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गजलक्ष्मी व्रत कब है, इस दिन विशेष वरदान देती हैं महालक्ष्मी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

गजलक्ष्मी व्रत कब है, इस दिन विशेष वरदान देती हैं महालक्ष्मी, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि - Gajlakshmi vrat worship n muhurat
Gajlaxmi Vrat
 
इस वर्ष श्री महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ सोमवार, 13 सितंबर 2021 को हुआ था। यह व्रत 16 दिनों तक चलता है। इस व्रत का समापन मंगलवार, 28 सितंबर 2021 को होगा।

प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से भी महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ होता है, जो 16 दिनों तक जारी रहकर इसका समापन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन होगा। कैलेंडर के मत-मतांतर से यह व्रत कहीं-कहीं 28 सितंबर या 29 सितंबर को भी रखा जाएगा। इस दिन महालक्ष्मी देवी अपार धन संपत्ति और खुशहाल जीवन का विशेष वरदान देती हैं। इसी दिन कालाष्टमी और महालक्ष्मी व्रत पूर्ण होगा। 
 
पूजन विधि :
 
यह व्रत भादो शुक्ल अष्टमी से शुरू किया जाता है और इस दिन एक सकोरे में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं। प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें पानी से सींचा जाता है। ज्वारे बोने के दिन ही कच्चे सूत (धागे) से 16 तार का एक डोरा बनाया जाता है। इस डोरे की लंबाई आसानी से गले में पहन जा सकें इतनी रखी जाती है। इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गांठें बांधकर हल्दी से इसे पीला करके पूजा के स्थान में रख दिया जाता है और प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजन किया जाता है।

 
आश्विन यानी क्वांर मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन उपवास रखकर श्रृंगार करके 18 मुट्ठी गेहूं के आटे से 18 मीठी पूड़ी बनाई जाती है तथा आटे का एक दीपक बनाकर 16 पु‍ड़ियों के ऊपर रखें तथा दीपक में एक घी-बत्ती रखें, शेष दो पूड़ी महालक्ष्मी जी को चढ़ाने के लिए रखें।

पूजन करते समय इस दीपक को जलाएं तथा कथा पूरी होने तक दीपक जलते रखना चाहिए। अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें। पूजन के पश्चात इन्हीं 16 पूड़ी को सिवैंया की खीर या मीठे दही से खाते हैं। इस व्रत में नमक नहीं खाते हैं। इन 16 पूड़ी को पति-पत्नी या पुत्र ही खाएं, अन्य किसी को नहीं दें। मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति बैठी हो। 
 
सायंकाल जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें। तांबे का एक कलश जल से भरकर पटे के सामने रखें। एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, आंटी (लाल धागा), मेहंदी, हल्दी, टीकी, सुरक्या, दोवड़ा, दोवड़ा, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, मौसम का फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद आदि) रखें। केल के पत्तों से झांकी बनाएं।

संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं। पटे पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। विधिपूर्वक महालक्ष्मीजी का पूजन करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें। भोजन के पश्चात रात्र‍ि जागरण तथा भजन-कीर्तन करें। दूसरे दिन प्रात:काल हाथी को जलाशय में विसर्जन करके सुहाग-सामग्री ब्राह्मण को दें। 
 
गजलक्ष्मी व्रत पूजन के शुभ मुहूर्त- 
 
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 28 सितंबर, दिन मंगलवार को शाम 06.16 मिनट पर हो शुरू होकर इसका समापन 29 सितंबर को रात के 08.29 मिनट पर होगा। उदया तिथि के कारण इस व्रत को 29 सितंबर को भी रखा जाएगा। 

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