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कामिल बेहज़ादी-भोपाल
न तुमने ख़ैरियत पूछी, न यारों का पयाम आयाजिसे दुश्मन समझते थे, वही मुश्किल में काम आयाये मैख़ाना भी शायद गर्दिशों का इक खिलौना है कभी गर्दिश में हम आए, कभी गर्दिश में जाम आयाचमन वालों रफ़ीक़ाने-चमन से बेरुख़ी कैसीन फूलों ने दुआएँ दीं, न कलियों का सलाम आया कोई वादा शिकन चेहरा नज़र आया है पानी मेंजो दरिया के किनारे से दिवाना तिश्ना काम आयान कलियों में कशिश, गुल में महक, शबनम में ठंडक है बड़े कमज़ोर हाथों में चमन का इंतिज़ाम आया वो अपने क़ुव्वते-बाज़ू से पिंजरा भी उड़ा लाया शिकारी तो ये समझे थे परिन्दा ज़ेरे-दाम आया वली से, मीर, ग़ालिब से फ़िराक़-ओ-फ़ैज़ तक कामिल हमारा भी ग़ज़ल के चाहने वालों में नाम आया2.
यूँ तेरी आँख में जलते हुए आँसू आए गाइका जैसे किसी झील पे दीपक गाएसाँवले रुख़ पे तेरे सुबहे-बनारस का समाँनर्म ज़ुल्फ़ों में तेरी शाम-ए-अवध लहराए यूँ निकल आई है आकाश के माथे पे धनक बाम पर जैसे कोई शोख़ नहा कर आए यूँ मेरे दिल में तेरा दर्द चमक उट्ठा है जैसे टूटे हुए मन्दिर में दिया जल जाए यूँ गुज़रती हैं तेरे ग़म में ये तन्हा रातेंजैसी रेह रेह के अजंता में कोई घबराएसज गए शहर वहाँ रोशनियों के कामिल पड़ गए हैं मेरे दाग़ों के जहाँ भी साए