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दिल से पहुँची तो हैं
पेशकश : अज़ीज़ अंसारी सब ग़लत कहते थे लुत्फ़-ए-यार को वजहे-सुकूँदर्द-ए-दिल उसने तो हसरत और दूना कर दिया-------हसरत मोहानी हक़ीक़त खुल गई हसरत तेरे तर्क-ए-मोहब्बत की तुझेतो अबवो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैं ---हसरत मोहानी दिल से पहुँची तो हैं आँखों में लहू की बूँदें सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का-------हसरत मोहानी दिल गया रोनक़-ए-हयात गईग़म गया सारी कायनात गई---------जिगर मुरादाबादीदुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा यादअब मुझको नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद -----जिगर मुरादाबादी शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो------------------फ़िराक़ एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें और हम भूल गए हों तुझे ऎसा भी नहीं -------------फ़िराक़ कभी हममें तुममें भी चाह थी, कभी हमसे तुमसे भी राह थीकभी हमभी तुमभी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो ------मोमिन कहा उस बुत से मरता हूँ तो मोमिनकहा मैं क्या करूँ मरज़ी ख़ुदा की------------मोमिन मैंने मजनूँ पे लड़कपन मे असद संग उठाया था के सर याद आया---------(असद और ग़ालिब एक ही हैं) जी ढूंडता है फिर वही फ़ुरसत के रात-दिनबैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए ----------ग़ालिब है कुछ ऎसी ही बात जो चुप हूँ वरना क्या बात कर नहीं आती---------ग़ालिब जुनूँ में ख़ाक उड़ाता है साथ साथ अपने शरीक-ए-हाल हमाराग़ुबार राह में है ---------आतिश ये आरज़ू थी तुझे गुल के रूबरू करतेहम और बुल्बुल-ए-बेताब गुफ़्तगू करते-------आतिश सब केजोहर नज़र में आए दर्द बेहुनर तूने कुछ हुनर न किया-----------दर्द चमन में सुबहा ये कहती थी होकर चश्म-ए-तर शबनमबहार-ए-एबाग़ तो यूँ ही रहे, लेकिन किधर शबनम ---------दर्द मैं जो बोला कहा के ये आवाज़ उसी ख़ाना ख़राब की सी है ------------ मीर