बच्चों की मनोरंजक कविता: ऊधम का घोड़ा
अम्मा में लाया हूं कागज़,
नाव बना दो अभी फटाफट।
कल जो नाव बनाई थी मां,
वह दीदी ने ली थी छीन।
फाड़-फूड़ कर करी बराबर,
टुकड़े ढेरों किये महीन।
मैंने उसको जब रोका तो,
चांटे मुझको दिए चटाचट।
जब-जब मिले खिलौनें मुझको,
है लगाई दीदी ने घात।
दिन भर वही खेलती रहती,
मुझे लगाने न दे हाथ।
जब भी पास गया में उसके,
कहती है जा हट-हट-हट-हट।
मैं हूं छोटा इसी बात पर,
क्या पड़ती है मुझको डांट।
पक्ष सभी दीदी का लेते,
कोई न देता मेरा साथ।
सब कहते हैं दीदी सीधी,
तू ही बेटा चंचल नटखट।
हां बेटा तू तो सचमुच ही,
है शैतानों का शैतान।
सभी लोग कहते हैं बेटा,
सदा बड़ों का कहना मान।
पर तेरा ऊधम का घोड़ा,
रोज भागता रहता सरपट।
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