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ग़ज़ल : फ़िराक़
ये तो नहीं कि ग़म नहींहाँ! मेरी आँख नम नहीं तुम भी तो तुम नहीं हो आज हम भी तो आज हम नहीं अब न खुशी की है खुशीग़म भी अब तो ग़म नहीं मेरी नशिस्त है ज़मीं खुल्द नहीं इरम नहीं क़ीमत-ए-हुस्न दो जहाँ कोई बड़ी रक़म नहीं लेते हैं मोल दो जहाँ दाम नहीं दिरम नहींसोम-ओ-सलात से फ़िराक़ मेरे गुनाह कम नहीं