पितृ पूजन में नादी श्राद्ध का महत्व
पितृ हमेशा अपने वंश को पुत्र, धन, धान्य, यश, वैभव, लक्ष्मी, संतान सारे सुख देते है। इनको जो मनुष्य पूजता रहता है उनके घर-परिवार में कभी किसी भी चीज की कमी नहीं आती है। घर के प्रत्येक शुभ कार्य के पहले पितरों का पूजन होता है एवं प्रायश्चित कर्म किया जाता है। पितृ तर्पण धूप, नादी श्राद्ध एवं भोजन ब्राह्मणों को कराने से होते है एवं पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते है। अश्विन कृष्ण पक्ष पड़वा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष रहता है, मनुष्य ने अपने पितरों के लिए इन दिनों रोज धूप, तर्पण, श्राद्ध करना चाहिए। अपने माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य नजदीकी रिश्तेदारों की तिथि अनुसार उनका श्राद्ध करना चाहिए। आपको यदि अपने पूर्वजों की तिथि याद नहीं है इस प्रकार भी कर सकते है, बच्चे का श्राद्ध पंचमी को, बुजुर्ग महिला-पुरुष का नवमी को करें। यदि हम यह भी नहीं कर पाते हैं तो सभी पितरों का स्मरण कर सर्वपितृ अमावस्या के दिन करने से सभी पितृ का भोज हो जाता है। पितृ पूजन में नादी श्राद्ध का बड़ा महत्व है। नादी श्राद्ध शुभ कार्य के पहले भी करते हैं। नादी श्राद्ध में विश्व देवा, माता, पितामही, प्रपितामही, पिता प्रपितामही तथा मातामही, प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही, मातामही, प्रमातामह वृद्ध प्रमातामह का पूजन करें।
इनका स्थान पत्तल पर कुँकू या चंदन से बनाए अथवा दूर्वा, कुशा में गाँठ देकर पत्तल पर इनके स्थान दें। तत्पश्चात ताम्रपत्र में दही, रोली, जौ, दूर्वा और फल रखकर संकल्प लें। ॐ तत्सदध मासोन्तमेडमुकमासे अमुक पक्षे तिथौ वासरे अमुक कर्माण्ङीभूतं आभ्युदयिक श्राद्धमहं करिष्ये। इसके पश्चात पात्र में जौ, दही, दूर्वा आदि है। दूर्वा या कुशा से हिलाते रहे। पात्र में जौ, चंदन पुष्प व दही डालें। ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्व वेदा: स्वस्ति नस्तार्यो अरिष्ठनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पति र्द धातु।। इस मंत्र से पूर्वादि दिशाओं में अक्षत फेकें। सूर्य व दीपक की तरफ अक्षत व पुष्प चढ़ाएँ। किशमिश व आँवले दक्षिणा के साथ चारों दिशाओं में चढ़ाएँ। इस प्रकार पितरों का पूजन करने से पितृ प्रसन्न होते है और आशीर्वाद प्रदान करते है। पितृ ही हमारे धन और वंश में वृद्धि करते हैं। इति शुभम्।