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Written By WD

उज्जयिनी की प्राचीन वेधशाला : सितारों के आगे जहां और भी है

उज्जयिनी की प्राचीन वेधशाला : सितारों के आगे जहां और भी है - Religious place Observatory
डॉ. राजशेखर व्यास 

अधिकांश लोग जिस स्थान को 'यंत्र-महल' के नाम से जानते हैं, वह वेधशाला उज्जैन के दक्षिण में शिप्रा नदी के दक्षिण तट के उन्नत भू-भाग पर स्थित है। पुरातन काल में उज्जैन ज्योतिष-विद्या का प्रमुख केंद्र स्थल रहा है। भू-मध्य रेखा यहीं से होकर गई है। 


 
'यल्लंकोज्जयिनी पुरोपरि कुरू-क्षेत्रादि देशान्स्पृशन।
सुंत्रमेत्रगतं धुवैर्निगदिता समध्य रेषा भुव:।।' 




 
अत: ज्योतिष-गणित का यह स्थान ही आधार स्थल माना जाता है। 18वीं सदी में जिस समय यहां बादशाह की तरफ से राजा जयसिंह सूबा बनकर रहता था, उसने अपने ज्योतिष-प्रेम के कारण इस स्थान का निर्माण करवाया। वह स्वयं ज्योतिष शास्त्र का उत्तम जानकार था। ग्रहों के प्रत्यक्ष वेध लेने के लिए उसने उज्जैन, दिल्ली, काशी, जयपुर आदि स्थानों में वेधशाला बनवाकर सदभिरुचि का परिचय दिया है। उसने वेध लेकर ज्योतिष पर एक ग्रंथ का भी निर्माण किया था। यहीं पर एक उपनगर भी बसाया है, जो आज भी जयसिंह की स्मृति में जयसिंहपुरा नाम से प्रख्यात है।
 
वेधशाला बहुत समय तक नष्ट-भ्रष्ट रूप में पड़ी रही है। संवत् 1961 में बम्बई में पंचांग-संशोधन-सभा का वृहद सम्मेलन हुआ था। उसके कर्ता स्व. लोकमान्य तिलक थे। उज्जैन से उस समय सम्मेलन में यहां के भारत विख्यात ज्योतिर्विद्या के विद्वान पं. नारायणजी व्यास सिद्धांतवागीश गए थे। उन्होंने उज्जैन में वेधशाला का महत्व बतलाते हुए 'करण ग्रंथ' बनाने पर जोर दिया था। जो पीछे सर्व-सम्मतया स्वीकृत हुआ था।





उसी के पश्चात उनके और सू.ना. व्यास के प्रयत्न से स्व. महाराज का ध्यान आकर्षित हुआ। वेधशाला का पुन: जीर्णोद्धार हुआ। इस समय यह सुंदर अवस्था में है। यहां एक सुपरिंटेंडेंट और निरीक्षक हैं। वे इस स्थान का उपयोग लेकर सर्वसाधारण पर उसका परिणाम प्रकट करते रहते हैं। यहां 'सम्राट यंत्र' सर्वप्रथम मिलता है। इससे स्पष्ट समय सूर्योदय से सूर्यास्तपर्यंत घंटे-मिनट और 20 सेकंड तक का काल मालूम होता है। स्पष्ट क्रांति विशुवांष जानना होता है, दिगंश यंत्र हैं। इससे ग्रह-नक्षत्रादिकों के दिगंश मालूम होते हैं। इसके मालूम होने से उनके स्थान का पता चल जाता है। 'नाड़िवलय यंत्र' से स्पष्ट समय ग्रह-नक्षादिकों के दक्षिणात्र गमन का ठीक समय जाना जाता है। 'दक्षिणेश्वर भित्ति यंत्र' द्वारा ग्रह-नक्षादिकों के मध्याह्न वृत्त पर आने के समय उनके नतांश-उन्नतांश आदि का बोध होता है। 
 
'पलभा यंत्र' की छाया से दिन में ठीक समय जाना जाता है।
 
यहां भी शिप्रा का दृश्य बड़ा मनोहर मालूम होता है। दर्शकों को यंत्रों के परिचय कराने की यहां पूरी व्यवस्था है।