय।'
तो मीठी बानी (वाणी) का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कटाक्ष न ही करें तो बेहतर
आपसी वार्तालाप के दौरान व्यक्ति को चाहिए कि वो सामने वाले पर कोई कटाक्ष या टीका-टिप्पणी न ही करे तो बेहतर रहेगा, क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस बात को पसंद नहीं करता है कि मेरी हंसी उड़ाई जाए व परिजनों के बारे में कोई कुछ उल्टा-सीधा बोले, वगैरह-वगैरह।
दूसरों की हंसी उड़ाने वाले संकुचित मनोवृत्ति के लोग हुआ करते हैं। वास्तव में ये लोग किसी हीनभावना या कुंठा से ग्रस्त होते हैं या किसी डिसऑर्डर (किसी भी एक मानसिक बीमारी) से ग्रस्त। ये लोग दूसरों की हंसी उड़ाने में 'अपनी श्रेष्ठता' समझते हैं तथा खुद को 'स्मार्ट' समझते हैं, जबकि वे वास्तव में होते ही नहीं। ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखना ही श्रेयस्कर है।
आचरण में भी हो प्रेम व सद्भाव
व्यक्ति के आचरण में भी प्रेम व सद्भाव होना चाहिए। खाली दिखावटीपन से काम नहीं चलेगा। 'चेहरे पर चेहरा' ओढ़ने वाले आखिरकार कहीं न कहीं पकड़ा ही जाते हैं और उनकी जो जगहंसाई होती है, सो अलग ही बात है। 'कृत्रिम आवरण ओढ़ने' वाले जमाने के सामने आखिरकार बेपर्दा होने पर कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहते हैं।
जरा सोचिएगा कि...
जरा सोचिएगा कि हम इस संसार में आए हैं तो क्या साथ लेकर आए थे? और क्या साथ लेकर जाएंगे? सबका सब यहीं का यहीं धरा रह जाएगा। अतीत से अब तक हमने देखा है कि कई राजा और रंक आए, और सबके सब धूल में मिल गए। कोई कुछ लेकर गया है क्या? फिर हम किस खेत की मूली हैं। और यह भी कि... जिन-जिन का नाम आज तलक जीवित है तो वह उनके श्रेष्ठ कर्मों के कारण ही जीवित है, न कि उनकी धन-दौलत के कारण।
गांधी-महावीर का प्रासंगिकता
आज भी भगवान महावीर और महात्मा गांधी को उनके श्रेष्ठ आचरण यथा दया, प्रेम, करुणा, अहिंसा व सद्भाव के कारण ही पूजा जाता है, न कि उनके कोई धनी-मानी होने के कारण। ये कोई अमीर व्यक्ति थे क्या? नहीं न! ये महापुरुष अपने श्रेष्ठ कर्मों के कारण सारे संसार में पूजनीय हैं। इन्हीं की फेहरिस्त में मदर टेरेसा, मार्टिन लूथर किंग (मि. किंग), नेल्सन मंडेला आदि का नाम भी लिया जा सकता है।
सुख-दु:ख में हो भागीदार
समाज-घर-परिवार में सुख-दु:ख का आना-जाना लगा रहता है। सुख यानी जन्मदिन व शादी-ब्याह व खुशी के किसी भी पल में तो सभी आते-जाते हैं, पर व्यक्ति के दु:ख में सम्मिलित होना भी एक अच्छे व्यक्ति की पहचान है। सामाजिकता के नाते इसे उचित कदम कहा जाएगा। किसी के दु:ख में सम्मिलित होकर दु:खी परिवार को सांत्वना देना व यह कहना कि 'चिंता न करो, ईश्वर और हम आपके साथ हैं' दु:खी परिवार को काफी संबल पहुंचाता है।
इस प्रकार हम आपसी प्रेम व सद्भभाव से हरद़िल-अज़ीज़ बन सकते हैं। मानव जीवन में आपसी प्रेम-सद्भाव व आचरण का बड़ा महत्व है। अत: सभी से मीठी बानी के साथ ही प्रेमपूर्ण व्यवहार ही किया जाना चाहिए।