आतिश (ख्वाजा हैदर अली) की ग़ज़ल
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्याकेहती है तुझको खल्क़-ए-खुदा ग़ाएबाना क्या ज़ेरे ज़मीं से आता है गुल हर सू ज़र-ए-बकफ़क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया खज़ाना क्या चारों तरफ़ से सूरत-ए-जानाँ हो जलवागर दिल साफ़ हो तेरा तो है आईना खाना क्यातिब्ल-ओ-अलम न पास है अपने न मुल्क-ओ-माल हम से खिलाफ़ हो के करेगा ज़माना क्या आती है किस तरह मेरी क़ब्ज़-ए-रूह को देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या तिरछी निगह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार जब तीर कज पड़ेगा उड़ेगा निशाना क्या?यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तू न दे आतिश ग़ज़ल ये तूने कही आशिक़ाना क्या?