जिम्नास्ट राकेश पात्रा पदक जीतने को बेताब...
कोलकाता। अदालत की शरण में जाने के बाद राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भारतीय जिम्नास्ट टीम में शामिल किए गए राकेश पात्रा न सिर्फ खुद को साबित करने के लिए पदक जीतने को बेताब हैं बल्कि इससे वे वित्तीय रूप से भी मजबूत बनना चाहते हैं।
इस 26 वर्षीय कलात्मक जिम्नास्ट को भारतीय जिम्नास्टिक महासंघ और भारतीय ओलंपिक संघ के बीच चल रही तनातनी के कारण पहले टीम में नहीं चुना गया था। इसके बाद उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसके बाद उन्हें टीम में रखा गया। ओडिशा के रहने वाले और विश्व कप के फाइनलिस्ट पात्रा की अब तक की यात्रा काफी मुश्किलों से भरी रही।
जब वे 5 साल के थे तब उनका घर आग की भेंट चढ़ गया था लेकिन ब्रह्मगिरि में प्राइमरी स्कूल के शिक्षक उनके पिता दयानिधि पात्रा ने अपने बेटे को अच्छा खिलाड़ी बनाने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। भारतीय नौसेना में कार्यरत पात्रा ने मुंबई से कहा कि उन्हें लगभग 400 रुपए महीना मिलता था जिसमें से आधा वे मेरे पर खर्च कर देते थे।
पात्रा ने मुंबई से कहा कि मैंने उन्हें भूखे पेट सोते हुए भी देखा है। मुझे अब भी उस दर्द का अहसास होता है। उन्होंने कहा कि मेरे चाचा और कोच ने मेरे पिताजी से कहा कि जिम्नास्टिक में मेरा भविष्य है। शिक्षक होने के बावजूद मेरे पिताजी ने मेरा पूरा सहयोग किया। जिम्नास्ट बनने के लिए मुझे जो कुछ चाहिए था वह मुझे मुहैया कराया गया।
पात्रा 2010 राष्ट्रमंडल खेल और एशियाई खेलों से भारतीय टीम का हिस्सा हैं। वे 5 विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं लेकिन शीर्ष स्तर पर पदक से अब तक वंचित हैं। उन्होंने कहा कि इसका मुझे अब भी खेद है लेकिन मुझे उम्मीद है कि अगले 2 वर्षों में चीजें बदलेंगी। पिछले महीने मेलबोर्न में विश्व कप में पात्रा फाइनल्स में पहुंचे तथा जापान और चीन के प्रतिद्वंद्वियों के बाद चौथे स्थान पर रहे। गोल्ड कोस्ट में ये दोनों देश भाग नहीं लेंगे और ऐसे में पात्रा की पदक जीतने की उम्मीद बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि अगर प्रतियोगिता के दिन अच्छा प्रदर्शन करता हूं तो पदक जीतने में सफल रहूंगा। मैं धीरे-धीरे सर्वश्रेष्ठ तक पहुंच रहा हूं। अभी 20 दिन बचे हैं और उम्मीद है कि राष्ट्रमंडल खेलों में मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा। मुझे इंग्लैंड और कनाडा की कड़ी चुनौती का सामना करना होगा। पात्रा पिछले 1 साल से घर नहीं गए हैं, क्योंकि उनके माता-पिता चाहते हैं कि वे अपने प्रशिक्षण पर ध्यान दें।
उन्होंने कहा कि मैं घर जाकर अपने पिताजी की साइकल को हटाकर उसके बदले उन्हें स्कूटर देना चाहता था लेकिन उन्होंने मेरी बात ठुकरा दी और कहा कि पहले पदक जीतो और फिर आओ। मैं नहीं चाहता कि उनकी कठिन तपस्या बेकार जाए। (भाषा)