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  5. शिक्षक‍ दिवस
Written By WD

एकलव्य

एकलव्य -
स्वर्ण
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पूर्व राष्ट्रपति एवं शिक्षाविद्‍ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की आज जयंती है जिसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1963 में व्यापक समर्थन से हर साल शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार, एक शिक्षक के रूप में आप तभी सफल हो पाएँगे जब आप अपने विद्यार्थी जीवन में कठिन परिश्रम के बावजूद आई समस्या को वर्तमान में शिक्षक के रूप में छात्रों से जोड़कर देखेंगे और उसके निराकरण के लिए मार्गदर्शक नहीं एक दोस्त नहीं, एक सहपाठी के रूप में छात्रों को उनका भविष्य सुरक्षित करने में मददगार होना चाहिए।

लाल बहादुर शास्त्री, सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद, बाल गंगाधर तिलक, सरदार पटेल, भगत सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, महात्मा गाँधी आदि कई ऐसे नाम हैं जो विश्वप्रसिद्ध हैं एवं जिनके जीवन पर शिक्षक का प्रभाव उनके ‍भविष्य कार्यकर्ता के रूप में देखा जा सकता है।

शिक्षाविद्‍ स्वामी विवेकानंद के अनुसार 'एक शिक्षक विद्यार्थी का सही मार्गदर्शक तब तक रह सकता है, जब तक वह पढ़ना जारी रखता है।

स्वामी शंकराचार्य समुद्र किनारे बैठकर अपने शिष्य से वार्तालाप कर रहे थे कि एक शिष्य ने चाटुकारिता भरे शब्दों में कहा 'गुरुवर! आपने इतना अधिक ज्ञान कैसे अर्जित किया, यही सोचकर मुझे आश्चर्य होता है। शायद और किसी के पास इतना अधिक ज्ञान का भंडार न होगा।

शंकराचार्य बोले - मेरे पास ज्ञान का भंडार है, यह तुम्हें किसने बताया मुझे तो ज्ञान में और वृद्धि करना है। फिर उन्होंने अपने हाथ की लकड़ी पानी में डुबोई और उसे इस शिष्य को दिखाते हुए बोले 'अभी-अभी मैंने इस अथाह सागर में यह लकड़ी डुबोई, किंतु उसने केवल कुछ बूँदें ग्रहण की।

बस यही बात ज्ञान के बारे में है, ज्ञान सागर कभी भरता नहीं, उसे कुछ-कुछ ग्रहण करना ही होता है। मुझसे भी बढ़कर विद्वान हैं, मुझे अभी भी बहुत कुछ ग्रहण करना है।

छात्र जो एक पत्थर होता है शिक्षक उसे तराशकर एक मूर्ति की शक्ल देता है। हर क्षेत्र में आप स्वयं संपूर्ण नहीं होते हैं। कुछ विशेष करने के लिए एक अदद मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। मार्गदर्शक किसी भी रूप में हो सकता है, उसके विभिन्न नाम हैं। उस्ताद, आचार्य, गुरुजी, शिक्षक एवं अन्य पर उनका एक ही मकसद है छात्र का मार्गदर्शन कर उन्हें उनकी सही दिशा देना।

आज देश में संचार व्यवस्था तथा विभिन्न प्रसारण तंत्रों का ऐसा जाल फैला हुआ है कि शिक्षक कहीं धुंधले में खोते जा रहे हैं। टेक्नोलॉजी बढ़ती जा रही है परंतु शिक्षा दर जस का तस पत्थर की भाँ‍ति वहीं पड़ा है।

भारत देश में लाखों कॉलेज, स्कूल होने के बावजूद निरक्षरता बढ़ती जा रही है। जरूरत है शिक्षक बनने की नहीं शिक्षा दान करने की तभी अपना देश विकासशील की श्रेणी से विकसित देशों की श्रेणी में आ पाएगा। शिक्षा के दान की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि

- हरेक एकलव्य नहीं होता
हरेक शिक्षक नहीं होता
काश, देश का हर व्यक्ति शिक्षित होता