ग़ज़लें : मौलाना अल्ताफ़ हुसैन हाली
1.
है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूबतर कहाँ अब देखिए ठहरती है जाकर नज़र कहाँ यारब इस इख़तिलात का अंजाम हो ब्ख़ैर था उसको हम से रब्त मगर इसक़दर कहाँ बस हो चुका बयान कसल-ओ-रंज-ओ-राह काख़त का मेरे जवाब है नामाबर कहाँ कोनोमकाँ से है दिल-ए-वहशी किनारागीर इस ख़ानुमाँ ख़राब ने ढूंडा है घर कहाँ हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और आ लम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की दिल चाहता न हो तो ज़ुबाँ में असर कहाँ '
हाली' निशात-ए-नग़मा-ओ-मय ढूंडते हो अब आए हो वक़्त-ए-सुबह रहे रात भर कहाँ ग़ज़ल के क़ठिन शब्दों के अर्थ जुस्तुजू---- तलाश---खोज, ख़ूब---अच्छा, ख़ूबतर-अधिक अच्छाइख़तिलात--मेलजोल, ब्ख़ैर---सकुशल--ख़ैरयत से, रब्त--सम्बंध,अंजाम---परिणाम, इसक़दर--इतना, बयान---बखान, लसल---सुसती, रंज--दुख, राह---पथ--रास्ता, नामाबर---पत्र लाने वाला, कोनोमकाँ----दुनिया-- संसार,दिलेवहशी----पागल दिल, किनारागीर---किनारे लगा हुआ,ख़ानुमाँख़राब----बरबाद हो चुका घर, तर्क-ए-इश्क़--प्रेम न करनानिशात-ए-नग़मा-ओ-मय--संगीत और शराब का आनन्द