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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 9 मई 2024 (12:41 IST)

आध्यात्मिक गुरु, गुरु अंगद देव की जयंती, जानें 5 अनसुने तथ्य

सिखों के दूसरे गुरु का प्रकाश पर्व

आध्यात्मिक गुरु, गुरु अंगद देव की जयंती, जानें 5 अनसुने तथ्य - guru angad dev jyanati
HIGHLIGHTS
 
• गुरु अंगद देव की जीवनी। 
• गुरु अंगद देव का वास्तविक नाम जानें।
• सिखों के दूसरे गुरु के बारे में जानें।
Guru Angad Dev: सिख धर्मशास्त्रों के अनुसार गुरु अंगद साहिब का जन्म तिथि के अनुसार वैसाख वदी एकम (1) को हुआ था। तथा तारीख के अनुसार उनका जन्म 31 मार्च 1504 ईस्वी में हुआ था। आइए यहां जानते हैं उनके बारे में...
 
1. गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। उनका वास्तविक नाम लहणा था। अंगद देव की भक्ति और आध्यात्मिक योग्यता से प्रभावित होकर ही गुरु नानक जी ने इन्हें अपना अंग माना और अंगद नाम दिया था। गुरु अंगद देव में सृजनात्मक व्यक्तित्व और आध्यात्मिक क्रियाशीलता थी, जिससे पहले वे एक सच्चे सिख बने और फिर एक महान गुरु। नानकशाही समत के अनुसार गुरु अंगद/ लहणा जी का जन्म वैसाख वदी 1 को पंजाब के फिरोजपुर में हरीके नामक गांव में हुआ था। उनके पिता फेरू मल एक व्यापारी थे और उनकी माता का नाम रामो जी था। 
 
2. अंगद जी को खडूर निवासी भाई जोधा सिंह से गुरु दर्शन की प्रेरणा मिली। एक बार उन्होंने गुरु नानक जी का एक गीत एक सिख भाई को गाते हुए सुन लिया। इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव जी से मिलने का मन बनाया। कहा जाता हैं कि गुरु नानक जी से पहली मुलाकात में ही गुरु अंगद जी सिख धर्म में परिवर्तित होकर कतारपुर में रहने लगे। इन्होंने ही गुरुमुखी की रचना की और गुरु नानक देव की जीवनी लिखी थी। 
 
3. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि गुरु बनने के लिए नानक देव जी ने उनकी 7 परिक्षाएं ली थी। सिख धर्म और गुरु के प्रति उनकी आस्था देखकर गुरु नानक जी ने उन्हें दूसरे नानक की उपाधि दी और गुरु अंगद का नाम दिया। तब से वे सिखों के दूसरे गुरु माने गए। 
 
4. नानक देव जी के निधन के बाद गुरु अंगद देव ने नानक के उपदेशों को आगे बढ़ाने का काम किया और गुरु अंगद साहब के नेतृत्व में ही लंगर की व्यवस्था का व्यापक प्रचार हुआ। सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी ने एक बार अपनी पुत्रवधू से गुरु नानक देव जी द्वारा रचित एक 'शबद' सुना। उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देव जी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ बिराजे। 
 
5. उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देव जी को गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की। सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी ने उनकी सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर एवं उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर 'गुरु गद्दी' सौंप दी। इस प्रकार वे गुरु अमर दास जी उनके उत्तराधिकारी और सिखों के तीसरे गुरु बन गए। मान्यता के अनुसार सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव साहिब जी का निधन 29 मार्च 1552 को हुआ था। 
 
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