शुभ मुहूर्त या योग को लेकर मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त गणपति, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि शास्त्र हैं। हिन्दू पंचांग में मुख्य 5 बातों का ध्यान रखा जाता है। इन पांचों के आधार पर ही कैलेंडर विकसित होता है। ये 5 बातें हैं- 1.तिथि, 2.वार, 3. नक्षत्र, 4. योग और 5. करण। आज हम बात करते हैं योग की।
27 योग :- सूर्य-चन्द्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। योग 27 प्रकार के होते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- 1.विष्कुम्भ, 2.प्रीति, 3.आयुष्मान, 4.सौभाग्य, 5.शोभन, 6.अतिगण्ड, 7.सुकर्मा, 8.धृति, 9.शूल, 10.गण्ड, 11.वृद्धि, 12.ध्रुव, 13.व्याघात, 14.हर्षण, 15.वज्र, 16.सिद्धि, 17.व्यतिपात, 18.वरीयान, 19.परिध, 20.शिव, 21.सिद्ध, 22.साध्य, 23.शुभ, 24.शुक्ल, 25.ब्रह्म, 26.इन्द्र और 27.वैधृति।
अशुभ योग कौन से हैं?
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये 9 अशुभ योग हैं- विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिध और वैधृति। आपके पंचांग या कैलेंडर में प्रतिदिन आने वाले योग के बारे में जानकारी दी गई होती है। आप उक्त योग देखकर सावधानी रख सकते हैं।
1.विष्कुम्भ योग : इस योग को विष से भरा हुआ घड़ा माना जाता है इसीलिए इसका नाम विष्कुम्भ योग है। जिस प्रकार विष पान करने पर सारे शरीर में धीरे-धीरे विष भर जाता है वैसे ही इस योग में किया गया कोई भी कार्य विष के समान होता है अर्थात इस योग में किए गए कार्य का फल अशुभ ही होते हैं।
2.अतिगण्ड : इस योग को बड़ा दुखद माना गया है। इस योग में किए गए कार्य दुखदायक होते हैं। इस योग में किए गए कार्य से धोखा, निराशा और अवसाद का ही जन्म होता है। अत: इस योग में कोई भी शुभ या मंगल कार्य नहीं करना चाहिए और ना ही कोई नया कार्य आरंभ करना चाहिए।
3.शूल योग : शूल एक प्रकार का अस्त्र है और इसके चूभने से बहुत बहुत भारी पीड़ा होती है। जैसे नुकीला कांटा चूभ जाए। इस योग में किए गए कार्य से हर जगह दुख ही दुख मिलते हैं। वैसे तो इस योग में कोई काम कभी पूरा होता ही नहीं परंतु यदि अनेक कष्ट सहने पर पूरा हो भी जाए तो शूल की तरह हृदय में एक चुभन सी पैदा करता रहता है। अत: इस योग में कोई भी कार्य न करें अन्यथा आप जिंदगी भर पछताते रहेंगे।
4.गण्ड : इस योग में किए गए हर कार्य में अड़चनें ही पैदा होगी और वह कार्य कभी भी सफल नहीं होगा ना ही कोई मामला कभी हल होगा। मामला उलझता ही जाएगा। इस योग किया गया कार्य इस तरह उलझता है कि व्यक्ति सुलझाते सुलझाते थक जाता है लेकिन कभी वह मामला सही नहीं हो पाता। इसलिए कोई भी नया काम शुरू करने से पहले गण्ड योग का ध्यान अवश्य करना चाहिए।
5.व्याघात योग : किसी प्रकार का होने वाला आघात या लगने वाला धक्का। यदि इस योग में कोई कार्य किया गया तो बाधाएं तो आएगी ही साथ ही व्यक्ति को आघात भी सहन करना होगा। यदि व्यक्ति इस योग में किसी का भला करने जाए तो भी उसका नुकसान होगा। इस योग में यदि किसी कारण कोई गलती हो भी जाए तो भी उसके भाई-बंधु उसका साथ सोचकर छोड़ देते हैं कि उसने यह जानबूझ कर ऐसा किया है।
6.वज्र योग : वज्र का अर्थ होता है कठोर। इस योग में वाहन आदि नहीं खरीदे जाते हैं अन्यथा उससे हानि या दुर्घटना हो सकती है। इस योग में सोना खरीदने पर चोरी हो जाता है और यदि कपड़ा खरीदा जाए तो वह जल्द ही फट जाता है या खराब निकलता है।
7.व्यतिपात योग : इस योग में किए जाने वाले कार्य से हानि ही हानि होती है। अकारण ही इस योग में किए गए कार्य से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। किसी का भला करने पर भी आपका या उसका बुरा ही होगा।
8.परिध योग : इस योग में शत्रु के विरूद्ध किए गए कार्य में सफलता मिलती है अर्थात शत्रु पर विजय अवश्य मिलती है।
9.वैधृति योग : यह योग स्थिर कार्यों हेतु ठीक है परंतु यदि कोई भाग-दौड़ वाला कार्य अथवा यात्रा आदि करनी हो तो इस योग में नहीं करनी चाहिए।