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Written By WD

उर्दू की तरक़्क़ी में ग़ैर-मुसलिमों का हिस्सा

उर्दू की तरक़्क़ी में ग़ैर-मुसलिमों का हिस्सा -
उर्दू हिंदुस्तान की एक ऐसी ज़ुबान है जिसकी तरक़्क़ी में और इसे अवाम की पसंदीदा ज़ुबान बनाने में सभी मज़ाहिब के मानने वालों का बराबरी का हिस्सा है। नस्र निगारी हो या शायरी, हर शोबे में ग़ैरमुस्लिमों की ख़िदमात को फ़रामोश नहीं किया जा सकता।

WDWD
बक़ौल मुज़फ़्फ़र हनफ़ी, उर्दू अदब हमेशा जमहूरी मोआशरे का तरजुमान और अक्कास रहा है, और इसके अहम मुसन्नेफ़ीन में मुसलमानों के दोश-बदोश दया शंकर नसीम, रतन नाथ शरशार, प्रेम चन्द, चकबस्त, क़ृष्ण चन्दर, राजेन्द्र सिंह बेदी, फ़िराक़ गोरखपुरी, नेज़ हिन्दुस्तान के तक़रीबन हर फ़िरक़े और हर तबक़े का लिखने वाला मौजूद है। शायद आलमी पैमाने पर भी कोई दूसरी ज़ुबान जमहूर नवाज़ी की इतनी ताबनाक मिसालें नहीं पेश कर सकती जितनी के उर्दू के दामन में मौजूद हैं।

उर्दू के मुस्लिम शायरों ने हिन्दू संस्कृति पर और दिन्दू माएतोलोजी के तमाम अहम किरदारों पर, तीज-त्योहारों पर उम्दा अदब तख़लीक़ किया है तो उर्दू के ग़ैर मुस्लिम शायरों अदीबों ने हम्द, नात और मुनक़ेबत लिखकर बेहतरीन यकजेहती का सुबूत दिया है। बतौर नमूना चन्द अशआर पेश किए जा रहे हैं।

इश्क़ हो जाए किसी से कोई चारा तो नहीं
कुछ मुसलमाँ का मोहम्मद पे इजारा तो नहीं----महेन्दर सिंह बेदी सहर

आदमीयत का ग़रज़, सामाँ मोहय्या कर दिया
इक अरब ने आदमी का बोल बाला कर दिया-------हरि चन्द अख़्तर

सलाम उस ज़ाते अक़दस पर, सलाम उस फ़ख़्रे दौराँ पर
हज़ारों जिसके एहसानात हैं, दुनिया-ए-इमकाँ पर --------जगन्नाथ आज़ाद

काफ़िर न कहो शाद को है आरिफ़-ओ-सूफ़ी
शैदा-ए-मोहम्मद है वो शैदा-ए-मदीना ----------किशन प्रसाद शाद

Aziz AnsariWD
मालूम है कुछ तुमको मोहम्मद का मक़ाम
वो उम्मत-ए-इसलाम में मेहदूद नहीं ------------फ़िराक़ गोरखपुरी

कज़ब-ओ-कुफ़्र के मिटाने को
सरवर-ए-कायनात आए थे -----------गुलज़ार दहलव

दैर से नूर चला और हरम तक पहुँचा
सिलसिला मेरे गुनाहों का करम तक पहुँचा
तेरी मेराज मोहम्मद तो ख़ुदा ही जाने
मेरी मेराज के मैं तेरे क़दम तक पहुँचा-------कृष्ण बिहारी नूर

नातिया कलाम ही नहीं ग़ज़ल, मसनवी, रुबाई, क़तआत, क़सीदा, जदीद शायरी, सहाफ़त वग़ैरा हर सिन्फ़ और शोबे में ग़ैर मुस्लिम शायरों और अदीबों ने ग़ैरमामूली ख़िदमात अंजाम दी हैं और आज भी वो अपने क़लम से उर्दू का बेहतरीन अदब तख़लीक़ कर रहे हैं। (तआउन और शुक्रिया "किताबनुमा--अगस्त 2008, में शाए महबूब राही का मज़मून")