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Last Modified: शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021 (14:55 IST)

2024 तक अपने कोच का साथ चाहते हैं नीरज चोपड़ा, इंटरव्यू में किया खुलासा

2024  तक अपने कोच का साथ चाहते हैं नीरज चोपड़ा, इंटरव्यू में किया खुलासा - Neeraj Chopra wants present coach to be with him till 2024
नई दिल्ली:ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने अपने मौजूदा कोच जर्मनी के क्लाउस बार्टोनिट्ज को खुद लिए ‘सर्वश्रेष्ठ’ बताते हुए शुक्रवार को कहा कि वह 2024 के पेरिस खेलों में भी अपनी यह शानदार साझेदारी जारी रखना चाहेंगे।

‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव’ में एक परिचर्चा के दौरान, चोपड़ा ने कहा कि बार्टोनिट्ज के तरीके उनके अनुकूल हैं क्योंकि यह बायो-मैकेनिक विशेषज्ञ गंभीर सत्रों के दौरान भी चुटकुले सुनाकर माहौल खुशनुमा बना देता है।

उन्होंने देश के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा की मौजूदगी में कहा, ‘‘ कई बार, अभ्यास सत्र के दौरान मैं बहुत गंभीर नहीं रहना चाहता हूं। कई कोच ऐसे होते है जो डंडा पकड़ के पीछे खड़े होते हैं लेकिन क्लाउस सर ऐसे नहीं है।’’

इस 23 साल के खिलाड़ी ने कहा, ‘‘अभ्यास में जब भी हमें गंभीर और पूरा दमखम लगाना होता है, तो हम गंभीरता से काम करते हैं लेकिन सत्र के बीच में कभी-कभी वह चुटकुले सुनाते हैं और इससे प्रशिक्षण के दौरान माहौल आनंदमय हो जाता है।’’

तोक्यो खेलों में स्वर्ण पदक के साथ ही एथलेटिक्स में पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने नीरज ने कहा, ‘‘ उनके प्रशिक्षण के तरीके मेरे अनुकूल हैं और मेरी उनसे काफी अच्छी बनती है। मैं अगले ओलंपिक के लिए भी उनके साथ प्रशिक्षण जारी रखना चाहता हूं।’’

चोपड़ा 2019 से बार्टोनिट्ज के साथ प्रशिक्षण ले रहे हैं। वह पहले जर्मनी के ही पूर्व विश्व रिकॉर्ड धारक उवे होन की देख रेख में प्रशिक्षण ले रहे थे, जिन्हें हाल ही में भारतीय एथलेटिक्स महासंघ ने उनके वेतन और प्रशिक्षण विधियों सहित कई मतभेदों के कारण कार्यमुक्त कर दिया था।

चोपड़ा तोक्यो में अपनी ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद पूरे देश के चहेते बन गये थे, लेकिन 2019 में अपने मुख्य हाथ की कोहनी की सर्जरी से गुजरने के बाद उन्हें अनिश्चित समय का सामना करना पड़ा था।

उन्होंने कहा, ‘‘जब मेरी सर्जरी हुई थी तब वह मेरे लिए यह बहुत कठिन समय था । मुझे 30-45 दिनों के लिए पूर्ण आराम करना था। मैंने जल्दी वापस आने के लिए चीजों को पूरा किया। मुझे धीमी साइकिल चलाने के लिए व्यायाम करने के लिए कहा गया था लेकिन मैंने वापसी के लिए जल्दबाजी की जिससे मेरे पैरों में चोट लग गई।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने से चूक गया जिसमें पदक विजेताओं ने वह दूरी तय की जो मैं कर सकता था। लेकिन मुझे खुशी थी कि इन सब के बाद मैं अपने पहले अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में तोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर सका।’’

बिंद्रा ने कहा कि 2008 के बीजिंग खेलों में उनके स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारत को दूसरा स्वर्ण जीतने में 13 साल का समय लगा यह देश में खेल के धीमी विकास को दर्शाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘13 साल (एक और स्वर्ण जीतने के लिए) लगना एक धीमी प्रगति है लेकिन फिर भी भारतीय खेल प्रगति कर रहा है और अगला दशक खेल के विकास में भारत का दशक हो सकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ "इसके अलावा, भारतीय एथलीटों की आज की पीढ़ी निडर, आत्मविश्वास से भरी हुई है और नीरज उनमें से एक है। मौजूदा एथलीटों को जिस तरह के संसाधन मिल रहे हैं, उसकी किसी भी देश में मिलने वाली सुविधाओं से की जा सकती है।’’

अपने बारे में बात करते हुए, बिंद्रा ने कहा, "मैं मूल रूप से थोड़ा डरपोक और शर्मीला व्यक्ति हूं। मैंने अपने पूरे करियर में अपनी काबिलियत पर संदेह किया।’’ (भाषा)
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