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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020 (10:41 IST)

Shri Krishna 14 Oct Episode 165 : युद्ध के मैदान में जब दुर्योधन उतारता है मायावी राक्षस अलंबुस को

Shri Krishna 14 Oct Episode 165 : युद्ध के मैदान में जब दुर्योधन उतारता है मायावी राक्षस अलंबुस को - Shri Krishna on DD National Episode 165
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 14 अक्टूबर के 165वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 165 ) में भीष्म पितामह को खरी खोटी सुनाने के बाद शिविर में दुर्योधन क्रोधित होकर कहता है कि ये अर्जुन आज तो कृष्ण के सुदर्शन चक्र की भांति घातक हो गया था। उसने हमारी व्यूह रचना के चिथड़े उड़ा दिए। अर्जुन के घातक प्रहारों का यही हाल रहा तो जीत चुके। 
 
संपूर्ण गीता हिन्दी अनुवाद सहित पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें... श्रीमद्‍भगवद्‍गीता 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
शकुनि और कर्ण उसे सांत्वना देते हैं और शकुनि कहता कि अब इसका तोड़ है अलंबुस राक्षस। दुर्योधन कहता है वो मेरा मित्र? तब शकुनि कहता है- हां भांजे जो मायावी विद्या में निपुण है। ये युद्ध हम अपने बल से नहीं तो छल से जीतेंगे। पांडव संख्या में कम होते हुए भी हमसे बल में बहुत आगे हैं परंतु छल में हमसे बहुत पीछे हैं। इसलिए बुलाओ अपने अलंबुस को बुलाओ। तब दुर्योधन खड़ा होकर अलंबुस का अह्‍वान करता है तो वहां पर अलंबुस प्रकट हो जाता है। तब दुर्योधन कहता है कि अब मेरा मित्र अलंबुस लगाएगा पांडवों पर अंकुश। 
 
उधर, यह बात पांडवों को पता चलती है तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि अलंबुस पांडवों पर अंकुल लगाएगा। ये उनका भ्रम है बड़े भैया, जो धर्म पर होते हैं और धर्म के लिए लड़ते हैं उन पर तो मृत्यु भी अंकुश नहीं लगा सकती क्योंकि वे अपनी जान हथेली पर रखकर युद्ध करते हैं। यह सुनकर युधिष्ठिर कहते हैं कि परंतु वासुदेव जब हम लोग मायावी युद्ध नहीं कर रहे हैं तो वो लोग क्यों कर रहे हैं? ये तो छल है। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि और छल ही अधर्मियों का सबसे बड़ा शत्रु है। यह सुनकर भीम कहता है कि राक्षस है तो क्या हुआ मेरी गदा के आगे उसकी सारी की सारी माया धरी की धरी रह जाएगी।
 
यह सुनकर श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि आपको कष्ट उठाने की कोई आवश्यकता नहीं। आप अपने बाहुबल को शेष कौरवों के लिए सुरक्षित रखें। यह सुनकर भीम कहता है कि फिर उस मायावी राक्षस का सामना कौन करेगा? यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि आपका पुत्र घटोत्कच। फिर अगले दिन के युद्ध में जब द्रोणाचार्य भीम को घायल कर अचेत कर देते हैं तब भीम पुत्र घटोत्कच का युद्ध में प्रवेश होता है। 
 
 
यह घटना जब संजय धृतराष्ट्र को बताता है तो वे खुश हो जाते हैं। संजय कहता है कि हां महाराज कौरवों की सेना इस विजय की खुशी से नारे लगा रही हैं और शंखनाद कर रही है। तब धृतराष्ट्र कहता है कि अब तो द्रोणाचार्य और अन्य कौरव वीरों ने पांडव सेना को नष्ट करना शुरू कर दिया होगा। तब संजय कहता है कि हां महाराज आचार्य द्रोण पांडव सेना पर टूट पड़े हैं परंतु भीम पुत्र घटोत्कच अपने पिता को अचेत देख क्रोधित हो गया है। 
 
घटोत्कच द्रोणाचार्य को ललकारता है और कहता है कि तुमने मेरे पिताश्री को अचेत किया है अब मैं घटोत्कच तुझे युद्ध के लिए ललकारता हूं। फिर द्रोणाचार्य और घटोत्कच में युद्ध होता है। घटोत्कच अपनी शक्ति से द्रोणाचार्य के रथ में आग लगाकर उन्हें घायल कर देता है। वे भी अचेत हो जाते हैं और इसके बाद घटोत्कच युद्ध भूमि पर हाहाकार मचा देता है।
 
