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Last Modified: बुधवार, 18 जनवरी 2017 (11:27 IST)

उत्तराखंड में भाजपा का कांग्रेसीकरण होने से गहराया भितरघात का संकट

उत्तराखंड में भाजपा का कांग्रेसीकरण होने से गहराया भितरघात का संकट - Uttarakhand BJP ticket allocation
भाजपा को उत्तराखंड में अजीबोगरीब स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में टिकट पाने वाले उसके अपने ही नहीं, बल्कि कांग्रेस से बगावत करके आए नेता भी हैं। जिस पार्टी के प्रदेश में तीन-तीन मुख्यमंत्री रह चुके हैं और जो फिलहाल सांसद हैं वे टिकट बंटवारे पर दखल देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। दूसरी ओर भाजपा के टिकट वितरण में संघ और बड़े नेताओं की छाप साफ नजर आई। इससे टिकट वितरण का गणित गड़बड़ा रहा है।
दरअसल, कांग्रेस छोड़ कर पिछले साल भाजपा में आए नेताओं को खुश करने की कोशिश में पार्टी ने इन सभी को टिकट दे दिए है। इससे पार्टी के वे सारे नेता दुखी हैं जो बरसों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं और टिकट की उम्मीद कर रहे थे और उन्हें नहीं मिला। अब ये नेता निर्दलीय उम्मीदवार के तौर खड़े होने की घोषणा कर रहे हैं। इनमें से कुछ तो अपनी पार्टी को सबक सिखाने के इरादे से कांग्रेस में शामिल होने का मन बना चुके हैं।
 
कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में आए दिग्गजों ने वैसे ही पार्टी का टिकट बंटवारे का गणित बिगाड़ दिया है। कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत नीत कांग्रेस की लड़ाई एक तरह से अपनी ही टीम कांग्रेस 'बी' से है, जो कि अब भाजपा में शामिल हो चुकी है। निश्चित ही उत्तराखंड में इससे भाजपा के भविष्य पर बुरा असर पड़ने वाला है। भाजपा ने यहां कांग्रेसियों के चक्कर में अब संगठन से जुड़े कई बड़े नेताओं को बागियों के लिए साइडलाइन करने में भी कोई झिझक नहीं दिखाई। 
 
भाजपा ने सोमवार शाम को 64 प्रत्याशियों की सूची जारी की। इस सूची में कई दावेदारों के नामों को काट कर नए सूरमाओं को तरजीह दी गई है। न केवल 18 मार्च 2016 को हुए राजनीतिक बवाल के बाद भाजपा का दामन संभालने वाले 11 में से 10 विधायकों को टिकट दिया बल्कि, एक विधायक को किए वादे के अनुसार उनके पुत्र को भी चुनावी मैदान में उतारा।
 
भाजपा ने टिकट वितरण में सर्वे के आधार पर जिताऊ दिखाए गए दावेदारों पर दांव खेलना ज्यादा उचित समझा। इसके बाद यह देखा गया कि राजनीतिक आका कितने लोगों के साथ ताल ठोक कर खड़े हैं।
 
गढ़वाल व कुमाऊं की पर्वतीय सीटों पर किए गए टिकट वितरण में इसकी छाप साफ नजर आती है। जिन्होंने टिकट के लिए अपने चहेतों के लिए पैरवी की उन्हें स्पष्ट ताकीद की गई है कि वे इन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी लें वरना हार का ठीकरा माथे फूटेगा। हालांकि, इसमें प्रत्याशी के साथ ही उसके अपने वोट बैंक को भी तोला गया।
 
इसके अलावा संगठन में पकड़ और हाईकमान के प्रति अनुशासित व्यवहार को भी परखा गया। ऐसे प्रत्याशी जो बीते चुनाव में दल से बगावत कर चुनाव लड़े और फिर से पार्टी का दामन थामा, इनसे इस बार पार्टी ने किनारा करने से कोई देरी नहीं लगाई। बीते चुनावों में भितरघात करने वालों पर भी अमूमन पार्टी का यह रवैया देखने को मिला है।
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