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Written By अवनीश कुमार
Last Modified: सोमवार, 26 अक्टूबर 2020 (11:16 IST)

UP उपचुनाव : घाटमपुर सीट बनी BJP के लिए चुनौती, मिल रही है कांटे की टक्कर

UP उपचुनाव : घाटमपुर सीट बनी BJP के लिए चुनौती, मिल रही है कांटे की टक्कर - Uttar Pradesh by-election Ghatampur seat BJP
लखनऊ। उत्तरप्रदेश की 7 सीटों पर हो रहे उपचुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने कमर कस ली है, लेकिन कानपुर की घाटमपुर सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर भाजपा बेहद संघर्ष करती हुई नजर आ रही है।

1977 में अस्तित्व में आई घाटमपुर विधानसभा सीट पर 3 बार कांग्रेस के पास रही तो बाकी दो बार जनता दल, चार बार सपा और एक बार बसपा के पास रही लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कद्दावर महिला प्रत्याशी कमल रानी वरुण ने 1977 से इस सीट पर अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही बीजेपी का परचम लहरा दिया था।

इसके चलते उत्तरप्रदेश में बीजेपी सरकार ने घाटमपुर सीट को वीआईपी सीट का दर्जा देते हुए कमल रानी वरुण को मंत्री पद से भी नवाजा था, लेकिन कोरोना की चपेट में आने के बाद मंत्री कमल रानी वरुण के निधन होने के बाद घाटमपुर सीट खाली हो गई है और अपनी कद्दावर महिला विधायक को खो चुकी बीजेपी के सामने एक बार फिर घाटमपुर विधानसभा में अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कई मुश्किलें सामने आ खड़ी हुई है। इसके चलते बीजेपी के कई कद्दावर नेता लगातार घाटमपुर विधानसभा में होने वाले उपचुनाव को लेकर रात-दिन एक करते हुए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
 
यह हैं जातिगत समीकरण : घाटमपुर विधानसभा में 2017 के आंकड़ों के अनुसार 3,07,967 लाख मतदाता है। इसमें 1,68,367 पुरुष तो 1,39,595 महिला है लेकिन जाति समीकरण के अनुसार इस सीट पर दलित वोटरों का बोलबाला है और अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो 1,08,000 लाख दलित, 45,000 ब्राह्मण, 22000 ठाकुर, 22000 यादव, 4200 कुशवाहा, 22500 निषाद, 28000 मुस्लिम, 18000 कुर्मी, 18000 पाल, 20000 हजार अन्य मतदाता हैं, लेकिन इस सीट पर हार जीत का फैसला दलित और ब्राह्मण वोट ही करता है। इसका ही नतीजा था कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में घाटमपुर में इन दोनों जाति के मतदाता का रुझान बीजेपी के तरफ कमला रानी वरुण के चलते हो गया था और लंबे समय से घाटमपुर विधानसभा में बीजेपी का परचम लहराने का सपना भी पूरा हो गया था।
 
दिग्गजों ने किया था प्रचार : 2017 के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो घाटमपुर सीट पर विजय पताका फहराने के लिए सभी पार्टी दिग्गज नेताओं ने चुनावी सभाएं की थीं। इसमें कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने भी इस सीट पर एक जनसभा को संबोधित किया था तो वहीं बीजेपी की तरफ से नीतीश कुमार, पीयूष गोयल ने भी जनसभा की थी और लगभग 6 महीने पहले से ही ओम माथुर, सुनील बंसल भी इस सीट को जिताने के लिए लग गए थे तब जाकर कहीं 1977 के बाद बीजेपी 2017 में परचम लहरा पाई थी।
 
बीजेपी ने खोला विकास का पिटारा : उपचुनाव की घोषणा से ठीक पहले बीजेपी की तरफ से दिग्गज नेता घाटमपुर विधानसभा का दौरा भी करने लगे थे। इसी दौरान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने घाटमपुर से ही कई बड़े कार्यों का शिलान्यास करते हुए घाटमपुर में विकास के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया था। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह घाटमपुर विधानसभा में कार्यकर्ताओं के साथ लगातार बैठक कर घाटमपुर सीट जीतने की कार्ययोजना तैयार करते हुए नजर आ रहे थे। कांग्रेस-सपा और बसपा भी बीजेपी के जीत रथ को रोकने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़़ रही है।
 
कांटे की जंग : घाटमपुर में 3 नवंबर को होने वाले उपचनाव के मतदान को लेकर अगर हाला स्थिति पर नजर डालें तो यह कहना बेहद कठिन है कि इस सीट पर किसकी जीत होगी और किसकी हार होगी लेकिन बीजेपी के लिए यह सीट बेहद कांटोंभरी होने वाली है। और उसके पीछे की मुख्य वजह टिकट वितरण को लेकर हुआ है जहां एक और घाटमपुर में स्वर्गीय कमला रानी वरुण की बेटी स्वप्निल वरुण को लेकर लोगों के बीच चर्चा होने लगी थी और कहीं ना कहीं उन्हें घाटमपुर का सबसे मजबूत चेहरा माना जा रहा था, लेकिन ऐन वक्त पर बीजेपी ने उन्हें टिकट न देते हुए उपेंद्र पासवान हो प्रत्याशी बना दिया।

इसके बाद से स्वर्गीय कमला रानी वरुण के करीबी नेता बीजेपी के इस फैसले से बेहद नाराज हैं। एक वर्ग विशेष जो मजबूती के साथ हर चुनाव में बीजेपी के साथ खड़ा दिखता था उसकी भी नाराजगी घाटमपुर के उपचुनाव में देखने को मिल रही है। चुनावी समीकरण कुछ ऐसे बन गए हैं जिसमें बीजेपी के उपेंद्र पासवान, कांग्रेस के डॉ. कृपाशंकर संखवार, सपा के इंद्रजीत और बसपा के कुलदीप संखवार चारों ही इस सीट पर लड़ते हुए नजर आ रहे हैं।
 
1977 से 2017 तक के जीते विधायक 
1. 1977 में जनता पार्टी से रामआसरे अग्निहोत्री।
2. 1980 में कांग्रेस से शिवनाथ कुशवाहा। 
3. 1985 में कांग्रेस से शिवनाथ कुशवाहा।
4. 1989 में जनता पार्टी से रामआसरे अग्निहोत्री।
5. 1991 में कांग्रेस से शिवनाथ कुशवाहा।
 6. 1993 में राकेश सचान सपा।
 7. 1996 में राजाराम पाल सपा। 
 8. 2002 राकेश सचान सपा।
 9. 2007 में रामप्रकाश कुशवाहा बसपा,
 10. 2012 में इंद्रजीत कुरील सपा।
 11. 2017 में कमला रानी वरुण बीजेपी।
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