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Written By WD Sports Desk
Last Updated : मंगलवार, 3 सितम्बर 2024 (16:40 IST)

2009 में ट्रेन दुर्घटना में खोया पैर, महीनों रहा बिस्तर पर, IITian ने अब जीता गोल्ड

नितेश कुमार की यात्रा : बिस्तर पर पड़े रहने वाले किशोर से पैरालंपिक में गोल्ड जीतने का सफर

Badminton tournament
भले ही नितेश कुमार अब पैरालंपिक में स्वर्ण सफलता हासिल हों लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे थे और उनका हौसला टूटा हुआ था।नितेश जब 15 साल के थे तब उनकी जिंदगी में दुखद मोड़ आया और 2009 में विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया।

बिस्तर पर पड़े रहने के कारण वह काफी निराशा हो चुके थे। उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरा बचपन थोड़ा अलग रहा है। मैं फुटबॉल खेलता था और फिर यह दुर्घटना हो गई। मुझे हमेशा के लिए खेल छोड़ना पड़ा और पढ़ाई में लग गया। लेकिन खेल फिर मेरी जिंदगी में वापस आ गए। ’’

बैडमिंटन SL3 फाइनल में पहुंच चुके नितेश को IIT-मंडी में पढ़ाई के दौरान उन्हें बैडमिंटन की जानकारी मिली और फिर यह खेल उनकी ताकत का स्रोत बन गया।

साथी पैरा शटलर प्रमोद भगत की विनम्रता और स्टार क्रिकेटर विराट कोहली से प्रेरणा लेकर नितेश ने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू कर दिया।उन्होन कहा, ‘‘प्रमोद भैया (प्रमोद भगत) मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं। इसलिए नहीं कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं बल्कि इसलिए भी कि वे एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘विराट कोहली ने जिस तरह से खुद को एक फिट एथलीट में बदला है, मैं इसलिए उनकी प्रशंसा करता हूं। अब वह इतने फिट और अनुशासित हैं। ’’

नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी वर्दी पहनने की ख्वाहिश की थी। उन्होंने कहा, ‘‘मैं वर्दी का दीवाना था। मैं अपने पिता को उनकी वर्दी में देखता था और मैं या तो खेल में या सेना या नौसेना जैसी नौकरी में रहना चाहता था। ’’लेकिन दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया। पर पुणे में कृत्रिम अंग केंद्र की यात्रा ने नितेश का दृष्टिकोण बदल दिया।
बिस्तर से पैरालम्पिक पोडियम तक प्रेरणास्पद है नितेश का सफर:

जब नितेश 15 वर्ष के थे तब उन्होंने 2009 में विशाखापत्तनम में एक रेल दुर्घटना में अपना बायां पैर खो दिया था लेकिन वह इस सदमे से उबर गए और पैरा बैडमिंटन को अपनाया।

नितेश की यह जीत सिर्फ निजी उपलब्धि नहीं है बल्कि इस जीत के साथ एसएल3 वर्ग का स्वर्ण पदक भारत के पास बरकरार रहा। तोक्यो में तीन साल पहले जब पैरा बैडमिंटन ने पदार्पण किया था तो प्रमोद भगत ने इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता था।

साथी पैरा बैडिंटन खिलाड़ी प्रमोद भगत की विनम्रता और स्टार क्रिकेटर विराट कोहली के अथक समर्पण से प्रेरित होकर, नितेश ने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू किया।

आईआईटी मंडी से स्नातक नितेश ने इससे पहले बेथेल के खिलाफ सभी नौ मैच गंवाए थे और उन्होंने सोमवार को ग्रेट ब्रिटेन के खिलाड़ी के खिलाफ पहली जीत दर्ज की।

नितेश ने कहा, ‘‘प्रमोद भैया प्रेरणास्रोत रहे हैं। ना केवल इसलिए कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं, बल्कि इसलिए भी कि वह एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं विराट कोहली को भी प्रशंसक हूं क्योंकि जिस तरह से उन्होंने खुद को एक फिट खिलाड़ी में बदल लिया है। वह 2013 से पहले कैसे हुआ करते थे और अब वह कितने फिट और अनुशासित हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने इस तरह से नहीं सोचा था। मेरे दिमाग में विचार आ रहे थे कि मैं कैसे जीतूंगा। लेकिन मैं यह नहीं सोच रहा था कि जीतने के बाद मैं क्या करूंगा।’’

फाइनल मुकाबला धीरज और कौशल का परीक्षण था जिसमें दोनों खिलाड़ियों ने बहुत ही कठिन रैलियां खेली। शुरुआती गेम में लगभग तीन मिनट की 122 शॉट् की रैली भी थी।

नितेश के लिए यह जीत वर्षों की कड़ी मेहनत और दृढ़ता का परिणाम था। दुर्घटना के बाद बिस्तर पर पड़े रहने से लेकर पैरालंपिक पोडियम पर शीर्ष पर खड़े होने तक का सफर उनके अदम्य साहस का प्रमाण है।

नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए रक्षा बलों में शामिल होने का सपना देखा था। हालांकि दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया।

नितेश ने फरीदाबाद में 2016 के राष्ट्रीय खेलों में पैरा बैडमिंटन में पदार्पण किया जहां उन्होंने कांस्य पदक जीता। वैश्विक स्तर पर भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने 2022 में एशियाई पैरा खेलों में एकल में रजत सहित तीन पदक जीते।(भाषा)