इनकम टैक्स पेयर्स इन दिनों टैक्स के बोझ से परेशान हैं। उन पर डायरेक्ट टैक्स के साथ ही इन-डायरेक्ट टैक्स की भी मार पड़ रही है। चाहे वेतनभोगी व्यक्ति हो या व्यापारी सभी ईमानदार टैक्सपेयर्स चाहते हैं कि उनके कंधों पर पड़ा टैक्स का कुछ भार कम हो।
मोदी सरकार 1 फरवरी को देश में बजट की तैयारी कर रही है। ऐसे में करदाता चाहते हैं कि मोदी सरकार 1 फरवरी को पेश होने वाले बजट में उनके कंधों से टैक्स का बोझ कुछ कम करे। लोगों को उम्मीद है कि सरकार इस बार बेसिक एक्समशन लिमिट 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख कर देगी।
बहरहाल इनकम टैक्स देने के बाद भी आम आदमी को बाजार से खरीदने वाली हर वस्तु पर टैक्स देना होता है। वे जो भी सामान बाजार से खरीदते हैं उस पर 5 से 28 प्रतिशत तक GST लगता है। वे जिस गाड़ी से ऑफिस जाते हैं उसमें पेट्रोल लगता है जिस पर टैक्स की दर जीएसटी से कहीं ज्यादा है। हाउस टैक्स, स्वच्छता कर, प्रोफेशनल टैक्स समेत कई अन्य कर भी उसे देने होते हैं। इस तरह एक व्यक्ति की आय का बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में ही चला जाता है।
इनकम टैक्स रिटर्न यानी ITR फाइल करने के 2 ऑप्शन मिलते हैं। 1 अप्रैल 2020 को नया ऑप्शन दिया गया था। नए टैक्स स्लैब में 5 लाख रुपए से ज्यादा आय पर टैक्स की दरें तो कम रखी गईं। हालांकि डिडक्शन छीन लिए गए। वहीं अगर आप पुराना टैक्स स्लैब चुनते हैं तो आप कई तरह के टैक्स डिडक्शन का फायदा ले सकते हैं।
30-35 हजार रुपए प्रतिमाह कमाने वाले व्यक्ति की स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली हो जाती है। आयकर देने वाले व्यक्ति के मन में अकसर यह सवाल उठता है कि टैक्स देने के लिए हम और सुविधाएं लेने के लिए अन्य लोग। व्यापारी तो एडजस्ट कर टैक्स देने से बच जाता है। लेकिन नौकरी पेशा वर्ग को तो पूरा टैक्स देना ही होता है।
ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में लाने की मांग : एक बहुत बड़ा वर्ग तो टैक्स से बचने के रास्ते तलाश लेता है, लेकिन वेतनभोगी व्यक्ति के पास टैक्स से बचने का कोई रास्ता नहीं है। ऐसे में टैक्स का पूरा भार सेलरिड व्यक्ति पर है। अगर आपको अमेरिका जैसी सुविधाएं चाहिए तो लोगों को टैक्स के मामले में ज्यादा इमानदार होना होगा।
इनकम टैक्स पेयर्स का मानना है कि टैक्स के दायरे में अगर ज्यादा लोग आएं तो इससे वेतन भोगी व्यक्ति पर भी टैक्स का भार कम होगा। अगर आपको अमेरिका जैसी सुविधाएं चाहिए तो लोगों को टैक्स के मामले में ज्यादा इमानदार होना होगा। टैक्स के दायरे में अगर ज्यादा लोग आएं तो इससे वेतन भोगी व्यक्ति पर भी टैक्स का भार कम होगा।
क्या राहत चाहता है आम आदमी : एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटेंट अनिल जायसवाल ने बताया कि होउस रेंट अलाउंस की लिमिट बढ़ा देना चाहिए। व्यक्ति तो रेंट पे कर रहा है कम से कम उसे उतनी तो छूट मिले। 80 सी में भी राहत का दायरा बढ़ाकर 3 लाख कर देना चाहिए। इसमें पीएफ, एलआईसी, म्यूचुअल फंड आते हैं। एक व्यक्ति अपने दो बच्चों की स्कूल फीस, होम लोन पेमेंट, इंश्योरेंस प्रीमियम जैसे खर्च के बदले भी टैक्स में छूट ले सकता है। इसकी लिमिट डेढ़ लाख आते हैं।
जायसवाल के अनुसार, हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर (80 D) की लिमिट 25 हजार रुपए हैं। इसे भी बढ़ाकर छूट 25 हजार से बढ़कर 50 हजार किया जाना चाहिए। संभव एरियर पर टैक्स लगता है यह भी टैक्स फ्री होना चाहिए।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट : सीए टीना अग्रवाल ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि सरकार इस बार आम आदमी के लिए कुछ नहीं करेगी। न्यू टैक्स स्लैब से 2020 में ही सारी उम्मीदें खत्म हो गई है। इसमें टैक्स छूट बढ़ाकर 5 लाख कर दी गई थी लेकिन 80सी और 80डी के डिडक्शन खत्म कर दिए गए थे।