रंगोली या मांडना हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की समृद्धि के प्रतीक हैं, इसलिए 'चौंसठ कलाओं' में मांडना को भी स्थान प्राप्त है। इससे घर परिवार में मंगल रहता है। उत्सव-पर्व तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ अलंकृत किया जाता है। रंगोली के पहले मांडना प्रचलीत था जो आज भी है।
मांडना भारत की बहुत ही प्राचीन परंपरा रही है। सिन्धु घाटी की प्राचीन सभ्यताओं मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में इसके चिह्न पाए गए हैं। मांडना को 64 कलाओं में शामिल किया गया है जिसे 'अल्पना' कहा गया है। यह चित्रकला का एक अंग है। भारत में मांडना विशेषतौर पर होली, दीपावली, नवदुर्गा उत्सव, महाशिवरात्रि और संजा पर्व पर बनाया जाता है।
मांडनों को श्री और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह माना जाता है कि जिसके घर में इसका सुंदर अंकन होता रहता है, वहां लक्ष्मी निवास करती है।
मांडने की पारंपरिक आकृतियों में ज्यॉमितीय एवं पुष्प आकृतियों के साथ ही त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त, कमल, शंख, घंटी, स्वस्तिक, शतरंज पट का आधार, कई सीधी रेखाएं, तरंग की आकृति आदि मुख्य हैं। हवन और यज्ञों में वेदी का निर्माण करते समय भी मांडने बनाए जाते हैं। घर-आंगन में मांडने बनाकर अति अल्प मात्रा में मूंग, चावल, जौ व गेहूं जैसी मांगलिक वस्तुएं फैला दी जाती हैं।
FILE
मांडनों के प्रकार : स्थान आधारित, पर्व आधारित, तिथि आधारित और वर्षपर्यंत आधारित अंकित किए जाने वाले आदि।
मांडना का रंग : ग्रामीण क्षेत्रों में मांडना उकेरने में गेरू या हरिमिच, खड़िया या चूने का प्रयोग किया जाता है। गेरू या हरिमिच का प्रयोग बैकग्राउंड के रूप में जबकि विभिन्न आकृतियों और रेखाओं का खड़िया या चूने से।
क्या बनाते हैं मांडना में : मांडना में चौक, चौपड़, संजा, श्रवण कुमार, नागों का जोड़ा, डमरू, जलेबी, फेणी, चंग, मेहंदी, केल, बहू पसारो, बेल, दसेरो, सातिया (स्वस्तिक), पगल्या, शकरपारा, सूरज, केरी, पान, कुंड, बीजणी (पंखे), पंच कारेल, चंवर छत्र, दीपक, हटड़ी, रथ, बैलगाड़ी, मोर, फूल व अन्य पशु-पक्षी आदि।
दीवार पर : दीवारों पर लिपाई-पुताई के बाद मांडने बनाए जाते हैं। दीवार पर केल, संजा, तुलसी, बरलो आदि सुंदर बेलबुटे बनाए जाते हैं।
आंगन में : आंगन में खांडो, बावड़ी, चौक, दीपावली की पांच पापड़ी़ चूनर चौक। सबसे खास होता है बीच आंगन का मांडना। यह दीप पर्व का विशेष आकर्षण होता है।
चबूतरे पर : चबूतरे पर पंचनारेल आदि।
पूजाघर में : पूजाघर में नवदुर्गा, पूजाघर में लक्ष्मीजी के पग, गाय के खुर और अष्टदल कमल, गणेश आदि बनाए जाने का महत्व है।
रसोईघर में : रसोईघर में छींका चौक, मां अन्नपूर्णा की कृपादृष्टि बनी रहे, इस हेतु विशेष फूल के आकार की अल्पना बनती है जिसके 5 खाने बनते हैं। हर खाने में विभिन्न अनाज-धन-धान्य को प्रतीकस्वरूप उकेरा जाता है। गोल आकार में बनी इस अल्पना के बीच में दीप धरा जाता है।