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इक़बाल के मुनफ़रीद अशआर
अजब वाइज़ की दींदारी है यारब अदावत है इसे सारे जहाँ से कोई अब तक न ये समझा कि इंसाँ कहाँ जाता है, आता है कहाँ से मेरी निगाह में वो रिन्द ही नहीं साक़ीजो होशयारी ओ मस्ती में इमतियाज़ करे किसक़दर ए मै तुझे रस्मे हिजाब आई पसन्द परदा ए अंगूर से निकली तो मीनाओं में थी मैंने ए इक़बाल युरुप में इसे ढ़ूंढा अबस बात जो हिंदोस्ताँ के माह सीमाओं में थीफिर बादे बहार आई इक़बाल ग़ज़लख्वा हो ग़ुंचा है अगर गुल हो, गुल है तो गुलिस्ताँ होउरूजे आदमे ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैंकि ये टूटा हुआ तारा महे कामिल न बन जाए नहीं है नाउमीद इक़बाल अपनी किश्ते वीराँ से ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रखे़ज़ है साक़ीमेरी मीनाए ग़ज़ल में थी ज़रा सी बाक़ी शेख कहता है कि है ये भी हराम ए साक़ी तेरे आज़ाद बन्दों की न ये दुनिया न वो दुनिया यहाँ मरने की पाबंदी, वहाँ जीने की पाबंदी गुज़र-औक़ात कर लेता है ये कोहो-बियाबाँ में कि शाहीं के लिए ज़िल्लत है कारे आशियाँ बन्दी तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँमेरी सादगी देख, क्या चाहता हूँये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को कि मैं आपका सामना चाहता हूँ कोई दम का मेहमाँ हूँ ए एहले मेहफ़िल चिराग़े सहर हूँ बुझा चाहता हूँ भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बेअदब हूँ सज़ा चाहता हूँ अनोखी वज़अ है, सारे ज़माने से निराले हैंये आशिक़ कौन सी बस्ती के यारब रहने वाले हैं मेरे अशआर ए इक़बाल क्यों प्यारे न हों मुझको मेरे टूटे हुए दिल के ये दर्द अंगेज़ नाले हैं मोहब्बत के लिए दिल ढूँढ कोई टूटने वाला ये वो मै है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में ख़मोश ए दिल भरी महफ़िल में चिल्लाना नहीं अच्छा अदब पहला क़रीना है मोहब्बत के क़रीनों मेंबुरा समझूँ उन्हें ऐसा तो मुझ से हो नहीं सकता कि मैं ख़ुद भी तो हूँ इक़बाल अपने नुकताचीनों में गुल्ज़ारे हस्तोबूद न बेगानावार देख है देखने की चीज़ इसे बार-बार देख न आते हमें इसमें तकरार क्या थीमगर वादा करते हुए आर क्या थीन तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिएजहाँ है तेरे लिए, तू नहीं जहाँ के लिएसितारों से आगे जहाँ और भी हैंअभी इश्क़ के इम्तेहाँ और भी हैं तू शाहीं है, परवाज़ है काम तेरातेरे सामने आसमाँ और भी हैंकुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा काफ़िर है मुसलमाँ, तो न शाही न फ़क़ीरीमोमिन है तो करता फ़क़ीरी में भी शाहीकाफ़िर है तो शमशीर पे करता है भरोसामोमिन है तो बे तेग़ भी लड़ता है सिपाही वो सजदा रूहे ज़मीं जिससे कांप जाती हैउसी को आज तरसते हैं मिमबरो मेहराब न तख्तोताज में ने लश्करोसिपाह में हैजो बात मर्देक़लन्दर की बारगाह में हैमैं तुझ को बताता हूँ तक़दीरे उमम क्या है शमशीरोसिना अव्वल, ताऊसोरबाब आखिर मैख़ाना ए यूरुप के दस्तूर निराले हैं लाते हैं सुरूर अव्वल, देते हैं शराब आखिरनशा पिला के गिराना तो सब को आता है मज़ा तो जब है कि गिरते को थाम ले साक़ीजो बादा कश थे पुराने, वो उठते जाते हैं कहीं से आबे बक़ा ए दवाम ले साक़ी कटी है रात तो हंगामा गुसतरी में तेरी सहर क़रीब है अल्लाह का नाम ले साक़ीजाता हूँ थोड़ी दूर हर एक राहरौ के साथपहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैंपरवाज़ है दोनों की इसी एक फिज़ा मेंगरगस का जहाँ और है, शाहीं का जहाँ और हैपत्थर की मूर्ति में समझा है तू ख़ुदा हैख़ाके वतन का मुझको हर ज़र्रा देवता हैमस्जिद तो बना दी शब भर में, ईमां की हरारत वालों नेमन अपना पुराना पापी है, बरसों में नमाज़ी बन न सकाइक़बाल बड़ा उपदेशक है, मन बातों में मोह लेता हैगुफ्तार का ये ग़ाज़ी तो बना, किरदार का ग़ाज़ी बन न सका