चाँद तारों का बन : मख़दूम
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मख़दूम मोम की तरहा जलते रहे हम शहीदों के तनरातभर झिलमिलाती रही शम्मे सुबहे वतनरातभर जगमगाता रहा चाँद तारों का बनतशनगी थी मगर तशनगी में भी शरशार थे प्यासी आँखों के ख़ाली कटोरे लिएमुनतज़िर मर्द ओ ज़नमस्तियाँ ख़त्म मदहोशियाँ ख़त्म थीं, ख़त्म था बाँकपनरात के जगमगाते दहकते बदनसुबहा दम एक दीवारे ग़म बन गएख़ारज़ारे अलम बन गए रात की शेहरगों का उछलता लहूजूए ख़ूँ बन गया कुछ इमामाने सद फ़िक्र ओ फ़नउनकी साँसों में अफ़ई ही फुंकार थी उनके सीने में नफ़रत का काला धुआँइक कमीं गाह से फेंक कर अपनी नोकेज़ुबाँ ख़ूने नूरे सहर पी गए रात की तिल्छटें हैं अँधेरा भी है सुबहा का उजाला, उजाला भी है हमदमो हाथ में हाथ दो सूए मंज़िल चलो मंज़िलें प्यार की मंज़िलें दार की कूए दिलदार की मंज़िलें दोश पर अपनी अपनी सलीबें उठाए चलो।