गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025
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Written By ND

बीस में आदर्शवादी, चालीस में यथार्थवादी

बीस चालीस सुधा मूर्ति
- सुधा मूर्ति

ND
हाल ही में हमारे पुराने मित्रों का एक मिलन समारोह हुआ। हम औरतों की एक मंडली है, जिसमें शामिल हम लोग एक-दूसरे को तब से जानते हैं, जब हम छोटी लड़कियाँ थीं। हमने शादी से पहले आपस में मिलना-जुलना शुरू किया। शादी होने के बाद भी इसे जारी रखा, माँ बननेके बाद भी, और अब हम अपने बच्चों की शादियों में मिलते हैं।

उम्र के निशान हम पर दिखाई देते हैं, फिर भी हम कभी-कभी मिलते रहते हैं। कई बार हम में कुछ लोग सालों बाद एक-दूसरे से मिलते, लेकिन हम जल्द ही रिश्ते के धागों को पकड़कर जुड़ जाते।

पिछले पच्चीस सालों में बहुत कुछ बदल गया है। इनमें से बहुत से बदलाव ऐसे हैं, जिनकी पहले कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। हमारे बहुत से सपने थे, जिनमें से कुछ ही सच हो पाए थे। मेरी सहेली विमला कॉलेज के दिनों में बहुत खूबसूरत थी। हर कोई उसे फिल्म स्टार समझने की गलती कर बैठता था। वह अपनी सुंदरता के प्रति जागरूक और बहुत घमंडी भी थी।
  हाल ही में हमारे पुराने मित्रों का एक मिलन समारोह हुआ। हम औरतों की एक मंडली है, जिसमें शामिल हम लोग एक-दूसरे को तब से जानते हैं, जब हम छोटी लड़कियाँ थीं। हमने शादी से पहले आपस में मिलना-जुलना शुरू किया।      


जब हम पच्चीस सालों के बाद मिले, तो मैं यकीन ही नहीं कर पाई कि मेरे सामने खड़ी औरत विमला है। उसके काले घने बाल कहाँ गए? उसकी वो बेदाग रंगत कहाँ गई? वो किसी ढोलक की तरह लग रही थी, जिस पर झुर्रियाँ ही झुर्रियाँ हों। उसके बाल सफेद, पतले और छोटे काट दिए गए थे। वह दार्शनिक अंदाज में बातें कर रही थीं। खूबसूरती क्षणभंगुर होती है। जब आप जवान होते हैं, आप सोचते हैं कि सुंदरता सदा आपके साथ ही रहेगी। परंतु सुंदरता बुद्धिमत्ता की तरह नहीं होती है। बुद्धिमान लोग हमेशा बुद्घिमान ही रहते हैं।

मेरी सहेली विनुथा ने विमला के सिद्धांत को गलत सिद्ध कर दिया। विनुथा हमारे कॉलेज की बहुत होनहार लड़की थी। वह कॉलेज के सबसे अच्छे विद्यार्थियों में से एक थी। उसे मिनी कम्प्यूटर कहकर बुलाया जाता था। उसे हर क्षेत्र में वरदान मिला हुआ था- वह दिखने में सुंदर, प्रतिभावान और स्वभाव से सरल थी। उसके बारे में कोई अफवाहें नहीं उड़ती थीं। हम सब इस पर आश्चर्य करते कि कौन होगा, जिससे विनुथा शादी करेगी। वह इतनी अच्छी थी कि उसके बराबर का वर खोजना बड़ा कठिन था। विनुथा ने एक अच्छा लड़का तलाश लिया, जब वह कॉलेज मेंथी। वह बहुत होनहार था। हमने सोचा था कि विनुथा और पार्थ बहुत खुश रहेंगे और एक-दूसरे की योग्यता पर गर्व करेंगे। हम कितने गलत थे!

जब मैं कई सालों के बाद विनुथा से मिली, वह बुझी-बुझी-सी लगी। वह अपने जीवन का रस खो चुकी थी। कॉलेज के दिनों में वह बहुत ऊर्जावान थी। कॉलेज का कोई कार्यक्रम हो या व्यंजन प्रतियोगिता, या फिर गणित की पहेली- वह इन सबमें इतनी रुचि लेती, जितनी शायद हीकोई और लेता हो। परंतु अब उसका वह उत्साह, हमेशा ताने कसने वाले उसके पति की वजह से ठंडा पड़ गया था।

'क्या तुम्हारी रैंक लगी?' वह उसे सुई चुभाता। अक्सर वह कहता, 'क्या तुम इतनी साधारण-सी बात नहीं समझ सकती?' या फिर वह उसे चुनौती देकर कहता, 'देखते हैं, इस सवाल को हल करने में तुम कितना समय लेती हो और मुझे कितना वक्त लगता है?'

