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Last Updated : सोमवार, 12 मई 2025 (14:26 IST)

बाल गीत: सूरज रोज निकलता है

sky poem
सुबह निकलकर दिन भर चलता,
हुई शाम तो ढलता है।
सूरज रोज निकलता है जी, 
सूरज रोज निकलता है।
 
पूरब से हंसता मुस्काता।
सोना बिखराता आता।
किरणों के रथ पर बैठाकर,
धूप, धरा पर भिजवाता।
धूप हवा की सरस छुअन से,
फूल डाल पर खिलता है जी।
सूरज रोज निकलता है।
 
पंख खुले तो दाना पानी,
लेने पंछी चल देते।,
पाकर धूप-हवा-पानी ही,
तरुवर मीठे फल देते।
भौंरों, तितली, चिड़ियों को भी,
फूलों से रस मिलता है जी।
सूरज रोज निकलता है।
 
बादल, कोहरा, धुंध, प्रदूषण,
मग में बाधा बन जाते।
गगन-वीर उस सूरज को पर,
पथ से डिगा नहीं पाते।
बिना डरे चलते जाना है,
सबसे पल-पल कहता है जी। 
सूरज रोज निकलता है।
 
जब भी आता समय शिशिर का,
पतझड़ रंग दिखाती है। 
पेड़-पेड़ पर फिर बसंत में,
कोंपल नई आ जाती है।
पीले वसन देख सरसों के,
सूरज ठिल-ठिल हंसता है जी,
सूरज रोज निकलता है।

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