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ग़ज़लें : अख़्तर शीरानी
पेशकश : अज़ीज़ अंसारी 1.
दिल में 'ख़्याल-ए-नर्गिस-ए-जानाना' आ गया फूलों से खेलता हुआ दीवाना आ गयाबादल के उठते ही 'म-ओ-पैमाना' आ गया---------- बिजली के साथ साथ 'परीख़ाना' आ गया-- (परियों का घर) मस्तों ने इस अदा से किया 'रक़्स-ए-नौबहार'- (नई बहार की खुशी) पैमाना क्या कि 'वज्द' में मैख़ाना आ गया---- (नशे की हालत में) उस 'चश्म-ए-मौफ़रोश की तासीर' क्या कहूँ--- (शराब बेचने वाली) आँखों तक आज आप ही पैमाना आ गया (आँख का असर) मालूम किस को 'क़ैस' की दीवानगी की शान------ (मजनू) हंगामा सा बपा है कि दीवाना आ गयाअख़्तर ग़ज़ब थी 'एह्द-ए-जवानी की दास्ताँ'- (जवानी की कहानी) आँखों के आगे एक परीख़ाना आ गया 2.
झूम कर उठ्ठी है फिर 'कोहसार' से काली घटा--- (परबत) कैसी मस्ताना घटा है, कितनी मतवाली घटादेखना कैसा ये बरखा रुत ने जादू कर दियाहर कली बिजली बनी है और हर डाली घटा'
सबज़ा-ओ-गुल' झूमते हैं, 'दश्त-ओ-गुलशन' मस्त हैं मैकदे बरसा रही है, हो के मतवाली घटाछाई है किस धूम से 'गुलज़ार-ओ-कोह-ओ-दश्त' परआह ये पहली घटा, रंगीं घटा, काली घटाउनकी 'ज़ुल्फ़-ए-मुश्क्बू' की बू चुरा कर लाई है वरना क्यों आती है इतराती हुई काली घटा'
सब्ज़' मख़मल सी बिछी जाती है 'फ़र्श-ए-ख़ाक पर हर तरफ़ लहका रही है कैसी हरयाली घटादिल से आती हैं 'सदाएँ','बेख़ुदी-ए-शौक़ में'------- (आवाज़ें) मेरे सीने में समा जाए ये मतवाली घटा उनको भी 'हमराह' ले आती तो कोई बात थी------ (साथ में)वरना अख़्तर सच ये है किस काम की काली घटा
3.
न छेड़ 'ज़ाहिद-ए-नादाँ'-शराब पीने दे--- (धार्मिक उपदेशक) शराब पीने दे, 'ख़ानाख़राब' पीने दे------- (बुरा आदमी) अभी से अपनी नसीहत का 'ज़ेहर' दे न मुझेअभी तो पीने दे और बेहिसाब पीने देमैं जानता हूँ छलकता हुआ गुनाह है ये तो इस गुनाह को 'बेएहतिसाब' पीने दे------ (बिना हिसाब किए)फिर ऎसा वक़्त कहाँ, हम कहाँ, शराब कहाँ'
तिलिस्म-ए-देह्र' है 'नक़्श-ए-बरआब' पीने दे--(दुनिया का जादू), (पानी के ऊपर का रंग)मेरे दिमाग़ की दुनिया का 'आफ़ताब' है ये------(सूरज) मिला के बर्फ़ में ये आफ़ताब पीने दे किसी हसीना के बोसों के क़ाबिल अब न रहेतो इन लबों से हमेशा शराब पीने दे समझ के उस को 'ग़फ़ूरुर रहीम' पीता हूँ---(सब पर मेहरबान) न छेड़ 'ज़िक्र-ए-अज़ाब-ओ-सवाब' पीने दे- (पाप-पुण्य की बात) जो रूह हो चुकी इक बार दाग़दार मेरीतो और होने दे लेकिन शराब पीने दे शराबख़ाने में ये शोर क्यों मचाया है ख़मोश अख़्तर-ए-ख़ानाख़राब पीने दे