विनुथा को महसूस होने लगा कि बुद्धिमान होना भी एक अभिशाप है। हमारा समाज अजीब है। औरत हमेशा अपने पति की कीर्ति और सम्मान का आनंद लेती है लेकिन इसका उलट शायद ही कभी सत्य होता है। बहुत कम पुरुष अपनी पत्नी की प्रतिभा की सराहना करते हैं।

दूसरी ओर रत्ना, हर मामले में बहुत साधारण लड़की थी। बिना किसी खासियत वाले इंसान को लोग शायद ही याद रखते हैं। वह स्नातक तक पढ़ी, शादी की और गृहस्थी बसा ली, जैसा कि ज्यादातर मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय लोग करते हैं। रत्ना का पति रघु एक क्लर्क औरडरपोक व्यक्ति था।

एक बार जब रत्ना हमारे मिलन समारोह में आई, तो हम सब आश्चर्यचकित थे। वह बहुत बदल चुकी थी। वह एक अग्रणी व्यापारी महिला थी और बहुत से पुरस्कार हासिल कर चुकी थी। वह बहुत ज्यादा फैशनपरस्त भी हो चुकी थी। यह बदलाव बहुत असाधारण था, हम सब उसे देखते ही शुरू होगए। विमला ने रत्ना से उसकी कहानी सुनाने के लिए कहा।

'यह एक पारंपरिक गरीब से अमीर बनने की कहानी है, ठीक है', रत्ना ने कहा। 'शादी के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मेरा पति एक बहुत अच्छा अनुगामी है, ना कि अगुआ। वह हमेशा किसी-ना-किसी की सुनता है। परिवार में सास मालिक हुआ करती थी।'

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि यदि अभिभावक बहुत कठोर हों तो बच्चे या तो बागी प्रवृत्ति के हो जाते हैं, जिन पर नियंत्रण करना मुश्किल होता है या फिर वे कायर या अधीन हो जाते हैं। हो सकता है कि रत्ना का रघु दूसरी श्रेणी में आता हो।

रत्ना अपनी बात जारी रखे हुए थी : 'मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने फैसले खुद करने होंगे, नहीं तो मैं हमेशा अपनी सास की गुलाम बनकर रह जाऊँगी। मैंने तय किया कि मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनूँगी। तुम तो जानते हो, कि मैं बहुत ज्यादा प्रतिभाशाली या हुनरमंद नहीं थी। मेरा अकादमिक रिकॉर्ड भी औसत था। इस पृष्ठभूमि के साथ कोई नौकरी हासिल करना कठिन था। एक चीज जो मैं जानती थी, वह थी सिलाई। इसलिए मैंने घर में सिलाई शुरू की। शुरुआत में मैंने कपड़ों पर और बाद में चमड़े पर काम किया। जल्द ही मैंने व्यापार को समझ लिया और अपने ग्राहकों की माँग पूरी करने के लिए मैंने अपने काम का विस्तार किया।'

'तुम मसालों की ओर कब बढ़ी?' हमने पूछा।

'एक बार जब मैं कपड़ों में सफल हो गई, मेरा ध्यान घरेलू उत्पादों पर गया। सफलता की तरह कुछ भी आगे नहीं बढ़ाता। मैं ग्राहकों को भगवान मानती हूँ। यह सिद्धांत कि- ग्राहक की संतुष्टि के लिए काम करो, अपने संतोष के लिए नहीं, बहुत काम करता है। जीवन सबसे बड़ा शिक्षक है। मैंने सबकुछ अनुभव से सीखा। हर गलती से कुछ सीखते हुए, मैंने उन्हें नहीं दोहराया।'

हम सभी रत्ना के साहस और उसकी जीवन के मोड़ से चकित और आनंदित थे। हम सभी सोचते थे कि विनुथा बहुत सफल और रत्ना औसत रहेगी। लेकिन सबकुछ पूरी तरह बदल गया। बीस की उम्र में हम सब आदर्शवादी थे, चालीस में यथार्थवादी बन गए।