शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024
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Written By अनहद

समाज को फायदा पहुँचाने वाले सच

Sach Ka Saamna | समाज को फायदा पहुँचाने वाले सच
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जिस सच से समाज का अहित होता हो वो सच नहीं बोलना चाहिए। एक कथित संत ने यह बात टीवी पर कही "सच का सामना" के विरोध में। डायलॉग अच्छा है, पर डिलेवरी गलत शख्स कर रहा है। आमतौर पर ये डायलॉग समाज बोलता है और जिस शख्स को मुखातिब कर के ये डायलॉग सदियों से बोला जा रहा है, वो संत होता है।

सुकरात और क्या करते थे? चौराहे पर लोगों को पकड़-पकड़कर उनसे जिरह किया करते और उनसे भी ग्रीस (यूनान) के लोगों ने यही कहा कि जिस सच से समाज का अहित होता हो, वो सच...। बुद्ध तमाम क्रियाकांडों और पुरोहितगिरी के खिलाफ थे। उनसे भी समाज के ठेकेदारों ने यही कहा होगा कि जो आप कहते हैं, वो सच है, मगर ज़रा चुप रहा कीजिए। मौके की नज़ाकत को पहचानना सीखिए, जो सच समाज के हित में नहीं वो सच...। और समाज के हित में क्या है, ये कौन तय करेगा? क्या झूठ किसी भी समाज के हित में हो सकता है?

एक आदमी है, उसको कैंसर है और वो किराने की दुकान से दर्द निवारक दवा लेकर खा रहा है। इस आदमी से अगर कह दिया जाए कि आपको कैंसर है, तो उसे बहुत घबराहट होगी। वो रोएगा, आँसू बहाएगा, मगर कैंसर का इलाज तो शुरू कर देगा! किसी को उसका कैंसर दिखाना क्या उसका अहित करने वाला सच है? ये समाज झूठ के कैंसर के साथ जी रहा है। शायद ही कोई ऐसी औरत या मर्द हो, जो "सच का सामना" में खुद को मन, वचन और कर्म से पवित्र साबित कर पाए। हम इसी ढोंग में जीने को मजबूर किए जाते हैं।

"सपनेहु आन पुरुष जग नाही..." तुलसीदास ने उत्तम पतिव्रता की जो व्याख्या की है, उसमें बताया है कि उत्तम पतिव्रता औरतों के सपने में भी कोई पराया मर्द नहीं आता। अलबत्ता उत्तम पत्नीव्रता का जिक्र शास्त्रों में नहीं मिलता मगर महिलाएँ भी अपने पुरुष से यही उम्मीद रखती हैं कि सपने में भी वो किसी पराई औरत का खयाल नहीं लाएगा। मगर कुदरत को हमारी अपेक्षाओं से, हमारी नैतिकता और धर्म से कोई वास्ता नहीं। री-प्रोडक्शन की तलब के तहत कुदरत नर मादा में आकर्षण पैदा करती है और लोग इस आकर्षण से वशीभूत होकर वो कर डालते हैं जो समाज की निगाह में गुनाह है, अनैतिक है, गैरकानूनी है, अधार्मिक है। कबीरदासजी कहते हैं- माया महाठगिनी हम जानी...।

तो वो सच जो हमारी सामाजिक ़जिंदगी के नियमों पर पुनर्विचार की तरफ ले जाते हैं, समाज के लिए अहितकारी कैसे हो सकते हैं? वो सच जो यह बताते हैं कि कुदरत को नैतिकता बाँध नहीं पा रही, कैसे अहितकारी हैं? इसी समाज में तमाम बीमारियाँ पलती हैं, इसी समाज के कारण रेड लाइट एरिया पैदा हो रहा है, इसी समाज में एचआईवी और तमाम बीमारियाँ हैं। अगर समाज एकदम ठीक होता, तो ये सारी चीज़ें नहीं होतीं।

वर्तमान समाज को एकदम ठीक और आदर्श मान लेना जड़ता है। पत्थर युग से अभी तक बदलाव हो रहा है। सच का सामना करने से बदलावों में तेज़ी आती है। सच के खिलाफ जाने से फायदा नहीं होता, बल्कि यथास्थिति बनी रहती है। फिलहाल तो यह बहुत बदतर बात है।