ग़ज़लें : अहमद अली म्ररहूम--जावरा
उनसे हर रोज़ न मिलने की शिकायत कैसीदिल-ए-नादाँ ये हुकूमत पे हुकूमत कैसीदी बुलन्दी मुझे ऊंचे से गिराने के लिएये ज़माने की शरारत है इनायत कैसीमंज़िल-ए-यार भी है, सामने दिलदार भी है ऎश-ए-फ़िरदोस है ऎ शेख इबादत कैसीमिलने वाले तेरे समझे हैं,न समझोगे कभीसब्र क्या चीज़ है होती है क़नाअत कैसीसामने वादि-ए-पुरखार है मैं आबला पाऎ खुदा तेरी मदद चाहिए हिम्मत कैसीनग़मा संजी है तेरी बुलबुल-ए-खुश लेह्जा अबसकान फूलों के हैं बेकार समाअत कैसीइश्क़ से मरते हो और इश्क़ पे मरते भी हो मरज़ुलमौत से अहमद ये मोहब्बत कैसी