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Written By अजीज अंसारी

मख़मूर सईदी'

मख़मूर सईदी'' -
Aziz AnsariWD
तीन-चार दहाइयों से आसमान-ए-अदब पर एक नाम सितारे की तरह चमक रहा है, इस सितारे की चमक में रोज़-बरोज़ इज़ाफ़ा हो रहा है। इस ताबनाक सितारे का नाम है मख़मूर सईदी।

मख़मूर सईदी की पैदाइश 31 दिसम्बर 1934 को राजस्थान के मक़ाम टोंक में हुई। उर्दू के कई इम्तेहान आपने आगरा और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से पास किए। उर्दू के कई मेयारी रिसाइल जैसे तहरीक, गुलफ़िशाँ, निगार, उमंग और एवान-ए-उर्दू के मुदीर रहे।

उर्दू एकेडमी देहली के सेक्रेट्री के फ़राइज़ भी आपने बहुस्न-ओ-ख़ूबी अंजाम दिए। आज भी आप नेशनल कौंसिल फ़ोर प्रोमोशन ऑफ़ उर्दू लेंगवेज में बतौर सलाहकार काम कर रहे हैं साथ ही यहाँ से शाए होने वाले रिसाइल उर्दू दुनिया और फ़िक्र-ओ-तहक़ीक़ को भी अपनी रेहनुमाई से नवाज़ रहे हैं।

ये तो हुआ तस्वीर का एक रुख़, अब ज़रा तस्वीर का दूसरा रुख़ भी देखिए। शायरी की दस किताबें, मज़ामीन की तीन किताबें, क़रीब पन्द्रह हिन्दी, अँग्रेज़ी और फ़ारसी की किताबों का उर्दू तरजुमा भी आप पेश कर चुके हैं। उर्दू अदब की कई किताबों के मुदीर होने का सेहरा भी आपके सर बंध चुका है।

आपकी इन ख़िदमात का ही ये नतीजा है के हिन्दुस्तान के ज़्यादातर सूबों की एकेडमियों ने आपको एज़ाज़ात और इनआमात से नवाज़ा है। इनमें नुमायाँ नाम देहली, बिहार, यू.पी., बंगाल, राजस्थान वग़ैरा एकेडमी के हैं। इसके अलावा साहित्य एकेडमी अवॉर्ड भी आपको मिल चुका है। साथ ही मुल्क की कई अदबी अंजुमनों ने भी आपकी अदबी ख़िदमात को सराहा है।

  मख़मूर सईदी साहब सिर्फ़ किताबों और रिसालों में ही नुमायाँ नही हैं। आप मुशायरों में भी शिरकत फ़रमाते हैं और अपनी ग़ज़लों और नज़्मों से अवाम के दिलों पर अच्छा असर छोड़ते हैं।      
जनाब महमूद अहमद नदीम ने अपने पीएचडी के मक़ाले के लिए आपका और आपके कलाम का इनतिख़ाब किया और बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी भोपाल से डिग्री हासिल की। डॉ. अख़्तर फ़ारूक़ी और शीन क़ाफ़ निज़ाम ने भी आप पर मक़ालात लिखे। उर्दू कोर्स की कई किताबों में आपका कलाम शामिल है। कई रिसाइल ने आप पर ख़ुसूसी गोशे भी शाए किए हैं।

मख़मूर सईदी साहब सिर्फ़ किताबों और रिसालों में ही नुमायाँ नही हैं। आप मुशायरों में भी शिरकत फ़रमाते हैं और अपनी ग़ज़लों और नज़्मों से अवाम के दिलों पर अच्छा असर छोड़ते हैं। पूरे मुल्क में आप अच्छे मुशायरों में मदऊ किए जाते रहे हैं। आजकल आप बेरूनी मुमालिक में भी काफ़ी मक़बूल हैं।

यूएसए, नार्वे, डेनमार्क, सऊदी अरब, दुबई, अबु धाबी, शारजाह, क़तर, ओमान और पाकिस्तान वगैरा मुमालिक में भी कई मुशायरे और सेमिनार में अपनी हाज़िरी दर्ज करा चुके हैं। वेबदुनिया के शायरी के शौक़ीन हज़रात की ख़िदमत में आज हम यहाँ पेश कर रहे हैं जनाब मख़मूर सईदी साहब की चन्द ग़ज़लें।

मख़मूर सईदी की ग़ज़लें

1. मुद्दतों बाद हम किसी से मिले
यूँ लगा जैसे ज़िन्दगी से मिले

इस तरह कोई क्यों किसी से मिले
अजनबी जैसे अजनबी से मिले

उनका मिलना भी था न मिलना सा
वो मिले भी तो बेरुख़ी से मिले

साथ रहना मगर जुदा रहना
ये सबक़ हमको आप ही से मिले

दिल ने मजबूर कर दिया होगा
जिससे मिलना न था उसी से मिले

मसजिदों से शराबख़ाने तक
रास्ते सब तेरी गली से मिले

उन अंधेरों का क्या गिला 'मख़मूर'
वो अंधेरे जो रोशनी से मिले

2. जब कोई शामे-हसीं नज़्रे-ख़राबात हुई
अक्सर ऎसे में तेरे ग़म से मुलाक़ात हुई

रोज़ मय पी है, तुम्हें याद किया है लेकिन
आज तुम याद न आए, ये नई बात हुई

उसने आवाज़ में आवाज़ मिला दी थी कभी
आज तक ख़त्म न मोसीक़िए-जज़बात हुई

किसकी परछाई पड़ी कौन इधर से गुज़रा
इतनी रंगीं जो गुज़रगाहे-ख़्यालात हुई

दिल पे इक ग़म की घटा छाई हुई थी कब से
आज उनसे जो मिले टूट के बरसात हुई

कोई जादा है न मंज़िल कोई ता हद्दे-ख़्याल
राहरो सोच रहा है ये कहाँ रात हुई

उनसे उम्मीदे-मुलाक़ात के बाद ऎ 'मख़मूर'
मुद्दतों तक न ख़ुद अपने से मुलाक़ात हुई

कठिन शब्दों के अर्थ
नज़्रे-ख़राबात = बुराइयों की भेंट
मोसीक़िए-जज़बात = भावनाओं का संगीत
गुज़रगाहे-ख़्यालात = विचारों की डगर
सबा = हवा
राहरो = राहगीर