यह देखकर दुर्योधन अपने मायावी मित्र अलंबुस का आह्‍वान करता है। घटोत्कच और अलंबुस में महायुद्ध होता है और अंत में अलंबुस युद्ध का मैदान छोड़कर भाग जाता है तब दुर्योधन अपने भाइयों सुनाभ व कुण्डधर को भीम से युद्ध लड़ने का आदेश देता है। भीम से युद्ध करने के लिए सात कौरव लग जाते हैं जो सभी‍ मिलकर भीम का कवच तोड़ देते हैं। संजय से यह घटना सुनकर धृतराष्ट्र प्रसन्न हो जाते हैं। परंतु अंत में भीम इनका वध कर देता है। 
 
यह सुनकर धृतराष्‍ट्र दु:खी हो जाता है। दुर्योधन और शकुनि घबरा जाते हैं। पूरी युद्ध में भीम कई कौरवों का वध करके के बाद हाहाकार मचा देता है। यह देखकर दुर्योधन अत्यंत ही दु:खी और भयभित हो जाता है। दूसरी ओर अपने पुत्रों के वध पर गांधारी विलाप करती है। धृतराष्ट्र इसके लिए सांत्वना देते हैं।  
 
उधर, शिविर में दुर्योधन दु:खी और क्रोधित होकर कहता है कि इस तरह तो हम युद्ध नहीं जीत सकेंगे जिस तरह आज एक साथ मेरे सात भाइयों की हत्या हुई है। उसी तरह हम सब एक एक करके बारे जाएंगे। यह सुनकर शकुनि और कर्ण दुर्योधन को सांत्वना देते हैं। तब अंत में दुर्योधन कहता है कि जिस सेना का नायक ही शत्रु के साथ हो वो सेना जीता हुआ युद्ध भी हार जाती है। मैं पितामह से सेनापति का पद वापस लेने जा रहा हूं। पितामह के आदर में यदि अब भी हम चुप रहे हो एक एक करके मेरे सारे भाई मारे जाएंगे। 
 
फिर दुर्योधन और भीष्म पितामह के बीच वाद विवाद होता है और दुर्योधन कहता है कि पितामह सत्य तो ये है कि आप पांडवों की मृत्यु देखना नहीं चाहते हैं। आप इस भ्रम में हैं कि आपके इस षड़यंत्र को कोई नहीं जानता। इस तरह दोनों में वाद विवाद के बाद दुर्योधन कहता है कि आप पांडवों का वध कीजिये। यह सुनकर भीष्म पितामह कहते हैं कि मैं उनका वध नहीं कर सकता। इस पर दुर्योधन कहता है कि वध नहीं कर सकते हो सेनापति का पद छोड़ दीजिये। इस पर भीष्म कहते हैं कि सेनापति का पद छोड़ूंगा तो हस्तिनापुर की सुरक्षा की प्रतिज्ञा टूटेगी। इस पर दुर्योधन भड़ककर कहता है वध नहीं कर सकते और प्रतिज्ञा भी नहीं छोड़ सकते तो क्या कर सकते हो, केवल पांडवों का पक्षपात और कौरवों का विनाश। 
 
यह सुनकर भीष्म पितामह चीखते हुए कहते हैं कि अब ये अपमान और नहीं सह सकता। मैं गंगापुत्र भीष्म ये प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं पांडवों के रक्त से अपने अस्तित्व को पवित्र करूंगा। मैं धरती को निष्‍पांडव कर दूंगा।
 
यह सुनकर द्रौपदी घबराते हुए श्रीकृष्ण के पास जाकर कहती है कि तुमने सुना माधव भीष्म पितामह ने इस पृथ्‍वी को पांडव से विहिन करने की प्रतिज्ञा की है। अब क्या होगा माधव। यह सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराते हैं तो द्रौपदी कहती है कि माधव! तुम मुस्कुरा रहे हो, पितामह ने पांडवों का वध करने के प्रण लिया है और तुम मुस्कुरा रहे हो। कल अधर्म धर्म को परास्त करेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि पांचाली यूं घबराने से क्या होगा?
 
तब द्रौपदी कहती है कि अब तुम्हें ही पितामह का वध करना होगा माधव। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि पांडवों के होते हुए? द्रौपदी कहती है हां कृष्ण। वैसे देखने में तो ये युद्ध कौरवों और पांडवों में हो रहा है परंतु वास्तव में यह युद्ध कौरवों में और वासुदेव श्रीकृष्ण में हो रहा है। मेरे पति तो केवल एक माध्यम है, निमित्त हैं, हे ना प्रभु? 
 
