पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जुन देव की जयंती, जानें उपलब्धियां और शहादत के बारे में
तिथिनुसार सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी की जयंती आज
HIGHLIGHTS
• वैशाख कृष्ण सप्तमी पर मनाई जाएगी गुरु अर्जन देव की जयंती।
• सिखों के पांचवें हैं गुरु अर्जुन देव जी।
• श्री गुरु अर्जुन देव की कहानी जानें।
Guru Arjan Dev ji : वर्ष 2024 में सिख धर्म के पांचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव जी की जयंती 30 अप्रैल, दिन मंगलवार को मनाई जा रही है। तिथि के अनुसार अर्जुन देव साहिब का जन्म वैशाख वदी सप्तमी (7), संवत 1620 तथा अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख के अनुसार 15 अप्रैल 1563 को अमृतसर में हुआ था।
मान्यतानुसार सिख धर्म के चौथे गुरु, गुरु रामदास जी तथा माता भानी जी के घर गुरु अर्जुन/ अर्जन देव का जन्म को गोइंदवाल (अमृतसर) में हुआ था। वे सिख धर्म के 5वें गुरु माने गए हैं। गुरु अर्जुन देव की धार्मिक एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण की भावना, सहृदयता, कर्तव्यनिष्ठता और निर्मल प्रवृत्ति को देखते हुए ही गुरु रामदास जी ने 1581 में उन्हें पांचवें गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर सुशोभित किया।
गुरु अर्जुन देव साहिब जी संत शिरोमणि, सर्वधर्म समभाव के प्रखर पैरोकार होने के साथ ही मानवीय आदर्शों को कायम रखने के लिए आत्म बलिदान करने वाले एक महान आत्मा थे। वे आध्यात्मिक चिंतक एवं उपदेशक के साथ ही समाज सुधारक भी थे। अत: वे सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ डंटकर खड़े रहे। वे सही मायनों में शहीदों के सिरताज एवं शांति के पुंज थे।
उनके द्वारा किया गया गुरुग्रंथ साहिब का संपादन, समस्त मानव जाति को सबसे बड़ी देन है। गुरु जी ने स्वयं की उच्चारित 30 रागों में 2,218 शबदों को भी श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज किया है। संपूर्ण मानवता में धार्मिक सौहार्द पैदा करने के लिए अपने पूर्ववर्ती गुरुओं की वाणी को जगह-जगह से एकत्र कर उसे धार्मिक ग्रंथ में बांटकर परिष्कृत किया। तथा सभी गुरुओं की बानी और अन्य धर्मों के संतों के भजनों को संकलित कर एक ग्रंथ बनाया, जिसका नाम 'ग्रंथसाहिब' रख कर उसे हरमंदिर में स्थापित करवाया।
आध्यात्मिक जगत में गुरु अर्जुन देव जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। अपने पवित्र वचनों से दुनिया को उपदेश देने वाले गुरु जी का मात्र 43 वर्ष का जीवनकाल अत्यंत प्रेरणादायी रहा। अपने जीवन काल में उन्होंने धर्म के नाम पर आडंबरों और अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किया। तथा सन् 1606 में 'तेरा कीआ मीठा लागे/ हरि नाम पदारथ नानक मागे' शबद का उच्चारण करते हुए गुरु अर्जुन देव जी ने अमर शहीदी प्राप्त की।
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