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गुरु नानक देव के 5 प्रेरक प्रसंग

गुरु नानक देव के 5 प्रेरक प्रसंग - Guru Nanak dev jee
Guru Nanak dev
 

गुरु नानक देव सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरु है। उनका अवतरण संवत्‌ 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन माता तृप्ता देवी जी और पिता कालू खत्री जी के घर हुआ था। गुरु नानक देव ने स्वयं सात्विक जीवन और प्रभु को याद करने में ही अपना जीवन बिताया, उनकी इस महानता के दर्शन बचपन से ही उनमें दिखने देते थे। 22 सितंबर, 1539 को गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में अपना शरीर त्याग दिया था।

यहां पढ़ें उनके जीवन के 5 प्रेरक प्रसंग-  
 
1. मूल्यवान सीख : एक बार एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला, 'बाबा मैं चोरी तथा अन्य अपराध करता हूं। मेरा जीवन सुधर जाए, ऐसा कोई उपाय बताइए।' गुरु नानक देव जी ने कहा कि, 'तुम चोरी करना बंद कर दो। सत्य बोलने का व्रत लो। तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।' वह व्यक्ति उन्हें प्रणाम कर लौट गया। कुछ दिन बाद वह फिर आया। बोला, 'बाबा चोरी करने और झूठ बोलने की आदत नहीं छूट रही है। मैं क्या करूं।' गुरु नानक जी बोले, 'भैया, तुम अपने दिन रात का वर्णन चार लोगों के सामने कर दिया करो।' चोर ने अगले दिन चोरी की, लेकिन वह लोगों को बता नहीं पाया, क्योंकि उसे डर था कि लोग उससे घृणा करने लगेंगे। उसने उसी क्षण चोरी न करने का संकल्प लिया। कुछ दिन बाद वह पुन: नानक देव जी के पास गया और बोला, 'बाबा, आपके बताए तरीके ने मुझे अपराधमुक्त कर दिया है। अब मैं मेहनत से कमाई करके अपना गुजरा करता हूं।' 
 
2. सच्चा सौदा : एक बार नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए बीस रुपए दिए और कहा- 'इन बीस रुपए से सच्चा सौदा करके आओ। नानक देवजी सौदा करने निकले। रास्ते में उन्हें साधु-संतों की मंडली मिली। नानक देव जी ने उस साधु मंडली को बीस रुपए का भोजन करवा दिया और लौट आए। पिताजी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने कहा- 'साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है।'
 
3. रूढ़िवादिता के खिलाफ संघर्ष का किस्सा : गुरु नानक देव जी ने रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत बचपन से ही कर दी थी, जब उन्हें 11 साल की उम्र में जनेऊ धारण करवाने की रीत का पालन किया जा रहा था। जब पंडितजी बालक नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ रोका और कहने लगे- 'पंडितजी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो आत्मा को बांध सके। आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हुआ? और उन्होंने जनेऊ धारण नहीं किया।'
 
4. हिंदू बड़ा या मुसलमान : एक बार कुछ लोगों ने नानक देव जी से पूछा, आप हमें यह बताइए कि आपके मत अनुसार हिंदू बड़ा है या मुसलमान, नानक जी ने उत्तर दिया- अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे/ एक नूर से सब जग उपजया को भले को मंदे, अर्थात् सब बंदे ईश्वर के पैदा किए हुए हैं, न तो हिंदू कहलाने वाला रब की निगाह में कबूल है, न मुसलमान कहलाने वाला। रब की निगाह में वही बंदा ऊंचा है जिसका अमल नेक हो, जिसका आचरण सच्चा हो।
 
5. बदल गया फकीर का जीवन : एक बार नानक देव जी अब्दाल नगर पहुंचे, जहां वली कंधारी नाम का एक माना हुआ फकीर रहता था। जो अपने कुदरती चश्मे से सबको पानी पिलाता था। नानक देव के साथी भाई मरदाना भी उसके पास पानी पीने पहुंचे पर फकीर, जो कि नानक देव जी की प्रसिद्धि से जलता था, उसने भाई मरदाने को पानी पिलाने से मना कर दिया। भाई मरदाने ने जाकर यह बात ननक जी को बताई तो उन्होंने पास ही से एक पत्थर उठाया, तो निर्मल पावन जल वहीं से बह निकला और फकीर का चश्मा सूख गया। तब फकीर ने क्रोध में आकर पहाड़ी से एक पत्थर नानक जी के सिर पर मारने के लिए लुढ़काया। पर उन्होंने उसे हाथों पर ही रोक लिया। नानक देव की शक्ति देखकर वह फकीर उनके चरणों में गिर पड़ा और तब नानक जी ने उसे सत्य धर्म का उपदेश देकर उसका जीवन बदल दिया। 

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