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Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Last Updated : गुरुवार, 29 अगस्त 2019 (20:19 IST)

मानसी ने पैर खोया, हिम्मत नहीं, जीत लिया वर्ल्ड बैडमिंटन का गोल्ड

मानसी ने पैर खोया, हिम्मत नहीं, जीत लिया वर्ल्ड बैडमिंटन का गोल्ड - Mansi Joshi wins gold in world badminton
नई दिल्ली। स्विट्‍जरलैंड के बासेल में आयोजित विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में एक नहीं बल्कि दो बार भारत का राष्ट्रगान बजा और तिरंगा ध्वज ऊपर गया...पीवी सिंधू के वर्ल्ड चैम्पियन‍ बनने से कुछ देर पहले ही विश्व पैरा बैडमिंटन में 30 साल मानसी जोशी भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत चुकीं थीं लेकिन पूरे देश का ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया, यह सबसे बड़ा सवाल है...वह भी ऐसी जांबाज खिलाड़ी के लिए जिसने 8 बरस पहले एक दुर्घटना में अपना एक पैर हमेशा के लिए खो दिया था...
 
प्रधानमंत्री मोदी ने दी बधाई : पैरा विश्व बैडमिंटन में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन शानदार रहा और जीते गए कुल 12 पदकों में मानसी जोशी का स्वर्ण पदक भी शामिल है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को इन खिलाड़ियों को बधाई दी और ट्वीट करते हुए लिखा- '130 करोड़ भारतीयों को पैरा बैडमिंटन दल पर बहुत गर्व है।' 
 
जिंदगी जिंदादिली का नाम है : पैरा विश्व बैडमिंटन का गोल्ड मैडल जीतकर मानसी ने पूरे देश के दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल कायम की है। खासकर उन लोगों के लिए जो किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण अपने शरीर का महत्वपूर्ण अंग खो देते हैं और जिंदगी को बोझ समझने लगते हैं। ऐसे लोगों को मानसी का संदेश है, 'जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जीते हैं..।'
8 साल पहले की वह भयानक दुर्घटना : महाराष्ट्र की मानसी जोशी 8 साल पहले 2011 में हुई ट्रक दुर्घटना को याद करते हुए सिहर उठती हैं। इस सड़क दुर्घटना के बाद उन्हें अस्पताल पहुंचाने में 3 घंटे देरी हो गई। खून से लथपथ मानसी ने ऑपरेशन थिएटर में 12 घंटे तक जिंदगी और मौत से संघर्ष किया...12 घंटे तक चली सर्जरी में डॉक्टरों को उनकी जिंदगी बचाने के लिए एक पैर काटना पड़ा।
 
50 दिन अस्पताल में गुजारने के बाद भी हौंसला नहीं टूटा : मानसी जोशी अपना एक पैर खो चुकीं थी लेकिन उनका हौंसला नहीं टूटा। कुछ दिनों बाद वे जब घर आ गई तो उन्हें अपना प्रिय खेल बैडमिंटन याद आया, जिसे वे बचपन से प्यार करती थीं और जिला स्तर पर कई बार सफलता भी अर्जित कर चुकीं थीं। मानसी बताती हैं कि मेरे मन में यही चल रहा था कि मैं भले ही दौड़ नहीं सकती तो क्या हर्ज है कृत्रिम पैर के सहारे खड़े होकर विरोधी का मुकाबला तो कर सकती हूं। 
 
कृत्रिम पैर लगाकर अभ्यास शुरू : 4 महीने बाद मानसी ने कृत्रिम पैर लगाकर अभ्यास शुरू किया और 2014 में वे पेशेवर बैडमिंटन खिलाड़ी बन गईं। बाद में उन्होंने हैदराबाद में गोपीचंद की बैडमिंटन अकादमी में ट्रेंनिंग शुरू कर दी। गोपीचंद जैसा नायाब कोच मिलने से दिव्यांग मानसी के हौंसले को नई उड़ान मिल गई।
विश्व बैडमिंटन में पहला पदक : गोपीचंद की अकादमी में जमकर पसीना बहाने वाली मानसी जोशी की झोली में पदक आने में देरी नहीं हुई। गोपीचंद की अकादमी में जमकर पसीना बहाने वाली मानसी ने 2015 में पैरा विश्व बै‍डमिंटन के मिश्रित युगल में रजत पदक जीता जबकि 2017 में वे कांस्य पदक जीतने में सफल रहीं। यह चैम्पियनशिप कोरिया में आयोजित हुई थी।
 
मानसी ने बदला पदक का रंग : 2 साल की अथम मेहनत और तपस्या का ही परिणाम है कि मानसी ने बासेल में विश्व पैरा बैडमिंटन का स्वर्ण पदक अपने गले में पहना। एसएल-3 फाइनल में उन्होंने भारत की ही पारुल परमार को 21-12, 21-7 से शिकस्त दी। 
 
मानसी का अगला लक्ष्य टोक्यो ओलंपिक : गोल्ड मैडल जीतने के बाद मानसी ने कहा कि मैं हर कदम पर साथ देने के लिए कोच पुलेला गोपीचंद का शुक्रिया अदा करती हूं। उन्होंने यह भी कहा कि वर्ल्ड चैम्पियन बनने के लिए मैंने कड़ी मेहनत के साथ ही वजन भी कम किया। अब मेरा अगला लक्ष्य 2020 के टोक्यो पैरा ओलंपिक में सोना जीतना है। 
 
इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं मानसी : मानसी खेल के साथ ही साथ पढ़ाई में भी अव्वल रहीं। वे इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं। उनके पिता भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में कार्यरत हैं। उन्हें अपने परिवार की तरफ से हमेशा प्रोत्साहन मिला, जिसके कारण वे भारत का पचरम लहराने में कामयाब हुईं। 
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