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ग़ालिब के अशआर
ग़ालिब, नदीम ए दोस्त से आती है बू ए दोस्तमशगूल ए हक़ हूँ बन्दगी ए बूतराब मेंछोड़ा ना रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूँ हर इक से पूछ्ता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं करते किस मुँह से हो ग़ुरबत की शिकायत ग़ालिब तुमको बेमेहरी ए यारान ए वतन याद नहींदोनों जहान दे के वो समझे ये खुश रहा याँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करेंथक-थक के हर मुक़ाम पे दो चार रह गएतेरा पता ना पाएँ तो लाचार क्या करेंवो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत है कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैकभी जो याद भी आता हूँ मैं तो कहते हैं कि आज बज़्म में कुछ फ़ितना ओ फसाद नहींयारब ज़माना मुझको मिटाता है किसलिए लोह ए जहाँ पे हर्फ ए मुकर्रर नहीं हूँ मैंसब कहाँ कुछ लाला ओ गुल में नुमायाँ हो गईं खाक में क्या सूरतें होंगी के पिन्हाँ हो गईं हो चुकीं ग़ालिब बलाएँ सब तमामएक मर्ग ए नागहानी और है क़ैद में याकूब ने ली गो न युसुफ़ की खबर लेकिन आँखें रोज़न ए दीवार ए ज़िन्दाँ हो गईंनीन्द उसकी है, दिमाग उसका है, रातें उसकी हैं जिसके बाज़ू पर तेरी ज़ुल्फें परेशाँ हो गईंक़ैद ए हयात ओ बन्द ए ग़म, अस्ल में दोनों एक हैंमौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाए क्यूँना लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बेखबर सोतारहा खटका ना चोरी का दुआ देता हूँ रेहज़न कोजब मैकदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैदमस्जिद हो, मदरसा हो, कोई खानक़ाह हो सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ सब दुरुस्त लेकिन खुदा करें वो तेरी जलवा गाह होमै से ग़रज़ निशात है किस रूस्याह् कोइक गूना बेखुदी मुझे दिन-रात चाहिएज़िन्दगी अपनी जब इस तरहा से गुज़री ग़ालिब हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थेअपनी गली में दफ़्न न कर मुझको बाद ए क़त्लमेरे पते से खल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिलेदेके खत मुँह देखता है नामाबर कुछ तो पैग़ाम ए ज़ुबानी और हैहो चुकीं ग़ालिब बलाएँ सब तमामएक मर्ग ए नागहानी और है
ग़ालिब की ग़ज़लें कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आतीआगे आती थी हाल ए दिल पे हँसी अब किसी बात पर नहीं आती है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवरना क्या बात कर नहीं आती जानता हूँ सवाब ए ताअतोज़ोह्द पर तबीयत इधर नहीं आतीहम वहाँ हैं जहाँ से हमको भी कुछ हमारी ख़बर नहीं आती ज़ाहिर है के घबरा के न भागेंगे नकीरैन हाँ, मुँह से मगर बादा ए दोशीना की बू आएपिन्हाँ था दाम ए सख्त क़रीब आशयान के उड़ने न पाए थे कि गिरफ़्तार हम हुएछोड़ी असद न हमने गदाई में दिल्लगी साइल हुए तो आशिक़ ए एहलेकरम हुएसाए की तरह साथ फिरे सर्व व सनोबर तू इस क़द ए दिलकश से जो गुलज़ार में आएदेखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़ इक बिरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा हैहमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था दिल भी यारब कई दिए होते पिलादे ओक से साक़ी जो मुँह से नफरत है प्याला गर नहीं देता न दे शराब तो दे बाज़ीचा ए इतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे होता है शब ओ रोज़ तमाशा मेरे आगेइक खेल है औरंग ए सुलेमाँ मेरे नज़दीक इक बात है एजाज़े मसीहा मेरे आगेसफीना जब के किनारे पे आ लगा ग़ालिब ख़ुदा से क्या सितम व जोर ए नाख़ुदा कहिएना सुनो गर बुरा कहे कोईना कहो गर बुरा करे कोईबात पर वाँ ज़ुबान कटती है वो कहें और सुना करे कोईरोक दो गर ग़लत चले कोई ढाँक लो, गर ख़ता करे कोईक्या किया ख़िज़्र ने सिकन्दर से अब किसे रेहनुमा करे कोईजब तवक़्क़ो ही उठ गई ग़ालिब क्यूँ किसी का गिला करे कोईहज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी िक हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकलेनिकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकलेभरम खुल जाए ज़ालिम तेरी क़ामत की दराज़ी का अगर इस तुर्रा ए पुर्पेचोख़म का पेचोख़म निकलेमोहब्ब्त में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख के जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकलेकहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़ पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकलेवाइज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको क्या बात है तुम्हारी शराब ए तहूर की क्या फ़र्ज़ है के सबको मिले एक सा जवाब आओ न हम भी सैर करें कोहेतूर की गरमी सही कलाम में लेकिन न इस क़दर की जिससे बात उसने शिकायत ज़रूर की ग़ालिब गर इस सफ़र में मुझे साथ ले चलें हज का सवाब नज़्र करूँगा हुज़ूर की।