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये कैसी बातें कर रही हो पांचाली। तुम जानते हो कि इस युद्ध में मैं शस्त्र नहीं उठाऊंगा, मैं नि:शस्त्र हूं। यह सुनकर द्रौपदी कहती है कि कौन कहता है कि तुम नि:शस्त्र हो। पांचों पांडव तुम्हारे शस्त्र हैं। महाराज युधिष्ठिर तुम्हारा शंख है। वो शंख बजाकर तुम्हारी ओर से इस धर्म युद्ध की घोषणा करते हैं। महाबली भीम तुम्हारी गदा है, पार्थ अर्जुन तुम्हारा सुदर्शन है। इन सबके होते हुए तुम ये कैसे कह सकते हो कि तुम नि:शस्त्र हो।... यह सुनकर श्रीकृष्ण मन ही मन कहते हैं कि वाह द्रौपदी वाह, आखिर तुमने मेरे इस रहस्य को जान ही लिया। इस तरह द्रौपदी और श्रीकृष्ण में कई तरह की बातें होती हैं। अंत में श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपने भाई पर भरोसा रखो। विश्वास रखो पंडवों को कुछ नहीं होगा। 
 
उधर, दुर्योधन अपने शिविर में शकुनि और कर्ण आदि को बताता है कि पितामह ने इस पृथ्‍वी को निष्पांडव बनाने की प्रतिज्ञा की है। यह सुनकर शकुनि खुश हो जाता है और दुर्योधन को बधाई देता है परंतु कर्ण को जब बधाई नहीं देता है तो दुर्योधन इसका कारण पूछता है। इस पर कर्ण कहता है कि दुख मुझे इस बात का नहीं है मामाश्री की पांडव मारे जाएंगे, परंतु दु:ख मुझे इस बात का है कि अर्जुन का वध अब मेरे हाथों नहीं होगा। 
 
इस भीष्म प्रतिज्ञा पर युधिष्ठिर चिंतित होकर कहते हैं कि हे कृष्ण! आज साक्षी रहना तुम। आज मैं अपने चारों भाइयों को मेरे प्रति कर्तव्य से मुक्त करता हूं। मैं अपने स्वार्थ के लिए अपने भाइयों को भेंट चढ़ाना नहीं चाहता। मेरे कारण माता कुंती से उनके पुत्र छीन जाए तो मैं उनको क्या जवाब दूंगा। और फिर में मरकर परलोक पहुंचूगा तो माता माद्री को क्या जवाब दूंगा कि उनके दोनों पुत्रों को मैंने अपने स्वार्थ पर भेंट चढ़ा दिया। नहीं, मरना ही है तो केवल मैं ही मरूंगा। यह सुनकर सभी भाई कहते हैं कि हमारे जीते जी यदि आपका वध हो गया तो हम तो बिन मौत ही मर जाएंगे। हमें मर जाना स्वीकार है भ्राताश्री परंतु अनाथ होना नहीं।
 
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि देख लिया बड़े भैया ये आपसे छोटे होकर आज आपसे बढ़प्पन दिखा रहे हैं और आप हैं जो ये छोटापन सिखाने का प्रयास कर रहे हैं। मृत्यु से डरा रहे हैं। ये तो आपके प्रति इनके आदर और स्नेह का अपमान है। आप समझते हैं कि आप अपने भाइयों को दूर रखकर खुद मृत्यु को गले लगाकर बड़ा काम कर रहे हैं परंतु इस तरह तो आप सभी पांडवों के सामूहित कर्तव्य से विद्रोह कर रहे हैं। ये कर्तव्य तो सब भाइयों का है। इसे तो आप सबको मिलकर करना होगा।... इस तरह श्रीकृष्‍ण कई तरह की समझाइश देते हैं।
 
अंत में युधिष्ठिर कहते हैं परंतु पितामह की प्रतिज्ञा और उनके घातक बाणों का उत्तर देने के लिए हमारे पास कोई शस्त्र नहीं है केशव। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि एक शस्त्र है। बड़ै भैया यदि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करे तो शस्त्रु के सारे शस्त्रों की धार कुंद हो सकती है। यह सुनकर युधिष्ठिर कहते हैं अर्थात? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैंने एक उपाय सोच रखा है। यह सुनकर युधिष्ठिर कहते हैं कि क्या उपाय है केशव। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि वह सब आप मुझ पर छोड़ दीजिये। जैसे मैं कहूं वैसा करते जाइये। --------------------- जय श्रीकृष्णा। 

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