श्रीकृष्ण की शक्ति का स्रोत क्या है?
भगवान श्रीकृष्ण का भगवान होना ही उनकी शक्ति का स्रोत है। वे विष्णु के 10 अवतारों में से एक आठवें अवतार थे, जबकि 24 अवतारों में उनका नंबर 22वां था। उन्हें अपने अगले पिछले सभी जन्मों की याद थी। सभी अवतारों में उन्हें पूर्णावतार माना जाता है। उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म को पुर्नस्थापित किया था।
महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र में उन्होंने जो गीता का ज्ञान दिया था वह ज्ञान संसार का शुद्ध और व्यवस्थित दर्शन और धर्म है। उस ज्ञान को वेदों और उपनिषदों का सार कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण 64 कलाओं में दक्ष थे। एक ओर वे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे तो दूसरी ओर वे द्वंद्व युद्ध में भी माहिर थे। इसके अलावा उनके पास कई अस्त्र और शस्त्र थे। उनके धनुष का नाम 'सारंग' था। उनके खड्ग का नाम 'नंदक', गदा का नाम 'कौमौदकी' और शंख का नाम 'पांचजञ्य' था, जो गुलाबी रंग का था।
श्रीकृष्ण के पास जो रथ था उसका नाम 'जैत्र' दूसरे का नाम 'गरुढ़ध्वज' था। उनके सारथी का नाम दारुक था और उनके अश्वों का नाम शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक था।
श्रीकृष्ण के पास कई प्रकार के दिव्यास्त्र थे। भगवान परशुराम ने उनको सुदर्शन चक्र प्रदान किया था, तो दूसरी ओर वे पाशुपतास्त्र चलाना भी जानते थे। पाशुपतास्त्र शिव के बाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के पास ही था। इसके अलावा उनके पास प्रस्वपास्त्र भी था, जो शिव, वसुगण, भीष्म के पास ही था। इसके अलावा उनके पास खुद की नारायणी सेना और नारायण अस्त्र भी था।