• गुरु अमर दास जी कौन थे।
• सिखों के तीसरे गुरु गुरु अमर दास।
• अमर दास जी का जीवन परिचय जानें।
Guru Amardas Ji: आज सिखों के तृतीय गुरु, गुरु अमरदास जी की जयंती मनाई जा रही है। तारीख के अनुसार गुरु अमर दास जी का जन्म 05 अप्रैल 1479 को तथा तिथिनुसार वैशाख शुक्ल 14वीं (चौदस), के दिन ई. 1479 में अमृतसर के 'बासरके' गांव में हुआ था, जो कि अब पंजाब के अमृतसर जिले में आता है।
आइए जानते हैं उनके बारे में....
गुरु अमर दास जी उनके पिता का नाम तेजभान एवं माता का नाम लखमी जी था। वे दिनभर खेती और व्यापार के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद हरि नाम का सिमरन करने में लगे रहते थे। लोग उन्हें भक्त अमर दास जी कहकर पुकारते थे।
वे एक महान समाज सुधारक और बड़े आध्यात्मिक चिंतक थे। उन्होंने 21 बार हरिद्वार की पैदल फेरी लगाई थी। समाज से भेदभाव खत्म करने के प्रयासों में सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी का बड़ा योगदान है।
गुरु गद्दी : उन्होंने एक बार अपनी पुत्रवधू से गुरु नानक देव जी द्वारा रचित एक 'शबद' सुना। उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देव जी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ बिराजे। और उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देवजी को गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की। सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी ने उनकी सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर एवं उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर 'गुरु गद्दी' सौंप दी। इस प्रकार वे सिखों के तीसरे गुरु बन गए।
उल्लेखनीय कार्य : उस मध्यकालीन भारतीय समाज 'सामंतवादी समाज' होने के कारण अनेक सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त था। उस समय जाति-प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या हत्या, सती प्रथा जैसी अनेक बुराइयां समाज में प्रचलित थीं। ये बुराइयां समाज के स्वस्थ विकास में रोड़ा बनकर खड़ी थीं। ऐसे कठिन समय में गुरु अमर दास जी ने इन सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया। उन्होंने समाज को विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरीतियों से मुक्त करने के लिए सही मार्ग भी दिखाया।
इतना ही नहीं, छुआछूत की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने गोइंदवाल साहिब में एक 'सांझी बावली' का निर्माण भी कराया। कोई भी मनुष्य बिना किसी भेदभाव के इसके जल का प्रयोग कर सकता था। और जाति प्रथा एवं ऊंच-नीच को समाप्त करने के लिए गुरु जी ने लंगर प्रथा को और सशक्त किया। उस जमाने में भोजन करने के लिए जातियों के अनुसार पंगते लगा करती थीं, लेकिन गुरु अमर दास जी ने सभी के लिए एक ही पंगत में बैठकर लंगर छकना यानी भोजन करना अनिवार्य कर दिया। इतना ही नहीं यह भी कहा जाता हैं कि जब मुगल बादशाह अकबर गुरु-दर्शन के लिए गोइंदवाल साहिब आया, तो उसने भी 'संगत' के साथ एक ही 'पंगत' में बैठकर लंगर छका।
क्रांतिकारी कार्य : गुरु अमर दास जी ने कई क्रांतिकारी कार्य किए, जिसमें सती प्रथा की समाप्ति का था। उन्होंने सती प्रथा जैसी घिनौनी रस्म को स्त्री के अस्तित्व का विरोधी मानकर उसके विरुद्ध जबरदस्त प्रचार किया, ताकि महिलाएं सती प्रथा की इससे मुक्ति पा सकें। उन्होंने सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाने और पहले समाज सुधारक के तौर पर भी कार्य किया था। उन्होंने 'वार सूही' में द्वारा सती प्रथा का जोरदार खंडन किया भी है। 01 सितंबर 1574 को सती प्रथा के प्रबल विरोधी रहे गुरु अमर दास जी दिव्य ज्योति में विलीन हो गए।
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