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ग़ज़लें : मीर तक़ी मीर
1.
गुल को महबूब में क़यास कियाफ़र्क़ निकला बहुत जो बास किया दिल ने हम को मिसाल-ए-आईना एक आलम से रूशनास किया कुछ नहीं सूझता हमें उस बिन शौक़ ने हम को बेहवास कियासुबहा तक शम्आ सर को धुनती रहीक्या पतिंगे ने इल्तिमास कियाऐसे वहशी कहाँ हैं ऐ खूबाँ मीर को तुम अबस उदास किया2.
क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल सारे आलम को मैं दिखा लायादिल के इक क़तरा खूँ नहीं है बेश एक आलम के सर बला लाया सब पे जिस बार ने गिरानी की उस को ये नातवाँ उठा लायादिल मुझे उस गली में ले जाकर और भी खाक में मिला लायाइब्तिदा ही में मर गए सब यार इश्क़ की कौन इंतिहा लायाअब तो जाते हैं मैकदे से मीर फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया 3.
इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्याआगे-आगे देखिए होता है क्या क़ाफ़ले में सुबहा के इक शोर है यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्यासब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मींतुख़्म-ए-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्याये निशान-ए-इश्क़ हैं जाते नहीं दाग़ छाती के अबस धोता है क्याग़ैरत-ए-यूसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़ मीर इस को रायगाँ खोता है क्या4.
बेकली बेख़ुदी कुछ आज नहीं एक मुद्दत से वो मिज़ाज नहीं दर्द अगर ये है तो मुझे बस है अब दवा की कुछ एहतेयाज नहीं हम ने अपनी सी की बहुत लेकिनमरज़-ए-इश्क़ का इलाज नहीं शहर-ए-ख़ूबाँ को ख़ूब देखा मीरजिंस-ए-दिल का कहीं रिवाज नहीं 5.
इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ इससे आँखें लगीं तो ख़्वाब कहाँ हस्ती अपनी है बीच में परदा हम न होवें तो फिर हिजाब कहाँ गिरया-ए-शब से सुर्ख हैं आँखें मुझ बला नोश को शराब कहाँ इश्क़ का घर है मीर से आबाद ऐसे फिर ख़ाँनुमाँ ख़राब कहाँ
6.
नहीं विश्वास जी गँवाने के हाय रे ज़ौक़ दिल लगाने केमेरे तग़यीर-ए-हाल पर मत जाइत्तेफ़ाक़ात हैं ज़माने केदम-ए-आखिर ही क्या न आना था और भी वक़्त थे बहाने के इस कदूरत को हम समझते हैं ढब हैं ये ख़ाक में मिलाने केदिल-ओ-दीं, होश-ओ-सब्र, सब ही गए आगे-आगे तुम्हारे आने के 7.
मसाइब और थे पर दिल का जानाअजब इक सानेहा सा हो गया है सरहाने मीर के आहिस्ता बोलोअभी टुक रोते-रोते सो गया है 8.
उम्र भर हम रहे शराबी से दिल-ए-पुर्खूं की इक गुलाबी सेखिलना कम-कम कली ने सीखा हैउसकी आँखों की नीम ख़्वाबी से काम थे इश्क़ में बहुत ऐ मीर हम ही फ़ारिग़ हुए शताबी से 9.
तुम नहीं फ़ितना साज़ सच साहब शहर-ए-पुरशोर इस ग़ुलाम से है कोई तुझ सा भी काश तुझ को मिलेमुद्दुआ हम को इंतिक़ाम से है शे'र मेरे हैं सब ख़्वास पसन्द पर मुझे गुफ़्तगू अवाम से है सह्ल है मीर का समझना क्याहर सुख़न उसका इक मक़ाम से है 10.
नाला जब गर्मकार होता है दिल कलेजे के पार होता है सब मज़े दरकिनार आलम के यार जब हमकिनार होता है जब्र है, क़ह्र है, क़यामत है दिल जो बेइख़तियार होता है11.
यही इश्क़ ही जी खपा जानता है कि जानाँ से भी दिल मिला जानता है मेरा शे'र अच्छा भी दानिस्ता ज़िद से किसी और ही का कहा जानता हैज़माने के अक्सर सितम्गार देखे वही ख़ूब तर्ज़-ए-जफ़ा जानता है