लखनऊ। इंडोनेशिया में आयोजित एशियाई खेलों की स्टीपलचेज स्पर्धा में रजत पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाली एथलीट सुधा सिंह ने राजपत्रित अधिकारी की नौकरी देने की उत्तर प्रदेश सरकार की घोषणा को ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’ करार देते हुए कहा कि उन्हें यह नौकरी बहुत पहले ही मिल जानी चाहिए थी।
उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले की रहने वाली सुधा ने कहा कि वह राज्य सरकार की नौकरी की पेशकश से खुश भी हैं, और नहीं भी। नौकरी के लिए उनकी फाइल वर्ष 2014 से ही शासन में घूम रही है। राज्य सरकार की पेशकश एक तरह से ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’ जैसा है।
उन्होंने कहा कि वह एशियाई खेलों में स्वर्ण और रजत पदक जीत चुकी हैं, दो बार ओलंपिक, दो बार वर्ल्ड चैंपियनशिप और चार बार एशियन चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर पदक जीत चुकी हैं। वह अर्जुन पुरस्कार भी पा चुकी हैं। उनके अनुसार वह इस वक्त खेल विभाग में उप निदेशक के पद की हकदार हैं।
सुधा ने कहा कि वह मुख्यमंत्री को धन्यवाद देती हैं लेकिन शायद उन्हें पता नहीं है कि नौकरी के लिए उनकी फाइल चार साल से चल रही है। उन्होंने कहा कि वह खेल विभाग में ही नौकरी करना चाहती हैं। इसके अलावा वह किसी और महकमे में काम नहीं करेंगी।
इस सवाल पर कि इतनी उपलब्धियों के बावजूद उन्हें अब तक नौकरी क्यों नहीं मिली, सुधा ने खुलासा ना करते हुए कहा कि सभी को पता है कि मुझे नौकरी क्यों नहीं मिली। इंडोनेशिया में खेले जा रहे एशियाई खेलों की 3000 मीटर स्टीपलचेज स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाली सुधा को उप्र सरकार ने 30 लाख रुपए का इनाम और राजपत्रित अधिकारी की नौकरी देने का ऐलान किया है।
सुधा के छोटे भाई प्रवेश नारायण सिंह ने बताया कि जिस खिलाडी ने वर्ष 2010 में ग्वांगझू एशियाड में स्वर्ण पदक जीता हो, ओलंपिक में भाग लिया हो, जिसे 2012 में अर्जुन पुरस्कार मिला हो, उसे नौकरी के लिए दफ्तरों के चक्कर लगवाए गए। इतना अपमान करने के बावजूद उसे नौकरी नहीं दी गयी।
उन्होंने कहा कि नवम्बर 2015 में जारी प्रदेश सरकार के एक शासनादेश में ओलंपिक और एशियाड जैसे खेल आयोजनों के पदक विजेताओं को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान है। उसी का अनुपालन करके सुधा को नौकरी दी जा सकती थी, मगर खेल विभाग की उदासीनता और उपेक्षा की वजह से ऐसा नहीं हुआ। सुधा इस रवैये से खासी आहत रहीं।
सिंह ने कहा कि सुधा वर्ष 2005 से मध्य रेलवे में नौकरी कर रही हैं और इस वक्त उनकी तैनाती बॉम्बे बीटी में है। सुधा की अर्से से ख्वाहिश है कि उन्हें उत्तर प्रदेश में नौकरी मिल जाए।
उन्होंने कहा कि निम्न मध्यम वर्ग के परिवार से ताल्लुक रखने वाली यह एथलीट अलसुबह उठकर घर का काम करती थीं और फिर स्टेडियम जाकर अभ्यास करती थीं। वहां से लौटकर फिर घर का काम निपटाती थीं। (भाषा)