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Written By UN
Last Updated : सोमवार, 27 मई 2024 (12:27 IST)

दक्षिण एशिया में बढ़ती गर्मी से बच्चों के लिए है बहुत बड़ा ख़तरा : UNICEF

Heat
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष– UNICEF ने दक्षिण एशिया के अनेक देशों में चिलचिलाती गर्मी और लू में शिशुओं और बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है। संगठन ने साथ ही गर्मी के लक्षणों की त्वरित पहचान करने और प्रभावित बच्चों को तुरन्त स्वास्थ्य कर्मियों तक पहुाचाने की ज़ोरदार सिफ़ारिश भी की है।
यूनीसेफ़ ने हाल ही में जारी एक प्रैस विज्ञप्ति में कहा है कि भारत की राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक उत्तरी प्रान्तों में बीते दिनों के दौरान तापमान 43 से 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुाच गया जिसके लिए देश के मौसम विभाग ने 20 मई को, 5 दिन की ताप लहर चेतावनी जारी की थी।

पाकिस्तान के मौसम विभाग ने भी 23 से 27 मई तक गम्भीर लू जारी रहने की चेतावनी जारी की थी। पाकिस्तानी प्रान्त पंजाब की सरकार ने 25 से 31 मई तक स्कूल बन्द कर दिए हैं।

यूनीसेफ़ के अनुसार पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में बढ़ता पारा, लाखों बच्चों के स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर सकता है इसलिए उनकी हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने और उन्हें भरपूर मात्रा में पानी पिलाया जाना ज़रूरी है। बच्चे, वयस्कों की तरह, तापमान में इतनी तेज़ी से आने वाले बदलाव के प्रति तेज़ी से समायोजित नहीं हो सकते हैं।

बच्चे अपने शरीरों से अत्यधिक गर्मी को नहीं हटा सकते जिससे उनके भीतर तरल पदार्थों और पानी कमी होने का डर है, जिससे उनके शरीर का तापमान बढ़ता है, उनके दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है, तेज़ सिरदर्द होता है, शरीर में जकड़न होती है, उनके भीतर भ्रम की स्थिति बनती है, वो बेहोश भी हो सकते हैं।

यूएन बाल एजेंसी ने बताया है कि शरीर में पानी की कमी होने से गर्मी का दौरा पड़ सकता है और डायरिया भी हो सकता है। गर्मी से बच्चों में सांस लेने सम्बन्धी कठिनाइयां भी पैदा हो सकती हैं और अनेक अंगों के नाकाम होने का भी डर है।

यूनीसेफ़ के अनुसार अत्यधिक गर्मी में अधिक लम्बे समय तक रहने से, बच्चों के दिमाग़ का विकास भी प्रभावित हो सकता है। इससे बच्चों की सीखने, स्मृति और ध्यान में कठिनाई हो सकती है, सम्भवत भविष्य के उनके अवसरों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

एजेंसी के अनुसार जो गर्भवती महिलाएं विशेष रूप से गर्मी के लिए संवेदनशील होती हैं, उनमें समय से पहले जच्चगी का दर्द शुरू हो सकता है, उनके बच्चे का समय से पहले जन्म हो सकता है और यहां तक कि उनके शिशु की जन्म से पहले ही मौत भी हो सकती है। ऐसे हालात में समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं की मौत भी हो सकती है।

लगातार निगरानी की ज़रूरत: यूएन बाल एजेंसी का कहना है कि बच्चे, गर्मी से अपने बचाव के वयस्कों पर निर्भर होते हैं इसलिए माता-पिता और अभिभावकों को अपने बच्चों को दिन भर उनके भीतर तरल पदार्थों की कमी नहीं होने देने के लिए, चौकन्ना रहना होगा।

बच्चों को गर्मी सम्बन्धी बीमारियों से बचाने के लिए, उन्हें बार-बार यह जांच करते रहनी होगी कि बच्चे प्यासे तो नहीं हैं, उन्हें पसीना तो नहीं आ रहा है और उनका शरीर बहुत गर्म तो नहीं, या फिर उन उबकाई तो नहीं हो रही है, क्या उनका मुंह सूख तो नहीं रहा है या फिर कहीं उन्हें सिर दर्द तो नहीं है। गर्मी के दौरान बच्चों को ढीले-ढाले कपड़े पहनाना भी बहुत अहम है।

एजेंसी की सलाह है कि छोटे बच्चों के शरीर के अत्यधिक तापमान को कम करने के लिए उनके सिर पर बर्फ़ की टिक्की रखने, पंखों से हवा देने या पानी का छिड़काव करने से मदद मिल सकती है। अगर कोई बच्चा निष्क्रिय नज़र आता है, उसे उच्च बुख़ार है, वो भ्रमित नज़र आता है या उसकी सांसें तेज़ चल रही हैं तो उस बच्चे को तत्काल पास की चिकित्सा सुविधा में ले जाना बहुत ज़रूरी है।

यूनीसेफ़ का कहना है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में, दक्षिण एशिया में अत्यधिक उच्च गर्मी की चपेट में आने वाले बच्चों की उच्च संख्या को देखते हुए, ये क़दम उठाया जाना बहुत ज़रूरी है।

बाल एजेंसी के वर्ष 2020 के आंकड़ों पर आधारित एक विश्लेषण के अनुसार, दक्षिण एशिया में 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 76 प्रतिशत यानि लगभग 46 करोड़ बच्चे, अत्यधिक उच्च तापमान के माहौल में रहे, जब एक वर्ष में 83 या उससे अधिक दिनों के दौरान तापमान 35 डिग्री सैल्सियस से अधिक रहा।

यूनीसेफ़ ने स्वास्थ्यकर्मियों से गर्भवती महिलाओं और बच्चों में गर्मी के लक्षणों की त्वरित पहचाने करने और उनका तेज़ी से इलाज करने का भी आग्रह किया है। अग्रिम मोर्चों पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मी, अभिभावक, परिवार, देखभाल करने वाले और स्थानीय अधिकारी, गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं और बच्चों को संरक्षण मुहैया करा सकते हैं और निम्न क़दम उठाकर गर्मी को मात दे सकते हैं यानि उसे B.E.A.T कर सकते हैं।

यूनीसेफ़ के 2021 के बाल जलवायु जोखिम सूचकांक (CCRI) के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में बच्चे, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अत्यधिक उच्च जोखिम की चपेट में हैं। ‘हम बच्चों के संरक्षण के लिए और अधिक कार्रवाई कर सकते हैं और हमें करनी ही होगी’
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