हिन्दी का 'रोमनीकरण' घातक है...
भाषाविद विजय कुमार मल्होत्रा के मुताबिक बेहतर होगा कि इस मुद्दे पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के लिए हम अपने तर्क मात्र इस बिंदु पर सीमित रखें कि हिन्दी जैसी भाषा के लिखने के लिए कौन-सी लिपि उपयुक्त है, देवनागरी या रोमन। रोमन लिपि की 26 अक्षरों की सीमा के कारण अंग्रेज़ी के महान नाटककार बर्नार्ड शॉ ने इसे 40 अक्षरों की लिपि बनाने का सुझाव दिया था, लेकिन परंपरावादी अंग्रेज़ों ने अपने ही महानतम लेखक की बात पर भी गौर नहीं किया।
हिन्दी एक ध्वन्यात्मक भाषा है और इसे लिखने के लिए सदियों से एक ऐसी अक्षरात्मक प्रणाली विकसित हो गई है जिसे भाषा वैज्ञानिक विश्व की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि मानते हैं। हम जैसा बोलते हैं लगभग वैसा ही लिख लेते हैं। कुछ वर्ष पूर्व पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल चीन के दौरे पर गईं और चीनी नेताओं के नामों के सही उच्चारण के लिए उन्होंने देवनागरी लिपि का सहारा लिया। यह तो रही विदेशी शब्दों के देवनागरी में लिप्यंतरण की बात। अगर हम हिन्दी के प्रचलित शब्दों को रोमन में लिखना शुरू कर देंगे तो हम हर जगह पर और हर समय हंसी के पात्र ही बनते रहेंगे। कला शब्द को रोमन में Kala लिखते हैं तो आप अनायास ही इसे काला, कला या काल के रूप में पढ़ सकते हैं। राम और रमा को रोमन में Rama ही लिखा जाएगा।
इसके अलावा वैश्वीकरण की प्रक्रिया में अंग्रेज़ी के अनेक शब्द चाहे-अनचाहे हमारे दैनिक व्यवहार में अनायास ही घुसपैठ करने लगे हैं और उन्हें सही उच्चारण के साथ लिखने के लिए हमें उन्हें लिप्यंतरित करके देवनागरी में लिखने के लिए विवश होना पड़ता है। उनके सही उच्चारण के लिए देवनागरी का ही एकमात्र विकल्प हमारे सामने रह जाता है। ऐसी स्थिति में भारत सरकार द्वारा विकसित परिवर्धित देवनागरी से हम न केवल अंग्रेज़ी के उर्दू और अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में बिल्कुल सही लिख पाते हैं। Man (मैन) और main (मेन), snacks (स्नैक्स) और snakes (स्नेक्स), tale (टेल) और tell (टैल), pan (पैन) और pain (पेन), sale (सेल) और sell (सैल) आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। अंग्रेज़ी की ऑ की ध्वनि के सही उच्चारण के लिए भी परिवर्धित देवनागरी में व्यवस्था कर ली गई है। बाल और बॉल, हाल और हॉल जैसे सूक्ष्म अंतर को भी ग्रहण करने के लिए देवनागरी सक्षम हो गई है। इन तथ्यों के आलोक में अगर हिन्दी को लिखने के लिए रोमन लिपि अपनाई जाती है तो हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेंगे और हमारी ध्वनियों का वैविध्य और सौष्ठव पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा।
ओम विकास : श्रीमान चेतन भगत जी - क्षमा करें, पर मैं आपसे और उस पूरे अभियान से असहमत हूँ, जहाँ आप हिन्दी को देवनागरी की बजाय रोमन में ही लिखे जाने को पूर्ण स्वीकार्यता देने की बात करते हैं। ये सही है कि एसएमएस और व्हॉट्स एप पर रोमन में लिखी हिन्दी भी उपयोग में आती है, मगर उससे कहीं अधिक नए फ़ोन और की-बोर्ड में उपलब्ध सुविधाओं के कारण देवनागरी में लोग लिख-पढ़ रहे हैं। बाज़ार की ख़ातिर ही सही, फ़ोन निर्माताओं को ऐसा करना पड़ा है। उसका उपयोग भी हो रहा है। हम सभी कई बार रोमन में संदेश या अपनी पोस्ट लिख देते हैं, पर देवनागरी को छोड़कर पूरी तरह रोमन अपना लेने का ये लज्जाजनक आत्मसमर्पण अस्वीकार्य है।
ये भी ग़लत है कि केवल अंग्रेज़ी से ही रोज़गार मिलता है। सही परिवेश और निर्णायक कुर्सियों पर बैठे अंग्रेज़ीदाँ लोगों के कारण ऐसा माहौल बनाया गया है। अंग्रेज़ी में लिखकर हिन्दी में अपने आलेख अनुवाद करवाकर छपवाने वाले कमर्शियल लेखकों के लिए रोमन को यों स्वीकार्यता दे देना आसान है पर आचार्य रामचंद्र वर्मा और मोहन राकेश की जयंती पर समूचा हिन्दी समाज भी इसे मौन स्वीकृति दे देगा क्या?
डॉ. एम. एल. गुप्ता 'आदित्य', अध्यक्ष, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई : मेरे विचार में रोमन में हिन्दी निश्चय ही हिन्दी को खत्म करने की ओर एक घातक कदम होगा। वैसे भी हिन्दी मीडिया के स्वयंभू प्रगतिशील मीडियीकर्मी या उनके मालिक हिन्दी के चलते-फिरते जीवित शब्दों की हत्या करके उनके स्थान पर अंग्रेजी शब्दों को बैठाने तथा देवनागरी के स्थान पर हिन्दी का रोमनीकरण कर हिन्दी को मिटाने के लिए कटिबद्ध दिखाई दे रहे हैं। इसे आप अंग्रेजीदां लेखकों की देवनागरी न आने या उसमें प्रवाह न होने की मजबूरी या भारतीय भाषाओं को मिटाने के लिए एक शिगूफा जो कहना चाहें कहें। जो रोमन लिपि अंग्रेजी के उच्चारण तक को अभिव्यक्त नहीं कर पाती वह हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं को कैसे अभिव्यक्त कर सकती है। चेतन भगत जी के इस शिगूफे को उनकी किस चेतना के रूप में देखें या अंग्रेजी की भक्ति के रूप में। इसे हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के विकास का कार्य कहें या विनाश? विद्वान गंभीरतापूर्वक विचार करें और मुखरता से अपने तर्कसंगत विचार भी रखें।