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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 15 जुलाई 2024 (18:08 IST)

महादेव के श्रावण मास के 10 सीक्रेट जो आप नहीं जानते होंगे

महादेव के श्रावण मास के 10 सीक्रेट जो आप नहीं जानते होंगे - Sawan Maas 2024
Shravan Maas 2024: सप्ताह के व्रतों में गुरुवार श्रेष्ठ, पक्ष के व्रतों में एकादशी और प्रदोष ही श्रेष्ठ, वर्ष के व्रतों में नवरात्रि एवं चातुर्मास श्रेष्ठ और चतुर्मास में सबसे श्रेष्ठ श्रावण का महीना है। श्रावण माह क्यों सबे श्रेष्ठ माना जाता है और क्या है इसके 10 रहस्य? जानिए इस बारे में 10 सीक्रेट।ALSO READ: ये 10 लोग यदि श्रावण मास में सोमवार के व्रत रखेंगे तो हो सकता है नुकसान
 
1. पार्वती मां का तप : इस माह में माता पार्वती ने कठित तप करके शिवजी को प्रसन्न किया था। इसीलिए भगवान शिव को यह माह सबसे प्रिय है। जो भी व्यक्ति इस संपूर्ण माह व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती ने अपने दूसरे जन्म में शिव को प्राप्त करने हेतु युवावस्था में श्रावण महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया था। इसलिए यह माह विशेष है। 
 
2. सत्संग का महत्व : श्रावण शब्द श्रवण से बना है जिसका अर्थ है सुनना। अर्थात सुनकर धर्म को समझना। इस माह में सत्संग का महत्व है। श्रावण माह में कल्पवास या तीर्थवास के माध्यम से गृहस्थ अपने अपने संतों से सत्संग का लाभ लेते हैं। ALSO READ: श्रावण मास में व्रत नहीं रखेंगे तो होंगे ये 5 नुकसान
 
3. प्रकृति का पुनर्जन्म: इस माह में पतझड़ से मुरझाई हुई प्रकृति पुनर्जन्म लेती है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। सृष्‍टि का पुन: सृजन होता है। जल में जीवन जंतुओं की संख्या बढ़ जाती है। धरती पर भी प्रजनन काल रहता है। ऐसे समय में सभी मनुष्‍य को मांसाहार से दूर रहना चाहिए और यात्राओं को स्थगित कर देना चाहिए।
 
4. उपाकर्म करना : श्रावण माह में श्रावणी उपाकर्म करने का महत्व भी है। यह कर्म किसी आश्रम, जंगल या नदी के किनारे किसी संन्यासी की तरह रहकर संपूर्ण किया जाता है। श्रावणी उपाकर्म के 3 पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। पूरे माह किसी नदी के किनारे किसी गुरु के सान्निध्य में रहकर श्रावणी उपाकर्म करना चाहिए।ALSO READ: श्रावण मास : लगातार बढ़ते जा रहे हैं भारत के ये 6 शिवलिंग और एक नंदी
 
5. व्रतों का प्रारंभ : श्रावण माह से व्रत और साधना के चार माह अर्थात चातुर्मास प्रारंभ होते हैं। ये 4 माह हैं- श्रावण, भाद्रपद, आश्‍विन और कार्तिक। इस माह में सोमवार, गणेश चतुर्थी, मंगला गौरी व्रत, मौना पंचमी, कामिका एकादशी, ऋषि पंचमी, 12वीं को हिंडोला व्रत, हरियाली अमावस्या, विनायक चतुर्थी, नाग पंचमी, पुत्रदा एकादशी, त्रयोदशी, वरा लक्ष्मी व्रत, नराली पूर्णिमा, श्रावणी पूर्णिमा, शिव चतुर्दशी और रक्षा बंधन आदि पवित्र दिन आते हैं।
 
6. तीन तरह के व्रत : पुराणों और शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत 3 तरह के होते हैं- सावन सोमवार, सोलह सोमवार और सोम प्रदोष। हालांकि महिलाओं के लिए सावन सोमवार की व्रत विधि का उल्लेख मिलता है। उन्हें उस विधि के अनुसार ही व्रत रखने की छूट है।
 
7. मनोकामना पूर्ण करने का माह : शिवपुराण के अनुसार जिस कामना से कोई इस मास के सोमवारों का व्रत करता है, उसकी वह कामना अवश्य एवं अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। जिन्हें 16 सोमवार व्रत करने हैं, वे भी सावन के पहले सोमवार से व्रत करने की शुरुआत कर सकते हैं। इस मास में भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा करना श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायक है।ALSO READ: श्रावण मास में भगवान शिव को अर्पित करें ये 12 वस्तुएं तो होगी मनोकामना पूर्ण
 
8. शिव के जलाभिषेक का फल : श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। इसी माह में भगवान शिव और प्रकृति अनेक लीलाएं रचते हैं। कहते हैं कि जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शंकर ने पीकर उसे कंठ में अवरुद्ध कर दिया तो उस तपन को शांत करने के लिए देवताओं ने उनका जलाभिषेक इसी माह में किया था। इसीलिए इस माह में शिवलिंग या ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है तथा शिवलोक को पाता है।
 
9. व्रत का नियम : श्रावण माह में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। इस दौरान बाल और नाखुन नहीं काटना चाहिए। श्रावण माह में यात्रा, सहवास, वार्ता, भोजन आदि त्यागकर नियमपूर्वक व्रत रखना चाहिए तो ही उसका फल मिलता है। दिन में फलाहार लेना और रात को सिर्फ पानी पीना चाहिए। ALSO READ: श्रावण मास में नहीं करना चाहिए भूलकर भी ये 5 काम, पछताना पड़ेगा
 
10. ये लोग न करें व्रत: जिसकी शारीरिक स्थिति ठीक न हो व्रत करने से उत्तेजना बढ़े और व्रत रखने पर व्रत भंग होने की संभावना हो उसे व्रत नहीं करना चाहिए। रजस्वरा स्त्री, जरूरी यात्रा या युद्ध के हालात में भी व्रत नहीं रखना चाहि। रोगी, बच्चे, वृद्ध, अशौच आदि लोगों को भी व्रत नहीं रखना चाहिए। इस व्रत को रखने के तीन कारण है पहला दैहिक, दूसरा मानसिक और तीसरा आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुर्नजीवन प्राप्त करना और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना। इससे काया निरोगी हो जाती है।
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